जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने हाथ से लिखी जाने वाली अपठनीय मेडिको-लीगल रिपोर्टों को न्याय प्रक्रिया में गंभीर बाधा बताते हुए साफ निर्देश दिए हैं कि 1 फरवरी, 2026 के बाद राज्य में किसी भी परिस्थिति में पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मेडिको-लीगल रिपोर्ट और अन्य चिकित्सकीय कानूनी दस्तावेज हाथ से नहीं लिखे जाएं। कोर्ट ने कहा कि यदि इस तिथि के बाद कोई रिपोर्ट हाथ से तैयार पाई गई तो संबंधित जांच अधिकारी, थाना प्रभारी, जिला पुलिस अधीक्षक तथा जयपुर व जोधपुर पुलिस आयुक्त व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।
न्यायाधीश रवि चिरानिया की एकल पीठ ने हत्या के एक मामले में आरोपी के जमानत प्रार्थना पत्र की सुनवाई करते हुए पाया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट की लिखावट पढ़ने योग्य नहीं थी। इस पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने चिकित्सा विभाग की प्रमुख सचिव गायत्री राठौड़ को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से तलब करते हुए वस्तुस्थिति और इस दिशा में किए गए प्रयासों का ब्यौरा पूछा। कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता विनीत जैन को भी सुझाव देने के लिए कहा। हर पहलू पर विस्तार से सुनवाई के बाद पीठ ने कहा कि न्यायिक और प्रशासनिक कार्रवाई का आधार बनने वाले ऐसे महत्वपूर्ण चिकित्सकीय दस्तावेज यदि पढ़ने योग्य न हों तो पूरी प्रक्रिया ही प्रभावित होती है।
मेडिको-लीगल रिपोर्टिंग के लिए सॉफ्टवेयर
प्रमुख सचिव राठौड़ ने जानकारी दी कि राज्य ने जनवरी 2025 से मेडिको-लीगल रिपोर्टिंग के लिए एक सॉफ्टवेयर का उपयोग शुरू किया है, लेकिन यह अभी पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया है। केवल ऑनलाइन अनुरोध के मामलों को छोड़कर शेष मामलों में मेडिको लीगल रिपोर्ट हाथ से बन रही हैं। पीठ ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि चिकित्सकों या पुलिस पर निर्भरता छोड़कर राज्य को अनिवार्य रूप से व्यवस्था लागू करनी होगी। कोर्ट ने 45 दिनों में अनुपालना रिपोर्ट मांगी है।
हाईकोर्ट के दिशा-निर्देश
-राज्य सरकार 15 दिनों के भीतर आदेश या परिपत्र जारी करे, जिसमें यह स्पष्ट हो कि सभी पोस्टमार्टम, मेडिको लीगल रिपोर्ट, आयु निर्धारण परीक्षण, यौन उत्पीड़न रिपोर्ट आदि 1 फरवरी, 2026 से केवल विभागीय सॉफ्टवेयर के माध्यम से ही तैयार होगी।
-गृह विभाग के अतिरिक्त मुय सचिव को निर्देश कि सभी पुलिस अधिकारियों व जांच एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने परिपत्र जारी करें कि हर मामले में सीसीटीएनएस के माध्यम से ही चिकित्सा जांच का अनुरोध भेजा जाए, ताकि रिपोर्ट केवल डिजिटल रूप से बने।
-1 फरवरी, 2026 के बाद हाथ से रिपोर्ट तैयार की गई तो जांच अधिकारी और संबंधित पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।
-8 दिसंबर 2025 से जब तक सिस्टम पूरी तरह लागू नहीं होता, सभी पोस्टमार्टम या मेडिको लीगल रिपोर्ट साफ, बड़े और पढ़ने योग्य अक्षरों में लिखी जाएं तथा उनकी टाइप की हुई प्रति अनिवार्य रूप से संलग्न की जाए।
-मौजूदा फॉर्मेट में जगह कम होने के कारण प्रमुख चिकित्सा शिक्षा तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को 10 दिनों के भीतर नए फॉर्मेट जारी करने के निर्देश, जिसमें पर्याप्त स्थान व अतिरिक्त कॉलम उपलब्ध होने चाहिए।
-सभी रिपोर्ट क्यूआर कोड के साथ अपलोड हों, ताकि उनकी प्रमाणिकता, केस विवरण और अन्य आवश्यक जानकारी आसानी से सत्यापित की जा सके।
-सभी सरकारी व निजी लैबों को अपनी टेस्ट रिपोर्ट में स्पष्ट चिकित्सकीय राय व निष्कर्ष देने के निर्देश तथा उस पर चिकित्सक का वास्तविक (हस्तलिखित) हस्ताक्षर अनिवार्य रूप से हो।
-राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के निर्देश कि पुलिस व जांच एजेंसियों की ओर से एकत्र किए गए सभी नमूने 5 दिनों के भीतर एफएसएल भेजे जाएं।









