पटना। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार ने क्षेत्रीय दलों को एक बड़ा सबक सिखा दिया है। दिल्ली में कांग्रेस भले ही शून्य पर रही, लेकिन उसके वोटों ने आम आदमी पार्टी की हार में अहम भूमिका निभाई। इससे साफ है कि बीजेपी विरोधी क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस से गठबंधन कितना जरूरी है। अगर रीजनल पार्टियां कांग्रेस को भाव नहीं दिए तो केजरीवाल बनने में देर नहीं लगेगी। दिल्ली से कांग्रेस ने लालू यादव और तेजस्वी यादव को साफ-साफ संकेत दे दिया है कि बिहार चुनाव में हर हल में भाव देना होगा।
दिल्ली में कांग्रेस ने हम तो डूबे हैं सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे वाली कहावत चरितार्थ कर दी। अब सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस जरूरत भी क्यों है और मजबूरी भी? इसका जवाब हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिलता है। आप ने कांग्रेस से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था। लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन को पहला झटका लगा। कांग्रेस और आप अलग-अलग लड़े। नतीजा, दोनों को नुकसान हुआ। कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह आप बनी। दिल्ली चुनाव से पहले बिहार में आरजेडी, कांग्रेस को भाव नहीं देती थी। हालांकि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच ज्यादा अनबन नहीं है। लेकिन राहुल गांधी के जातिगत जनगणना वाले बयान ने राजद को असहज कर दिया है। राहुल गांधी के बयान से तेजस्वी यादव बैकफुट पर हैं। इधर कांग्रेस हर हाल में 2020 वाली सीट आरजेडी से चाहती है। दूसरी ओर लालू यादव अभी तक कांग्रेस को 70 सीट देने के मूड में नहीं थे। अंदरखाने से खबर थी की लालू-तेजस्वी कांग्रेस को 50 से भी कम विधानसभा सीट देना चाहते हैं। लेकिन दिल्ली रिजल्ट के बाद साफ हो गया है कि अगर कांग्रेस महागठबंधन से बाहर हो जाती है तो लालू परिवार को अरविंद केजरीवाल तो बिहार में बना ही सकती है। दिल्ली के चुनाव नतीजों ने क्षेत्रीय दलों के लिए एक स्पष्ट संदेश दिया है। कांग्रेस की अनदेखी करना उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। सियासी पंडितों का भी मानना है कि बीजेपी विरोधी गठबंधन में कांग्रेस एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसकी उपेक्षा करके रीजनल पार्टियां अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे। हालांकि अब यह देखना होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव में
तेजस्वी के लिए चुनौती: अब तो बिहार में कांग्रेस को तवज्जो देना ही होगा
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