हाई कोर्ट का सख्त रुख: आपराधिक छवि वाले वकीलों की पूरी जानकारी देने के आदेश

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प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आपराधिक छवि वाले वकीलों को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन से विस्तृत जानकारी तलब की है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकलपीठ ने इटावा निवासी अधिवक्ता मोहम्मद कफील की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया कि ऐसे अधिवक्ताओं की पहचान की जाए जो सक्रिय वकालत नहीं कर रहे हैं, अन्य गतिविधियों में संलिप्त हैं और जिनके खिलाफ गिरोहबंद (गैंगस्टर) कानून के तहत मामले दर्ज हैं।
कोर्ट ने संबंधित जिलों के पुलिस कमिश्नरों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया है कि वे इस पूरी प्रक्रिया की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करें। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि थानाध्यक्षों द्वारा दी जाने वाली जानकारी पूरी तरह निष्पक्ष होनी चाहिए और किसी भी प्रकार के दबाव, प्रभाव या बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रहनी चाहिए। सुनवाई के दौरान यूपी बार काउंसिल की ओर से अधिवक्ता अशोक कुमार तिवारी का पत्र भी रिकॉर्ड पर लिया गया। पत्र में बताया गया कि जिन वकीलों की हिस्ट्रीशीट खुली है या जो गैंगस्टर के रूप में दर्ज हैं, उनके लाइसेंस ऑफ प्रैक्टिस (एलओपी) को निलंबित किया जाएगा। बार काउंसिल ने ऐसे 98 वकीलों के खिलाफ स्वतः संज्ञान लिया है, जबकि 23 मामलों में अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित है। बार काउंसिल ने यह भी बताया कि प्रदेश में कुल 5,14,439 अधिवक्ता पंजीकृत हैं, जिनमें से 2,49,809 को ही प्रैक्टिस सर्टिफिकेट (सीओपी) जारी किया गया है। यही अधिवक्ता वकालत करने और आगामी बार काउंसिल चुनाव में मतदान के पात्र हैं। सीओपी सत्यापन के दौरान 105 अधिवक्ताओं का पंजीकरण फर्जी पाया गया। हालांकि, इस प्रक्रिया में पुलिस सत्यापन नहीं कराया गया, क्योंकि इसकी आवश्यकता नहीं मानी गई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को पूरक हलफनामा दाखिल कर वकीलों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का पूरा विवरण देने का आदेश दिया है, जिसमें एफआईआर नंबर, धाराएं, केस दर्ज होने की तिथि और संबंधित थाना शामिल हों। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार पहले ही बता चुकी है कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में 2539 वकीलों के खिलाफ 3139 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसके अलावा, हाई कोर्ट ने रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स, सोसाइटीज एंड चिट्स, लखनऊ को दो सप्ताह के भीतर वकीलों द्वारा पंजीकृत सोसाइटीज की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका आशय केवल पेशेवर, कल्याणकारी और सहायक उद्देश्यों के लिए गठित वकीलों की सोसाइटीज से है, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए बनाई गई संस्थाओं से।