जयपुर: राजस्स्थान के राज्य पेड़ खेजड़ी को लेकर पश्चिमी सीमावृर्ति जिलों में पिछले कुछ समय से आमजन में खासी नाराजगी है। कई संगठन खेजड़ी के संरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं। सोमवार को यहां बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र में भी खेजड़ी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के खिलाफ आंदोलन में स्थानीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने भी सरकारी अफसरों को जमकर खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने साफ किया कि खेजड़ी केवल पेड़ नहीं, बल्कि राज्य की पहचान, परंपरा और पर्यावरण का अभिन्न हिस्सा है।
बाड़मेर में खेजड़ी के कटान पर विरोध, लोग धरने पर बैठे
राजस्थान के पश्चिमी सीमावर्ती जिलों में इन दिनों खेजड़ी वृक्ष की अंधाधुंध कटाई को लेकर जनाक्रोश चरम पर है। सोमवार को बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र में इस मुद्दे पर स्थानीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने भी खुलकर प्रशासन की आलोचना की। आगे पढ़ें खेजड़ी से जुड़ी अहम जानकारी…
खेजड़ी सिर्फ पेड़ नहीं, धोरों की धरती पर हरियाली का आधार
राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी ( Prosopis cineraria ) दलहनी कुल का एक कांटेदार वृक्ष है, जिसे ‘शमी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह गहरे रेतीले टीलों में भी केवल 75 मिमी वर्षा में जीवित रह सकता है। इसकी जड़ें 20 मीटर तक गहराई में जाती हैं जिससे यह सूखे में भी हरा-भरा बना रहता है। यह वृक्ष न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से अहम है, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यावहारिक उपयोगों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि: खेजड़ी की पत्तियां और फलियां मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ती हैं जिससे उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।
जल संरक्षण: इसकी गहरी जड़ों से मिट्टी में नमी बनी रहती है, जिससे आस-पास की फसलों को भी लाभ होता है।
रेतीले टीलों को रोकता है: यह वृक्ष मरुस्थलीकरण को रोकने में अहम भूमिका निभाता है।
जैव विविधता का पोषण: यह पक्षियों, कीटों और छोटे जीवों का प्राकृतिक आवास है, जिससे जैविक संतुलन बना रहता है।
शादी-ब्याह से लेकर पूजा-अर्चना तक
राजस्थान की लोक संस्कृति में खेजड़ी का गहरा स्थान है। इससे जुड़ी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं बेहद खास हैं।
- मींझर महोत्सव: नागौर में होने वाला यह उत्सव खेजड़ी की महिमा का उत्सव है, जिसे लोकगीतों में भी गाया जाता है।
- दशहरा पर शमी पूजन: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका विजय से पूर्व और अर्जुन ने महाभारत युद्ध से पहले शमी वृक्ष की पूजा की थी।
- शादी और धार्मिक अनुष्ठान: खेजड़ी को विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर पूजा जाता है।
- विश्नोई समाज में खास महत्व: बिश्नोई समाज के लिए यह वृक्ष पवित्र माना जाता है। गुरु जंभोजी के 29 नियमों में प्रकृति और जीव रक्षा के साथ खेजड़ी को भी विशेष स्थान प्राप्त है।
जीवनदायिनी वृक्ष है खेजड़ी, गांव-देहात में जीवनयापन से सीधा कनेक्शन
इस वृक्ष के अनेक व्यावहारिक उपयोग हैं जो ग्रामीण जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। राजस्थान के रेगिस्तानी और खासकर पश्चिमी जिलों में इसका महत्व और भी ज्यादा है।
पशु चारा: खेजड़ी की पत्तियां और फलियां (सांगरी) ऊंट, बकरी, गाय आदि के लिए अत्यंत पोषक चारा होती हैं।
ईंधन और निर्माण: इसकी कठोर लकड़ी उच्च गुणवत्ता का ईंधन देती है। इसके तनों से फर्नीचर और खेती और पशुपालन के लिए औजार बनाए जाते हैं।
औषधीय उपयोग: इसके पत्तों और छाल का प्रयोग पारंपरिक औषधियों में होता है।
सांगरी – खाद्य रूप में: इसके फल सांगरी राजस्थान की प्रसिद्ध और पौष्टिक सब्जी है, जिसमें प्रोटीन, आयरन और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं।
खेजड़ी को बचानके लिए 363 लोगों ने दी थी जान
राजस्थान में खेजड़ी के संरक्षण को लेकर इतिहास में एक अद्वितीय बलिदान दर्ज है। इसे खेजड़ली नरसंहार (1730) के नाम से जाना जाता है। जोधपुर राज्य में महाराजा के आदेश पर खेजड़ी के पेड़ों की कटाई हो रही थी। बिश्नोई समाज की अमृता देवी ने इसका विरोध करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके साथ कुल 363 लोगों ने अपनी जान दी, लेकिन पेड़ नहीं कटने दिए। इस ऐतिहासिक घटना को ‘खेजड़ली दिवस’ के रूप में हर वर्ष 12 सितंबर को मनाया जाता है और इसे भारत के ‘चिपको आंदोलन’ की प्रेरणा भी माना जाता है।
इसलिए जरूरी है खेजड़ी का संरक्षण
खेजड़ी कोई आम वृक्ष नहीं है। यह मरुभूमि की छाया है, पशुओं का सहारा है, संस्कृति का प्रतीक है और धर्म का स्तंभ है। आज जब जलवायु परिवर्तन, सूखा और मरुस्थलीकरण जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं, तब खेजड़ी जैसे वृक्षों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस वृक्ष को केवल भावनाओं से नहीं, नीति और संरक्षण कानूनों से बचाने की जरूरत है। राजस्थान सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इस दिशा में ठोस कदम उठाएं और खेजड़ी को 'राज्य वृक्ष' की गरिमा के अनुरूप सम्मान और संरक्षण दें।