डॉ. नवीन जोशी
भोपाल । प्रदेश में अब तेन्दूपत्ते एवं काष्ठ चिरान के अवैध व्यापार पर जेल की सजा नहीं होगी तथा सिर्फ जुर्माना लगाया जायेगा। यह नया प्रावधान विधानसभा के गत वर्षाकालीन सत्र में पारित दो विधेयकों को राज्यपाल द्वारा स्वीकृति दिये जाने से प्रभावशील हो गया है।उल्लेखनीय है कि वन विभाग के अंतर्गत प्रशासित मप्र तेन्दूपत्ता व्यापार विनियमन अधिनियम 1964 में प्रावधान था कि तेन्दूपत्ते का अवैध व्यापार एवं परिवहन करने पर तीन माह से लेकर एक वर्ष की जेल की सजा प्रावधान था। नये संशोधन के जरिये अब जेल की सजा प्रावधान का खत्म कर इसके स्थान पर पांच हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान कर दिया गया है। इसी प्रकार, मप्र काष्ठ चिरान विनियमन अधिनियम 1984 में प्रावधान था कि आरा मशीनें लगाने वाले अपनी बही, लेखे, अभिलेख, घोषणा, विवरणी या अन्य दस्तावेज रखने या देने से इंकार करते हैं तो उन्हें छह माह की जेल की सजा एवं छह हजार रुपये का जुर्माना हो सकेगा। परन्तु अब संशोधन के जरिये जेल की सजा का प्रावधान खत्म कर दिया गया है तथा इसके स्थान पर प्रावधान किया गया है कि प्रथम अपराध पर दस हजार रुपये एवं द्वितीय व पशचातवर्ती अपराध पर बीस हजार रुपये का जुर्माना वसूला जायेगा।उक्त दोनों संशोधित अधिनियमों के उद्देश्यों में कहा गया है कि कारबार करने में आसानी यानि ईज ऑफ डूईंग बिजनेस एक महत्वपूर्ण कारक है जो राष्ट्र एवं राज्य के शीघ्र आर्थिक विकास में सहायता करता है। इस दृष्टि से, ऐसे कृत्यों को, जिनमें केवल वित्तीय हानियां अंतर्विलित हैं, अपराधमुक्त होना चाहिये।ज्ञातव्य है कि राज्य सरकार मप्र वनोपज व्यापार विनियमन अधिनियम में भी जेल की सजा का प्रावधान खत्म करना चाहती थी परन्तु वन विभाग ने जंगल बचाने के लिये इसे उपयुक्त नहीं पाया था, इसलिये इसमें जेल का सजा यथावत रखी गई है। इसमें वनोपजों के अवैध व्यापार पर दो साल की जेल की सजा एवं 25 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।