जयपुर। राजस्थान सरकार द्वारा सरकारी मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल और अधीक्षकों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाए जाने पर डॉक्टरों में नाराजगी बढ़ गई है। राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (आरएमसीटीए) ने इस निर्णय को क्लिनिकल चिकित्सकों को हाशिये पर धकेलने वाला बताया है। एसोसिएशन ने प्रिंसिपल और अधीक्षक पदों के लिए आवेदन की अधिकतम आयु 57 वर्ष तय करने के नियम को भी एनएमसी के दिशा-निर्देशों के विपरीत बताया।
आरएमसीटीए के स्टेट कोऑर्डिनेटर और प्रवक्ता डॉ. प्रवीण जोशी ने कहा कि निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगाना अव्यावहारिक है। उन्होंने कहा, सरकारी ड्यूटी पूरी करने के बाद अनुभवी चिकित्सक एनपीए त्यागकर नियमों के अनुसार निजी प्रैक्टिस करते हैं। इससे हजारों मरीज, जो दिन में अस्पताल नहीं आ सकते, उन्हें शाम को उपचार मिल जाता है। इसे बंद करना जनसेवा के खिलाफ है।
आयु सीमा और योग्यता शर्तों पर भी सवाल
एसोसिएशन ने कहा कि जब रिटायरमेंट आयु 65 वर्ष है, तब 57 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा तय करना न केवल अव्यावहारिक बल्कि असंवैधानिक है। आरएमसीटीए का कहना है कि एनएमसी नियमों के अनुसार पांच वर्ष का प्रोफेसर अनुभव प्रिंसिपल बनने के लिए पर्याप्त है, जबकि राज्य सरकार ने नए आदेशों में सीनियर प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष और कई प्रशासनिक योग्यताओं को अनिवार्य कर दिया है। एसोसिएशन ने राज्य के बाहर के चिकित्सकों को प्रिंसिपल और अधीक्षक पदों पर नियुक्त करने के प्रावधान पर भी विरोध जताया है।









