छतरपुर: नवरात्रि के समय सभी गरबा पंडालों के प्रवेश द्वार पर गौमूत्र रखना चाहिए और उन (मुस्लिम) लोगों को गरबा पंडालों में नहीं आना चाहिए. ये बातें बाबा बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कही. धीरेंद्र शास्त्री रविवार को छतरपुर स्थित प्रसिद्ध बंबरबेनी मंदिर में दर्शन करने पहुंचे थे. नवरात्रि शुरू होने से एक दिन पहले यहां पहुंचे बाबा बागेश्वर का भव्य स्वागत किया गया. लोगों ने उन पर पुष्प वर्षा की और आरती के साथ स्वागत किया.
'ऐसा लगा मानों वैष्णों देवी के दर्शन हो गए'
छतरपुर के राजनगर विधानसभा क्षेत्र में स्थित है मां बंबरबेनी का एक प्रसिद्ध मंदिर. यहां पूरे सालभर श्रद्धालुओं का आगमन रहता है. रविवार को धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी मां बंबरबेनी के दर्शन करने पहुंचे. वे 7 नवंबर से शुरू होने वाली अपनी 'सनातन हिंदू एकता पदयात्रा' के लिए मां को निमंत्रण देने पहुंचे थे. मां की अलौकिकता से प्रसन्न धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि "यहां आकर ऐसा लग रहा है मानों वैष्णो देवी के दर्शन हो गए. मां बंबरबेनी का यह बहुत अलौकिक और दिव्य धाम है." उन्होंने कहा कि वे जल्द यहां कथा करने आएंगे.
गरबा पंडालों के प्रवेश द्वार पर गौमूत्र रखने की सलाह
धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि "मैंने मां से प्रार्थना कि है लवकुशनगर क्षेत्र हमेशा समृद्ध बना रहे. बहुत जल्द बंबरबेनी मंदिर तक पहुंचने के लिए रोड का निर्माण भी होने वाला है." गरबा पंडालों में मुस्लिमों के प्रवेश को लेकर उन्होंने कहा कि "जब सनातन धर्म के लोग हजयात्रा में नहीं जाते तो उनको (मुस्लिमों) को भी गरबा पंडालों में नहीं आना चाहिए. मैं तो कहता हूं कि हर गरबा पंडाल के प्रवेश द्वार पर गोमूत्र रखना चाहिए." इस अवसर पर राजनगर विधायक अरविंद पटेरिया भी मौजूद रहे.
त्रेतायुग से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
मां बंबरबेनी का यह मंदिर लवकुशनगर की पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर का इतिहास त्रेतायुग से भी जुड़ा है. मंदिर के जानकार हनुमान दास बताते हैं "भगवान राम द्वारा माता सीता का निष्कासन किए जाने के बाद सीता मां यहीं पर स्थित वाल्मीकि आश्रम में रही थीं. यहीं पर उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया था. तभी से इस स्थान का नाम लवकुश नगर हो गया. वैसे तो साल भर यहां भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्रि के समय यहां माता रानी के भक्तों का मेला लगता है."