Saturday, November 9, 2024
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चुनावी सियासत: जो भोपाल का नाम भोजपाल करेगा, सरकार उसी की बनेगी

विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही भोपाल का नाम बदलने को लेकर सियासत गरमाई

भोपाल होगा भोजपाल ?: प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजधानी भोपाल का नाम भोजपाल करने का मुद्दा एक बार फिर गरमाया गया है। भोपाल के भेल दशहरा मैदान में श्रीराम कथा करने आए जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने भोपाल का नाम भोजपाल करने का राग छेड़ दिया है। वे रोजाना कथा की शुरुआत भोपाल का नाम भोजपाल करने के प्रसंग से करते हैं और कथा के दौरान बार-बार इस विषय को छेड़ते हैं। कथा के दौरान उन्होंने यहां तक कह दिया कि जो भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल करेगा, सरकार उसी की बनेगी। उन्होंने यह भी कहा कि आज नहीं तो कल भोपाल का नाम भोजपाल होगा ही। जब तक भोपाल का नाम भोजपाल नहीं हो जाता, तब तक अगली कथा करने वे भोपाल नहीं आएंगे। उन्होंने कहा, मैं भोजपाल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात करूंगा। यदि होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम किया जा सकता हैं, तो भोपाल में एक ही अक्षर ज ही तो जोडऩा है। मप्र विधानसभा में इसका प्रस्ताव पास किया जाना चाहिए। एक तरफ जहां भाजपा नेता रामभद्राचार्य की बात का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने इस मामले में चुप्पी साध ली है।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने छेड़ा भोपाल का नाम भोजपाल करने का राग

दरअसल, राजधानी में श्रीराम कथा का आयोजन भोजपाल महोत्सव मेला समिति करवा रही है। समिति के कर्ताधर्ता आलोक शर्मा, विकास वीरानी, सुनील यादव भाजपा के नेता हैं। चुनावी साल में वे इस बात का श्रेय लेना चाहते हैं कि उनकी पहल पर भोपाल का नाम भोजपाल किया गया, यही वजह है कि रामभद्राचार्य को ढाल बनाकर उन्होंने भोपाल का नाम भोजपाल करने की मुहिम छेड़ रखी है। उनकी मुहिम क्या रंग लाती है, यह आने वाला वक्त बताएगा। जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज भोपाल में 1361वीं श्रीराम कथा कर रहे हैं। वे तब सुर्खियों में आए, जब भोपाल का नाम भोजपाल किए जाने को लेकर उन्होंने प्रण लिया। उनका कहना है कि जब इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया है, फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया है, तो भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल क्यों नहीं किया जा सकता?

जल्द होगी प्रशासकीय कार्यवाही

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि भाजपा हमेशा संतों की भावनाओं और निर्देशों का पालन करती है। जैसी संत जी की मंशा है, उस हिसाब से प्रशासकीय कार्यवाही शीघ्र की जाएगी। उधर, मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि वे इस बारे में कुछ नहीं कह सकते।

सबसे पहले 46 साल पहले उठी थी आवाज

भोपाल का नाम भोजपाल करने की मांग करीब 46 साल पहले वर्ष 1977 में सबसे पहले भाई उद्धवदास मेहता ने राज्य और केंद्र सरकार से की थी। तब आपातकाल खत्म हुआ था और नई सरकार बनी थी। उस समय एक केंद्रीय मंत्री भोपाल यात्रा पर आए थे। भाई उद्धवदास मेहता ने मंत्री को ज्ञापन भी सौंपा था। मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री से भी मांग की गई थी।

सीएम शिवराज कर चुके हैं घोषणा

12 साल पहले यानी 28 फरवरी 2011 मौका था लाल परेड मैदान पर राजा भोज के राज्यारोहण कार्यक्रम का। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल का नाम भोजपाल करने का ऐलान किया था। मुख्यमंत्री ने कहा था-भोपाल का नाम राजा भोज के नाम पर भोजपाल रखने से जुड़ा प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। उन्होंने कहा-भोपाल का प्राचीन नाम भोजपाल ही था। इससे पहले साल 2011 में इस संबंध में तत्कालीन भाजपा विधायक विश्वास सारंग ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिखी थी। 2011 में केंद्र में यूपीए की सरकार थी। ऐसे में भोपाल का नाम बदलने पर सहमति नहीं बन पाई।

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