Friday, February 7, 2025
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बड़े जिलों की अध्यक्षी होल्ड

भोपाल । मप्र भाजपा में जिलाध्यक्षों के चुनाव की डेट लाइन बीत गई, लेकिन राजधानी भोपाल समेत बड़े जिलों के अध्यक्षों के नाम पर समन्वय नहीं बन पाया है। इस कारण भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, सागर, सतना जैसे बड़े शहरों में जिला अध्यक्ष के नाम की घोषणा होल्ड कर दी गई है। भाजपा सूत्रों का कहना है संभवत: प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही अब बड़े जिलों के अध्यक्षों के नाम की घोषणा होगी। जानकारों का कहना है कि पार्टी का फोकस है कि पांच से दस जनवरी के बीच 40 जिलों के अध्यक्षों के नाम का ऐलान हो जाएगा, ताकि प्रदेश अध्यक्ष का निर्वाचन समय पर हो सके। पार्टी के संविधान के अनुसार आधे से अधिक जिलों के जिलाध्यक्षों के निर्वाचन के बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है।
गौरतलब है की पार्टी ने संगठन चुनाव को लेकर दिशा-निर्देश जारी किया था कि नेता आपस में समन्वय बनाकर पदाधिकारियों का चयन करें। लेकिन पहले मंडल अध्यक्ष और अब जिलाध्यक्षों के चुनाव में नेताओं के बीच समन्वय नहीं बन पा रहा है। भाजपा के संगठन पर्व के अन्तर्गत संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया में जिला अध्यक्ष के चयन को लेकर बड़े शहरों सहित करीब एक दर्जन जिला अध्यक्ष के नाम को लेकर सांसद, विधायक और संगठन नेताओं में रार ठन गई है। प्रदेश भाजपा को 31 दिसम्बर तक जिला अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया को पूरा करना था। लेकिन जिला अध्यक्ष के चयन में आपसी गुटबाजी के चलते दिसम्बर माह के खत्म होने तक किसी भी जिला अध्यक्ष का नाम घोषित नहीं किया गया। अब जिला अध्यक्ष के नाम का ऐलान नए साल में ही हो सकेगा। माना जा रहा है कि 2 जनवरी को प्रदेश प्रभारी डॉ. महेन्द्र सिंह के भोपाल प्रवास के बाद ही कुछ नामों की घोषणा हो सकती है।

40 जिलाध्यक्षों के नाम की होगी घोषणा
 माना जा रहा है कि पांच से दस जनवरी के बीच 40 जिलों के अध्यक्षों के नाम का ऐलान हो जाएगा, ताकि प्रदेश अध्यक्ष का निर्वाचन समय पर हो सके। पार्टी के संविधान के अनुसार आधे से अधिक जिलों के जिलाध्यक्षों के निर्वाचन के बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। जिला अध्यक्ष के पद को लेकर मची खींचतान में अधिकाश बड़े शहरों के नाम है। सूत्रों की मानें तो फिलहाल पार्टी भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, सागर, सतना जैसे बड़े शहरों में जिला अध्यक्ष के नाम की घोषणा बाद में करेगी। जिला अध्यक्ष के नाम को लेकर दिल्ली में हुई बैठक के बाद आलाकमान ने गेंद एक बार फिर प्रदेश नेतृत्व के पाले में डाल दी है। आलाकमान का कहना है कि पहले प्रदेश नेतृत्व इन नामों को लेकर रायशुमारी करे और एक नाम पर सहमति के प्रयास करें। बेहद जरूरी होने पर ही तीन नाम का पैनल बनाकर दिल्ली भेजे, जिस पर आलाकमान निर्णय करके नाम को फाइनल करेगा।

तीन से चार सूची में नामों का ऐलान
भाजपा जिला अध्यक्ष के नाम का ऐलान तीन से चार सूची में करेगी। इसके लिए पार्टी पहले उन जिलों का चयन कर रही है जहां सांसद, विधायक एवं वरिष्ठ नेताओं ने एक ही नाम को लेकर अपनी सहमति दे दी है। भाजपा जिला अध्यक्ष के चुनाव को लेकर जो गहमागहमी है उसमें कई जिलों में पुराने जिला अध्यक्षों को मौका मिल सकता है। इसके लिए पार्टी ने उन जिला अध्यक्षों के नाम का चयन किया है जिन्हें यह पद संभाले ज्यादा समय नहीं हुआ है। साथ ही जिनकी आयु अभी 60 वर्ष भी नहीं हुई है। इसके अलावा जो नए जिले बने हैं उनके जिला अध्यक्षों को भी अवसर मिल सकता है क्योंकि उनके कार्यकाल को अभी एक या डेढ़ वर्ष ही हुआ है। इसके बाद दूसरे नंबर पर वह जिला अध्यक्ष हंै जिन्होंने पिछले विधानसभा, लोकसभा चुनाव में पार्टी संगठन की मंशा अनुरूप काम करते हुए पार्टी को मजबूती दिलाई है। जिसमें वह सीट भी शामिल रही है जिनको लेकर पार्टी में संशय की स्थिति थी।

कांग्रेस से नेताओं नहीं मिलेगी जिले की कमान!
पार्टी नए-पुराने कार्यकर्ताओं के साथ समरसता का दावा करती है लेकिन संगठन चुनाव में अलग ही तस्वीर सामने आ रही है। सरकार बनाने की गरज में लिए गए फैसलों पर मौन रहने वाले नेता और समर्थक अब संगठन में नियुक्ति पर किसी दलील को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में दलबदल कर आप नेताओं का जिला अध्यक्ष पद पाना मुश्किल नजर आ रहा है। पार्टी ने जिला अध्यक्ष के लिए जो क्राइटेरिया तय किया है उसमें दो बार कार्यसमिति सदस्य होना जरूरी है। ऐसे में जो लोग दूसरे दल से आए हैं उनके जिला अध्यक्ष बनने की संभावना नजर नहीं आ रही है। हालांकि दूसरे दल से आए कई बड़े नेता अपने समर्थक को जिला अध्यक्ष बनवाने के प्रयास में लगे है। इसको लेकर भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है और बगावत के सूर उठना शुरू हो गए है। जिन नेताओं के नाम रायशुमारी में शामिल किए गए हैं। वह अब प्रदेश कार्यालय के चक्कर लगा रहे है। कुछ प्रदेश नेतृत्व से मिल कर अपने नाम को फाइनल कराने के प्रयास में भी लगे है। कई नेता तो प्रदेश संगठन से मिलकर अपने समर्थकों के नाम की पैरवी करने में लगे हैं।

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