राजस्थान की अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी से यह सीट छीन ली है। कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया ने बीजेपी के मोरपाल सुमन को हराकर तीन गुना से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की। 2023 के विधानसभा चुनाव में भाया महज 5,861 वोटों से हारे थे, लेकिन इस बार उन्होंने करीब 17,000 से ज्यादा वोटों के मार्जिन से बाजी मार ली।
सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी की यह हार कई सवाल खड़े कर रही है। बीजेपी का चुनावी मैनेजमेंट पूरी तरह फेल साबित हुआ, जबकि कांग्रेस ने एकजुट होकर पूरी ताकत झोंक दी। इस हार से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के राजनीतिक कद पर भारी असर पड़ने की चर्चा है।
कांग्रेस में नजर आई एकजुटता
कांग्रेस की जीत के पीछे पार्टी की एकता प्रमुख कारण रही। अशोक गहलोत, सचिन पायलट सहित पूरा कांग्रेस नेतृत्व एक मंच पर नजर आया। गहलोत और पायलट ने मिलकर प्रचार किया, जिससे कार्यकर्ताओं में जोश भरा। भाया को जातीय समीकरणों का भी फायदा मिला। मीणा, जैन और अन्य समुदायों के वोटों ने कांग्रेस की झोली भरी। निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा (कांग्रेस बागी) ने भी अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस की मदद की।
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के हनुमान बेनीवाल और राजेंद्र सिंह गुढ़ा के समर्थन से नरेश मीणा ने बीजेपी के मीणा वोट बैंक में सेंध लगा दी। नरेश को बीजेपी ने खतरे के रूप में नहीं लिया, जो उनकी बड़ी गलती साबित हुई। नरेश ने बीजेपी से नाराज वोटरों को अपनी ओर खींचा, जिसका सीधा नुकसान मोरपाल सुमन को उठाना पड़ा।
बीजेपी में केवल दिखावे की एकता
दूसरी ओर, बीजेपी में दिखावे की एकता ही नजर आई। कैबिनेट मंत्रियों हीरालाल नागर और मदन दिलावर जैसे स्थानीय नेताओं को चुनावी मैदान से दूर रखा गया। मीणा वोटरों को लुभाने के लिए किरोड़ी लाल मीणा को महज एक-दो बार बुलाया गया, जो अपर्याप्त साबित हुआ। पार्टी के अंदर टिकट वितरण को लेकर भारी खींचतान रही। उम्मीदवार घोषित करने में देरी हुई, जिससे सुर्खियां बनीं।
सूत्रों के मुताबिक, मोरपाल सुमन बीजेपी की पहली पसंद नहीं थे। वसुंधरा राजे इस सीट से कंवर लाल मीणा की पत्नी को टिकट दिलवाना चाहती थीं, लेकिन परिवारवाद का आरोप लगने के डर से बात नहीं बनी। इसके बाद 2013 में इसी सीट से विधायक रहे प्रभुलाल सैनी के लिए पैरवी हुई, मगर पार्टी में सहमति नहीं बनी। अंत में स्थानीय नेता मोरपाल सुमन को मौका मिला, जो राजे के करीबी माने जाते हैं।
दुष्यंत सिंह को दी गई थी जिम्मेदारी
चुनाव प्रभारी के रूप में वसुंधरा राजे के बेटे सांसद दुष्यंत सिंह को जिम्मेदारी दी गई। राजे और दुष्यंत ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। सीएम भजनलाल शर्मा के साथ राजे ने रथ पर बैठकर रोड शो किया। प्रचार के दौरान सभी ने माना कि यह चुनाव मोरपाल से ज्यादा राजे की प्रतिष्ठा का हो गया। राजे-भजनलाल और दुष्यंत ने वोट मांगने में पूरी ताकत लगाई, लेकिन जनता ने साथ नहीं दिया।
सियासी गलियारों में चर्चा है कि राजे गुट और सीएम भजनलाल गुट के बीच खींचतान ने संगठन को कमजोर कर दिया। मोरपाल को राजे गुट का पूर्ण समर्थन नहीं मिला। दिग्गज नेताओं की एकजुटता प्रचार में नहीं दिखी, जिससे वोटर नाराज हो गए। बीजेपी की यह हार राज्य स्तर पर पार्टी के लिए झटका है। सत्ता में रहते हुए उपचुनाव हारना मैनेजमेंट की नाकामी दर्शाता है। वसुंधरा राजे की राजनीतिक ताकत पर सवाल उठ रहे हैं।









