ग्वालियर के महाकाल वन में बालू से बना चमत्कारी शिवलिंग, हरतालिका तीज पर होती है हर मुराद पूरी

0
16

उज्जैन: हरतालिका तीज पर्व पर महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति और युवतियां मनचाहे वर की कामना लिए निराहार और निर्जल रहकर भगवान शिव की आराधना करती हैं. इस दिन शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. जब बात महाकाल की नगरी उज्जैन की हो तो इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. बाबा महाकाल की नगरी में एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां बालू से बने दिव्यलिंग के दर्शन मात्र से सारे दुर्भाग्य खत्म हो जाते हैं. इस दिन घर-घर में बालू से बने शिवलिंग के पूजन का भी महत्व है. यहां पर देवी पार्वती की अद्भुत प्रतिमा है. मंदिर का इतिहास और महत्व के बारे में जानते हैं.

61वें महादेव के रूप में विराजमान सौभाग्येश्वर मंदिर

उज्जैन के पटनी बाजार स्थित द्वारकाधीश गोपाल मंदिर के पास 84 महादेव में से एक 61वें महादेव के रूप में विराजमान इस मंदिर का नाम सौभाग्येश्वर महादेव मंदिर है. 26 अगस्त को हरतालिका तीज पर्व के चलते 25 अगस्त की रात 12 बजे मंदिर के पट खोल दिए गए. पुजारी राजेश पंड्या के अनुसार "भगवान का विशेष पंचाभिषेक आरती पूजन होगा और महिलाओं, युवतियों के दर्शन का क्रम शुरू हो जायेगा जो 26 अगस्त की रात 12 बजे तक जारी रहेगा."

 

पुजारी राजेश पंड्या बताते हैं कि "इस दिन विशेष कर भगवान को बिल्वपत्र, धतूरा, केले, ककड़ी, भुट्टा और अन्य चीजें अर्पित की जाती हैं. महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना लिए और युवतियां मनचाहे वर की कामना लिए निराहार, निर्जल रहकर व्रत करती हैं. जैसे देवी पार्वती शिव को पाने के लिए दीर्घकाल तक जल, अन्न त्याग कर व्रत किया था.

दर्शन मात्र से खत्म हो जाते हैं सारे दुर्भाग्य

मंदिर के पुजारी राजेश पंड्या ने चर्चा में बताया कि "पटनी बाजार में यह मंदिर आदि अनादि काल से है. स्कन्द पुराण में भी इसका उल्लेख है. प्राकृत काल में अश्ववाहन राजा हुए जिनकी पत्नी मदमंजरी अति सुंदर, सुशील और पतिव्रता थी, लेकिन दुर्भाग्य ऐसा कि राजा जब भी स्पर्श करते तो राजा को मूर्छा आ जाती. राजा की प्रताड़ना और दुर्भाग्य से दुखी मदमंजरी को राजा ने एक दिन क्रोधित होकर जंगलों में भेज दिया.

जहां मदमंजरी को तपस्वी मुनि मिले और मुनि से मदमंजरी ने इस समस्या का उपाय पूछा. मुनि ने अपने तपोबल से पता करके मदमंजरी को महाकाल वन में बालू से बने शिव की उपासना करने को कहा. मुनि के बताए अनुसार मदमंजरी ने शिव की उपासना की और उन्हें सौभाग्य किया जिसके बाद उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. तभी से इस मंदिर का नाम सौभाग्येश्वर महादेव मंदिर पड़ा. यह शिवलिंग इतना दिव्य है कि इसके दर्शन मात्र से सारे दुर्भाग्य खत्म हो जाते है."

बालू से बने शिवलिंग और देवी की है अद्भुत प्रतिमा

मंदिर के पुजारी राजेश पंड्या बताते हैं कि "ये शिवलिंग बालू से बना हुआ है. जैसे देवी पार्वती ने शिव आराधना और उन्हें पाने के लिए बालू से शिवलिंग बना कर भगवान की उपासना की थी, वैसे ही यहां भी बालू से बने इस दिव्यलिंग के पूजन को महिलाएं-युवतियां पहुंचती है. मंदिर में देवी पार्वती की जो अद्भुत प्रतिमा है उसमें देवी के एक हाथ में शिव दूसरे में गणेश विराजमान हैं. साथ ही उनकी सहकीय जया और विजया भी हैं. मंदिर में अष्ट विनायक भी विराजमान हैं. इसलिए मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों की कतार लगती है."

घर-घर बालू से बने शिवलिंग

मंदिर में दर्शन पूजन को पहुंची महिलाओं में से उर्मिला जोशी ने कहा "हम महिलाएं देवी पार्वती की तरह ही भगवान को प्रसन्न करने के लिए बालू के शिवलिंग बना कर घर के मंदिर में स्थापित करते हैं और पति, पुत्र, पौत्र की आयु वृद्धि, घर परिवार में सुख समृद्धि और बच्चों के लिए अच्छे घर परिवार में विवाह के लिए भगवान से मंगलकामना करते हैं."

ज्योतिषाचार्य के अनुसार खास योग

ज्योतिषाचार्य अमर डब्बेवाला ने बताया कि "हरतालिका तीज पर्व इस बार हस्त नक्षत्र और साध्य योग में 26 अगस्त को तिथि अनुसार भाद्र पद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि है. हस्त नक्षत्र मंगलवार को विशेष माना जाता है और साध्य योग में किया गया पूजन पति की दीर्घायु बढ़ाता है, संतान सुख देता है. इस अनुसार उत्तम संयोग इस वर्ष है."

 

कठिन तपस्या और अटूट निष्ठा का व्रत

विदिशा में भी महिलाएं हरतालिका का व्रत रख रही हैं. विभिन्न शिव मंदिरों में सुबह से ही महिलाओं का भीड़ लगनी शुरू हो गई है. हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए हरतालिका का व्रत सबसे कठिन व्रत माना जाता है. धर्माचार्य पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि "हरतालिका तीज व्रत का महत्व अन्य व्रतों की तुलना में अधिक कठिन और कठोर माना गया है. व्रत रखने वाली महिलाएं न केवल अन्न-जल का त्याग करती हैं, बल्कि कई तो दिनभर जल तक ग्रहण नहीं करतीं.

यह व्रत तप, त्याग और निष्ठा का प्रतीक है. यह व्रत केवल सुहागिन महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि अविवाहित कन्याओं के लिए भी विशेष महत्व रखता है. सुहागिनें जहां पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं अच्छे और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए यह कठिन तपस्या करती हैं."