भोपाल । मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती आजकल अपनी जुबान से कम और इंटरनेट मीडिया के जरिए ज्यादा मुखर हैं। वह अक्सर ट्वीट कर अपने आगामी कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में जानकारी देती रहती हैं। अब उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन को लेकर अहम बात कही है। उन्होंने एक के बाद एक 17 ट्वीट करते हुए कहा कि वह परिवारजनों को सभी बंधनों से मुक्त करती हैं और खुद भी पारिवारिक बंधनों से मुक्त हो रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि अब वह 'दीदी मां' कहलाएंगी। मेरे गुरु ने आदेश दिया था कि मैं समस्त निजी संबंधों एवं संबोधनों का परित्याग करके मैं मात्र दीदी मां कहलाऊं और समस्त विश्व समुदाय मेरा परिवार बने। मैंने भी निश्चय किया था कि अपने सन्यास दीक्षा के 30वें वर्ष के दिन मैं उनकी आज्ञा का पालन करने लग जाऊंगी। उमा भारती ने 17 नवम्बर 1992 को उडुपी, कर्नाटक के कृष्ण भक्ति संप्रदाय के महान संत- श्री विश्वेश तीर्थ महाराज (पेजावर स्वामी) से अमरकंटक में नर्मदा के तट पर संन्यास की दीक्षा ली थी। उमा ने कहा, जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ही अब वही मेरे लिए गुरुवर हैं।
उमा भारती ने अपने ट्वीट्स में यह कहा.
मेरी संन्यास दीक्षा के समय पर मेरे गुरु ने मुझसे एवं मैंने अपने गुरु से 3 प्रश्न किए, उसके बाद ही संन्यास की दीक्षा हुई। मेरे गुरु के 3 प्रश्न थे- (1) 1977 में आनंदमयी मां के द्वारा प्रयाग के कुंभ में ली गई ब्रह्मचर्य दीक्षा का क्या मैंने अनुशरण किया है? (2) क्या प्रत्येक गुरु पूर्णिमा को मैं उनके पास पहुंच सकूंगी? (3) मठ की परंपराओं का आगे अनुशरण कर सकूंगी? तीनों प्रश्न के उत्तर में मेरी स्वीकारोक्ति के बाद मैंने उनसे जो तीन प्रश्न किए- (1) क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है? (2) मठ की परंपराओं के अनुशरण में मुझसे भूल हो गई, तो क्या मुझे उनका क्षमादान मिलेगा? (3) क्या मुझे आज से राजनीति त्याग देना चाहिए? उमा ने आगे कहा कि पहले दो प्रश्नों के अनुकूल उत्तर गुरुजी द्वारा मिलने के बाद तीसरे प्रश्न का उनका उत्तर जटिल था। मेरे परिवार से संबंध रह सकते हैं, किंतु करुणा एवं दया। मोह या आसक्ति नहीं। साथ ही, देश के लिए राजनीति करनी पड़ेगी। राजनीति में मैं जिस भी पद पर रहूं, मुझे एवं मेरी जानकारी में सहयोगियों को रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार से दूर रहना होगा। इसके बाद मेरी संन्यास दीक्षा हुई। मेरा मुंडन हुआ, मैंने स्वयं का पिंडदान किया। मेरा नया नामकरण संस्कार हुआ, मैं उमा भारती की जगह उमाश्री भारती हो गई।
पारिवारिक पृष्ठभूमि का जिक्र
उमा ने ट्वीट्स के जरिए अपनी जाति और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में भी खुलकर बात की। उन्होंने लिखा- मैं जिस जाति, कुल व परिवार में पैदा हुई, उस पर मुझे गर्व है। मेरे निजी जीवन व राजनीति में वह मेरा आधार व सहयोगी बने रहे। हम चार भाई दो बहन थे, जिसमें से 3 का स्वर्गारोहण हुआ है। पिता गुलाब सिंह लोधी खुशहाल किसान थे। मां बेटी बाई कृष्ण भक्त सात्विक जीवन जीने वाली थीं। मैं घर में सबसे छोटी हूं। यद्यपि पिता के अधिकतर मित्र कम्युनिस्ट थे, किंतु मुझसे ठीक बड़े भाई अमृत सिंह लोधी, हर्बल सिंह जी लोधी, स्वामी प्रसाद जी लोधी और कन्हैयालाल जी लोधी सभी जनसंघ व भाजपा से मेरे राजनीति में आने से पहले ही जुड़ गए थे।
राजनीति के कारण परिजनों ने भी उठाए कष्ट, झूठे केस बने
उमा भारती ने लिखा- मेरे अधिकतर भतीजे बाल स्वयं सेवक हैं। मुझे गर्व है कि मेरे परिवार ने ऐसा काम नहीं किया, जिससे मेरा लज्जा से सिर झुके। इसके उल्टे उन्होंने मेरी राजनीति के कारण कष्ट उठाए। उन लोगों पर झूठे केस बने, उन्हें जेल भेजा गया। भतीजे हमेशा सहमे से व चिंतित रहे कि उनके किसी कृत्य से मेरी राजनीति ना प्रभावित हो जाए। वह मेरे लिए सहारा बने रहे। मैं उन पर बोझ बनी रही।
आचार्य विद्यासागर महाराज को बताया गुरु
उमा ने लिखा- संयोग से जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज भी कर्नाटक के हैं। अब वही मेरे लिए गुरुवर हैं। उन्होंने मुझे आज्ञा दी है कि समस्त निजी संबंधों व संबोधनों का परित्याग करके मैं मात्र 'दीदी मां' कहलाऊं व अपने भारती नाम को सार्थक करने के लिए भारत के सभी नागरिकों को अंगीकार करूं। संपूर्ण विश्व समुदाय ही मेरा परिवार बने। मैंने भी निश्चय किया था कि संन्यास दीक्षा के 30वें वर्ष के दिन मैं उनकी आज्ञा का पालन करने लग जाऊंगी। यह आज्ञा उन्होंने 17 मार्च, 2022 को रहली, जिला सागर में सार्वजनिक तौर पर माइक से घोषणा करके मुनिजनों के सामने दी थी। मैं परिवारजनों को सभी बंधनों से मुक्त करती हूं। मैं स्वयं भी 17 नवंबर को मुक्त हो जाऊंगी। मेरा संसार व परिवार व्यापक हो चुका है। अब मैं सारे विश्व समुदाय की 'दीदी मां' हूं। मेरा निजी परिवार नहीं है। अपने माता-पिता के दिए हुए उच्चतम संस्कार, गुरु की नसीहत, जाति व कुल की मर्यादा, पार्टी की विचारधारा और देश के लिए मेरी जिम्मेदारी इससे मैं खुद को कभी मुक्त नहीं करूंगी।