आपने डीजल, सीएनजी और इलेक्ट्रिक से चलने वाले ट्रैक्टर (Tractor) तो देखे होंगे पर ब्रिटेन की एक कंपनी ने अनोखा आविष्कार किया है. उन्होंने एक ऐसे ट्रैक्टर का आविष्कार किया है जो पूरी तरह गाय के गोबर से चलता है दुनियाभर के वैज्ञानिक इसे बड़ी आशा भरी नजरों से देख रहे हैं. क्योंकि वह मान रहे हैं क्लाइमेट चेंज के संकट से निपटने में यह काफी मददगार हो सकता है. क्योंकि इससे प्रदूषण बिल्कुल नहीं फैलता .
गाय के गोबर से चलने वाले इस ट्रैक्टर को ब्रिटिश कंपनी बेनामन ने बनाया है. कंपनी एक दशक से अधिक समय से बायोमीथेन उत्पादन पर शोध कर रही है. बेनामन के सह-संस्थापक क्रिस मान का कहना है कि T7 तरल मीथेन-ईंधन से चलने वाला दुनिया का पहला ट्रैक्टर है. कृषि उद्योग को डीकार्बोनाइज करने की ओर यह पहला कदम है. कंपनी प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग की संभावनाएं तलाश रही है. उसे उम्मीद है कि एक दिन इसका उपयोग ग्रामीण इलाकों में इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए किया जा सकता है.
डीजल की जगह बायोमीथेन का इस्तेमाल
इसे चलाने के लिए गाय के खाद को एक चैंबर में रखा जाता है और फिर उससे बायोमीथेन (Biomethane) बनाया जाता है. इसके लिए ट्रैक्टर के पीछे एक बड़ा सा टैंक लगाया गया है. इसका क्रायोजेनिक ईंधन टैंक (Cryogenic Fuel Tank) -162 डिग्री सेल्सियस पर मीथेन को तरल के रूप में रखता है जिससे वाहन को डीजल जितनी शक्ति मिलती है लेकिन महत्वपूर्ण उत्सर्जन बचत के साथ. बीते दिनों जब पायलट रन के दौरान इसकी क्षमता देखी गई तो पता चला कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को केवल एक वर्ष में 2500 टन से घटाकर 500 टन कर देता है. वैज्ञानिक इसे चमत्कार मान रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन का मुकाबला
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस प्रौद्योगिकी में वातावरण से बड़ी मात्रा में मीथेन को हटाकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की क्षमता है. मीथेन में वायुमंडल को गर्म करने की क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) के मुकाबले 80 गुना से अधिक होती है, इसलिए इसे हटाकर और इसे अच्छे उपयोग में लाकर हम ग्लोबल वार्मिंग से तेजी से निपटने में मदद कर सकते हैं. कंपनी प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोगक की भी जांच कर रही है और उम्मीद है कि एक दिन ग्रामीण इलाकों में इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
जैविक खेती में मिलेगी मदद
इधर भारत में किसान जैविक खेती करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ ही सभी चीजें बदल रही है। ऐसे में जैविक खेती आज के समय की मांग है। किसान गाय के गोबर का उपयोग जैविक खेती में करके अपनी फसल लागत को कम कर सकते हैँ। जैविक खेती पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर होती है। इसमें शरीर को हानि पहुंचाने वाले रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का उपयोग बिलकुल भी नहीं किया जाता है। भारत सरकार भी जैविक खेती करने वाले किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जा रही है। किसान इसका लाभ उठा कर जैविक खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। बता दें कि ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग बाजार में बहुत रहती है और इसके बाजार में दाम भी अच्छे मिलते हैं।
कहां से मिलेगा इतना गोबर
वैज्ञानिकों के मुताबिक, 100 गायों का झुंड प्रति वर्ष तीन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करता है. मीथेन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, जो कार्बन डाइऑक्साइड की समान मात्रा की तुलना में 30 गुना अधिक गर्मी पैदा करती है. इतना नही नहीं, 150 गायों का फार्म प्रति वर्ष 140 घरों के कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को संतुलित करेगा.
जीरो बजट खेती की ओर बड़ा कदम
एलईपी के अध्यक्ष, मार्क डड्रिज ने कहा- ‘बायोमीथेन में बड़ी क्षमता है. यदि हम उत्सर्जन को कम करते हुए बढ़ती लागत और अस्थिर ऊर्जा की कीमतों के मुकाबले अपने कृषि उद्योग को ऊर्जा-स्वतंत्र बना सकते हैं, तो हम ग्रामीण समुदायों के लिए एक बड़ा आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान कर सकते हैं. अधिक खाद्य सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं . यह जीरो बजट खेती की ओर बढ़ने जैसा होगा.