झारखंड आंदोलन के अग्रदूत शिबू सोरेन: जननायक बनने की प्रेरक कहानी

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आदिवासियों के अधिकारों और शोषण के खिलाफ लड़ने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन हमेशा के लिए खामोश तो हो गए, मगर उनके जुझारूपन और हिम्मत की कहानियां जन्मस्थान नेमरा से लेकर पूरे झारखंड में आज भी गूंज रही हैं। सूदखोरों के खिलाफ लड़ने वाले शिक्षक पिता सोबरन मांझी की हत्या कर दी गई, तो शिबू सोरेन ने 13 साल की उम्र में ही सूदखोरी के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। सूदखोरों के इशारे पर पुलिस पीछे पड़ी, तो तीन साल तक जंगलों में छिपकर लड़ते रहे। डर था कि पिता की तरह उनकी और परिवार की भी हत्या कर दी जाएगी। नेमरा गांव में उनका पूरा कुनबा सहमा हुआ था। एक दिन शिबू गांव पहुंचे। जंगल से लाईं लकड़ियां बेचकर कुर्ता-पायजामा बनवाया और बोले- अब नेता बनेंगे और सूदखोरों से लड़ेंगे…और यहीं से शुरू हो गया झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो के नेता बनने का सफर।

दिशोम गुरु की दुनिया से विदाई के साथ ही उनकी जीवन गाथा से जुड़ी रील फिर उलटी चल पड़ी है। दिशोम गुरु पर शोध करने वाले और नेमरा गांव से लगे गोला रामगढ़ विद्यालय में प्राचार्य देवेंद्र बताते हैं- शिबू ने इसी विद्यालय में नौवीं तक पढ़ाई की। 27 नवंबर, 1957 को पिता सोबरन की हत्या हुई, तो सूदखोरों के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी। परिवार की जान की फिक्र होने पर नेमरा गांव छोड़कर संथाल बहुल गांव दुमका चले गए।

डिमरी विद्यालय में 1952-55 में उनके सहपाठी रहे श्रीराम महतो के बेटे सोहन बताते हैं कि उनके पिता शिबू सोरेन के किस्से सुनाते थे। वे भले ही दुमका में राजनीति कर रहे थे, मगर नेमरा वासियों की सुधबुध लेते रहते थे। किसी की समस्या होती, तो हाजिर हो जाते। खुद सीएम बनने और बेटे हेमंत के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी नेमरा आते, तो रास्ते में रुककर सबसे मिलते हुए घर जाते थे। बच्चों के जन्मदिन तक में शामिल होते। परिवार के शादी से लेकर छोड़े-बड़े आयोजनों में भी सबको बुलाते थे। इसी वजह से आदिवासियों में उनकी लोकप्रियता थी। घाटी से घिरे छोटे से गांव नेमरा में तालाब किनारे लुंगी पहने उनके भाई कुंदन सोरेन खपैरलनुमा मकान दिखाकर बताते हैं कि पूरा कुनबा आज भी उसी में रहता है। हेमंत के सीएम बनने के बाद से गांव की दशा कुछ बदली है। पुराने घर के बाहर ही एसी लगा एक कमरा भी दिखाई देने लगा है। कुंदन बताते हैं कि हेमंत और परिवार गांव में आता है, तो वहीं रहता है।

शिबू सोरेन के पुराने मकान के दरवाजे पर झामुमो का चुनाव चिन्ह तीर-कमान तो दीवारों पर लिखा है-दिशोम गुरु शिबू सोरेन जिंदाबाद…स्वर्गीय सोबरन सोरेन अमर रहें…दुर्गा सोरेन अमर रहें…जेएमएम-हेमंत बाबू जिंदाबाद…। दुर्गा सोरेन दिशोम गुरु के बेटे थे। शिबू की भतीजी जिला पंचायत सदस्य रेखा बताती हैं कि राजनीति के चलते ही दुर्गा की भी हत्या कर दी गई। परिवार वाले खूब किस्से सुनाते हैं, मगर शिबू सोरेन से जुड़े चर्चित निजी सचिव शशिनाथ झा हत्याकांड पर कुछ नहीं बोलते। नेमरा और आसपास के गांव वाले कहते हैं-सब राजनीति का मामला था।