रांची ; ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियंता बीरेंद्र राम को रिश्वत में दी गई एक लग्जरी कार को छुड़ाने के लिए संबंधित ठेकेदार को 31 लाख रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट कराना पड़ा. ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद यह एफडी जमा की गई, जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जब्त की गई कार को छोड़ दिया.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के दौरान ईडी ने बीरेंद्र राम और उनसे जुड़े लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की थी. इस दौरान कई महंगी गाड़ियां जब्त की गई थीं. जांच में सामने आया कि राजेश कुमार कंस्ट्रक्शन, परमानंद सिंह बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स आरएम कंस्ट्रक्शन ने काम के बदले बीरेंद्र राम को महंगी गाड़ियां रिश्वत में दी थीं.
ईडी ने इन तीनों कंपनियों से जुड़ी कुल तीन गाड़ियों को जब्त किया था. इनमें मेसर्स आरएम कंस्ट्रक्शन की ओर से दी गई टोयोटा फॉर्च्यूनर भी शामिल थी. इस गाड़ी को छुड़ाने के लिए आरएम कंस्ट्रक्शन ने कानूनी लड़ाई शुरू की. ठेकेदार की ओर से दलील दी गई कि गाड़ी बैंक लोन से खरीदी गई थी और यह कंपनी मालिक के बेटे अंकित साहू के नाम पर रजिस्टर्ड है. पहले स्तर पर राहत नहीं मिलने के बाद ठेकेदार ट्रिब्यूनल पहुंचा. ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया कि गाड़ी की कीमत के बराबर 31 लाख रुपये का एफडी जमा कराया जाए. एफडी जमा होने के बाद ईडी ने कार छोड़ दी.
ईडी की जांच में यह भी सामने आया कि बीरेंद्र राम ने मेसर्स आरएम कंस्ट्रक्शन को 13.50 करोड़ रुपये के दो ठेके दिए थे और परियोजना की लागत 62 लाख रुपये बढ़ाई थी. इसके बदले ठेकेदार ने उन्हें फॉर्च्यूनर गाड़ी दी थी. पूछताछ में कंपनी के मालिक और उसके बेटे ने पीएमएलए की धारा 50 के तहत दिए बयान में रिश्वत देने की बात स्वीकार की थी.







