हिंदू संगठनों की मांग: सरकार को अजमेर दरगाह पर चादर भेजने से रोका जाए

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अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर सालाना उर्स के दौरान प्रधानमंत्री और अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा चादर भेजे जाने का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. अजमेर की जिला अदालत के बाद अब इस मामले में शीर्ष अदालत में जनहित याचिका दाखिल की गई है |

यह जनहित याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन और हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दाखिल की गई है. याचिका में मांग की गई है कि दरगाह पर सालाना उर्स के दौरान सरकारी स्तर पर भेजी जाने वाली चादर पर तत्काल रोक लगाई जाए | याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का इस तरह किसी धार्मिक स्थल से जुड़ा आयोजन सरकारी तटस्थता के सिद्धांत के खिलाफ है |

अर्जेंसी में सुनवाई की अपील

याचिकाकर्ताओं ने इस मामले को अर्जेंसी के आधार पर सुनवाई के लिए सोमवार (22 दिसंबर) को मेंशन करने की बात कही है. याचिका में केंद्र सरकार समेत अन्य संबंधित पक्षों को प्रतिवादी बनाया गया है. माना जा रहा है कि आज सोमवार को ही इस पर शुरुआती सुनवाई हो सकती है |

इसी बीच अजमेर दरगाह पर सालाना उर्स शुरू हो चुका है. सोमवार (22 दिसंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चादर भेजे जाने की संभावना जताई जा रही है. जानकारी के मुताबिक अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के मंत्री किरण रिजिजू चादर लेकर अजमेर पहुंच सकते हैं |

याचिका में ऐतिहासिक दावा

जनहित याचिका में यह भी दावा किया गया है कि अजमेर शहर का वास्तविक नाम ‘अजय मेरु’ है और यहां संकट मोचन महादेव विराजमान हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जिस स्थान पर दरगाह है, वहां पहले मंदिर था. इसी आधार पर उन्होंने सरकारी स्तर पर दरगाह को सम्मान देने पर आपत्ति जताई है |

जिला अदालत में मामला पहले से लंबित

गौरतलब है कि इसी मुद्दे को लेकर विष्णु गुप्ता पहले ही अजमेर की जिला अदालत में याचिका दाखिल कर चुके हैं. वह मामला अभी अदालत में लंबित है और उसमें 3 जनवरी को सुनवाई होनी है. हालांकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि तब तक इस साल के उर्स को लेकर उनकी याचिका व्यावहारिक रूप से औचित्यहीन हो जाएगी |