भोपाल की इस यूनिवर्सिटी में छात्रों का टोटा, हिंदी की पढ़ाई में नौकरी का डर, 134 में से 78 कोर्स बंद

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भोपाल: साहित्य और संस्कारों की भाषा हिंदी रोजगार की भाषा नहीं बन पा रही है. यही कारण है कि युवा हिंदी माध्यम से पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं. उनको डर है कि कहीं हिंदी मीडियम से इंजीनियरिंग और मेडिकल करने के बाद नौकरी मिलेगी या नहीं. यही कारण है कि हिंदी मीडियम के स्कूल और कॉलेजों के दिन लदते जा रहे हैं. यहां न तो स्टूडेंट आना चाह रहे हैं और न ही यहां पर्याप्त फैकल्टी है. इन्ही हालातों के कारण भोपाल में बना मध्य प्रदेश का पहला हिंदी विश्वविद्यालय बदहाली की तस्वीर बन चुका है.

ऐसी बदहाली, 14 साल में 78 कोर्स बंद
शैक्षणिक वर्ष 2012-13 में अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय का पहला सत्र शुरु हुआ था. उस समय यहां करीब 60 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था. तब विश्वविद्यालय प्रशासन ने यहां मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी कोर्स सहित करीब 134 कोर्स हिंदी माध्यम से शुरु किया था. लेकिन अब हिंदी मीडियम में इन डिग्रियों के लिए छात्र नहीं मिल रहे. इसके कारण हिंदी विश्वविद्यालय में कई कोर्स बंद हो चुके हैं. बीते 14 सालों में ही यहां 78 कोर्स बंद हो गए, अब केवल यूजी, पीजी और डिप्लोमा समेत 56 कोर्स का संचालन किया जा रहा है.

बिना तैयारी शुरु की इंजीनियरिंग, बंद करनी पड़ी
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय था, जहां साल 2016 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी तरह से हिंदी में शुरू की गई थी. इसका मकसद था आमतौर पर अंग्रेजी क्षेत्र से जोड़ कर देखे जाने वाली इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा मिल सके. इंजीनियरिंग के 3 कोर्स में 90 सीटें थी. लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन ने हिंदी में इंजीनियरिंग तो शुरु कर दी, लेकिन ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन यानि एआईसीटीई की अनुमति नहीं ली. जिसे कारण बाद में यह कोर्स बंद करना पड़ा.

हिंदी में जॉब अपार्च्युनिटी को लेकर संशय
हिंदी से पढ़ाई करने वाले छात्रों की सबसे बड़ी चिंता जॉब अपार्च्युनिटी को लेकर होती है. हिंदी से पढ़ाई करने वाले छात्रों को डर होता है कि उनको रोजगार मिलेगा या नहीं. क्योंकि अधिकतर हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वालों को मेडिकल, इंजीनियरिंग या अन्य प्रोफेशनल कंपनियों में नौकरी मिलने में दिक्कत होती है. वहीं इस विश्वविद्यालय में कई प्रोफेशनल कोर्स का संचालन किया जा रहा है, लेकिन कैंपस नहीं आने से भी स्टूडेंट में हिंदी की पढ़ाई पर भरोसा नहीं हो रहा है.

छात्रों की संख्या बढ़ाने के हो रहे प्रयास
अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलगुरु देव आनंद हिंडोलिया ने बताया कि, ''हिंदी माध्यम से शुरु किए गए कई कोर्स बाद में एआईसीटीई समेत अन्य संस्थाओं से अनुमति नहीं मिलने के कारण शुरु नहीं हो सके या उनको बंद करना पड़ा. हालांकि अब एक बार फिर हिंदी में इंजीनियरिंग शुरु करने की तैयारी की जा रही है. विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं. सभी स्टूडेंट को बस परिवहन की सुविधा भी दी जा रही है.''

यूजीसी के नियमों का नहीं हो रहा पालन
यूजीसी (University Grants Commission) के नियमानुसार विवि की वेबसाइट में पाठ्यक्रम, सीटों की संख्या, फैकल्टी आदि की जानकारी होनी चाहिए, लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है. इधर अनुवाद किए हुए सिलेबस और किताबों से स्टूडेंट का पढ़ाई करनी पड़ रही है. हिंदी मीडियम के छात्रों को स्टडी मटेरियल नहीं मिल पा रही है. वहीं विश्वविद्यालय में हिंदी माध्यम में पढ़ाने वाले योग्य प्रोफेसरों की भी कमी है.

56 कोर्स पढ़ाने के लिए 35 फैकल्टी
हिंदी विश्वविद्यालय में एडमिशन कम होने का एक बड़ा कारण नियमित प्रोफेसरों की कमी है. बीते 14 सालों में विश्वविद्यालय द्वारा साल 2023 में 13 नियमित असिस्टेंड प्रोफेसरों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन अनियमितता के आरोप के कारण इनके प्रकरण भी कोर्ट में चल रहे हैं. हालांकि ये असिस्टेंड प्रोफेसर विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इनके अलावा विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए 22 अतिथि विद्वान भी नियुक्त किए गए हैं. फिर भी 56 कोर्स को पढ़ाने के लिए केवल 35 फैकल्टी ही विश्वविद्यालय में मौजूद हैं.

हिंदी में 4 स्टूडेंट ने लिया एडमिशन, कुल 174 प्रवेश
अटल बिहारी बाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय में नए शैक्षणिक सत्र में कुल 174 सीटों पर प्रवेश हुआ है. इनमें पीजी के 27 कोर्स में 63 और यूजी के 11 पाठ्यक्रमों में 99 स्टूडेंट ने प्रवेश लिया है. वहीं, 13 सर्टिफिकेट व डिप्लोमा कोर्सेस में केवल 12 एडमिशन हुए हैं. सबसे खास बात यह है कि यह मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां सभी कोर्सेस का संचालन हिंदी भाषा में ही किया जाता है, इसके बावजूद यहां हिंदी के पाठ्यक्रमों में ही प्रवेश लेने वाले बच्चों की कमी है. इस सत्र में केवल 4 बच्चों ने प्रवेश लिया है. वहीं 11 पाठ्यक्रम ऐसे हैं, जहां केवल एक-एक स्टूडेंट ने एडमिशन लिया है.