रेत में खजूर की बहार! जैसलमेर के किसानों ने दिखाई खेती की नई राह

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जैसलमेर : राजस्थान के रेतीले धोरों में अब केवल रेत ही नहीं उड़ती, बल्कि खजूर के घने बागान भी लहलहाने लगे हैं। जहां कभी किसान बारिश पर निर्भर रहकर खरीफ की बारानी फसलों से ही पेट पालते थे, वहीं आज वही किसान आधुनिक तकनीक और नवाचार से सालाना लाखों की कमाई कर रहे हैं। जैसलमेर जिले में खजूर की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है और किसान इसके माध्यम से न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनते जा रहे हैं।

शुरुआत सरकार की ओर से भोजका गांव में खजूर की खेती को बढ़ावा देने से हुई। इसके बाद स्थानीय किसानों में खजूर की खेती को लेकर उत्साह बढ़ा। गुजरात से आए किसान अनिल संतानी और दिलीप गोयल ने इस संभावना को पहचाना और वर्ष 2012 में पोकरण के निकट लोहटा गांव में 1500 खजूर के पौधों का बाग लगाया। इसमें ‘खुनेजी’, ‘बरही’ और ‘खलास’ जैसी उन्नत किस्में शामिल थीं। शुरुआती वर्षों में ही 1300 पौधों से प्रति पौधा 30-40 किलो खजूर की उपज हुई, जिसे वे 40 से 50 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने लगे। इससे उन्हें अच्छे मुनाफे की शुरुआत हुई।

कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से आय दोगुनी

वर्ष 2018 में अनिल संतानी व दिलीप गोयल ने कृषि विज्ञान केंद्र, पोकरण से संपर्क किया और वहां आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया। केंद्र के वैज्ञानिकों ने उन्हें खजूर के प्रसंस्करण, ग्रेडिंग, मूल्य संवर्धन और पैकेजिंग की तकनीकें सिखाईं। किसानों ने खजूर को ‘डोका अवस्था’ में बेचने की बजाय पिंड बनाकर, उसे सहेजकर और आकर्षक ढंग से पैक कर बेचना शुरू किया। इसका सीधा असर उनकी आमदनी पर पड़ा। पहले जहां उनकी सालाना आय 12 लाख रुपये थी, वह बढ़कर 23 लाख रुपये तक पहुंच गई।

इतना ही नहीं, खजूर की सैपलिंग भी वे सालाना 1500 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से बेचकर 3-4 लाख रुपये की अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। इन खजूरों का स्वाद इतना उत्कृष्ट है कि वह अब अरब देशों से आने वाले खजूरों की तुलना में न केवल टिक रहे हैं, बल्कि उनकी गुणवत्ता के चलते बाजार में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।
 
खजूर की खेती बनी रोजगार का नया जरिया

जैसलमेर की शुष्क जलवायु खजूर की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है। यह पौधा अत्यधिक गर्मी और ठंड दोनों सहन कर लेता है और बंजर भूमि व खारे पानी में भी पनप सकता है। यही वजह है कि अब क्षेत्र के कई अन्य किसान भी खजूर की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

किसान अनिल संतानी और दिलीप गोयल न केवल खुद मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि अपने फार्म पर 10 से अधिक लोगों को स्थायी रोजगार भी दे रहे हैं। उनके खेत पर काम करने वाले मजदूरों को सालभर रोजगार मिलता है, जिससे आसपास के ग्रामीण इलाकों में खजूर की खेती को लेकर जागरूकता और रुचि तेजी से बढ़ रही है।
 
कृषि विज्ञान केंद्र की भूमिका रही अहम

कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. दशरथ प्रसाद का कहना है कि जैसलमेर की जलवायु खजूर की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है। अनिल संतानी और दिलीप गोयल जैसे प्रगतिशील किसानों ने न केवल खजूर की खेती को अपनाया, बल्कि इससे जुड़े नवाचार जैसे प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और ऑनलाइन मार्केटिंग को भी अपनाकर एक नया मॉडल पेश किया है। यह मॉडल अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बनेगा।