रांची: झारखंड की महिला बंदियों की सोहराय पेंटिंग अब केवल जेल की दीवारों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि देश-विदेश में उनके हुनर का लोहा माना जा रहा है। महिला बंदियों ने इस पारंपरिक कला के माध्यम से न केवल अपनी रचनात्मकता को निखारा है, बल्कि आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
झारखंड के जेल आईजी सुदर्शन मंडल के अनुसार, महिला बंदियों को पेंटिंग और अन्य कला प्रशिक्षण के जरिए सृजनात्मकता और मानसिक संतोष दिया जा रहा है। सोहराय पेंटिंग के प्रशिक्षण से न केवल उनकी कला में सुधार हुआ है, बल्कि यह उनके पुनर्वास और सामाजिक सम्मान का भी माध्यम बन रही है।
इस वर्ष दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय मानवाधिकार कांफ्रेंस में झारखंड की महिला बंदियों की सोहराय पेंटिंग का प्रदर्शन किया गया। देशभर के जेल अधिकारियों और एनजीओ ने इस कला की तारीफ की और इसके लिए स्थायी बाजार उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर जोर दिया।
यूनाइटेड स्टेट्स में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा लॉ स्कूल में आयोजित बायोग्राफिक ऑफ स्पीकर्स सेमिनार में भी महिला बंदियों की स्थिति और उनके पुनर्वास कार्यक्रम पर चर्चा हुई। इसमें झारखंड की जेलों की सोहराय पेंटिंग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया।
अब झारखंड के जेल प्रशासन की योजना है कि महिला बंदियों द्वारा बनाई गई सोहराय पेंटिंग को होम डेकोर, वस्त्र और फाइल कवर के रूप में बाजार में उपलब्ध कराया जाएगा। इस पहल से महिला बंदियों को आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी और झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को भी बल मिलेगा। सरकार और विभिन्न संस्थाएं इस कला को जीआई टैग, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों के माध्यम से बढ़ावा दे रही हैं।






