बैंकाक। थाईलैंड के घने जंगलों से एक ऐसी अविश्वसनीय खबर सामने आई है, जिसने कीट प्रेमियों और वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। दरअसल, यहां पर एक अद्भुत और दुर्लभ मकड़ी वैज्ञानिकों के हाथ लगी, जिसके शरीर का एक हिस्सा नर का है तो दूसरा हिस्सा मादा का है। यह मकड़ी अपनी अनोखी और दुर्लभ जैविक बनावट के कारण चर्चा का विषय बन गई है। यह खोज हमें प्रकृति के एक और अनछुए पहलू से रूबरू कराती है और साबित करती है कि धरती पर अभी भी कितने रहस्य छिपे हैं जो हमारी जानकारी से परे हैं। इस जीव के शरीर के एक तरफ नर और दूसरी तरफ मादा के गुण दिखाई देते हैं, जो इसे अत्यंत दुर्लभ बनाता है। इंटरनेट पर लोगों ने इसे ‘लेडीबॉय स्पाइडर’ नाम दिया है। इसका बायां हिस्सा नारंगी रंग का है, जो मादा के गुणों को दर्शाता है, जबकि दायां हिस्सा सफेद रंग का है जो नर के गुणों को दर्शाता है।
शरीर के अंगों और रंगों में स्पष्ट विभाजन ही इस मकड़ी की बड़ी विशेषता है। यह नन्हा जीव ‘गाइनैंड्रोमॉर्फिज्म’ नामक एक अविश्वसनीय जैविक घटना का जीता-जागता उदाहरण है, जिसका मतलब है कि एक ही जीव के शरीर में नर और मादा दोनों के ही लक्षण और गुण मौजूद हों। वैज्ञानिक इसे एक दुर्लभ आनुवंशिक त्रुटि मानते हैं। शोधकर्ताओं ने इस नई प्रजाति का नाम जापानी कार्टून ‘वन पीस’ के एक किरदार ‘इनाज़ुमा’ के नाम पर रखा है। यह किरदार लिंग बदलने की क्षमता रखता है, जो इस मकड़ी की द्विलिंगी प्रकृति से मेल खाता है। इस हैरतअंगेज मकड़ी की खोज थाईलैंड के कंचनाबुरी प्रांत के एक जंगल में सड़क किनारे हुई।
चुलालोंगकॉर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मकड़ियों के बिल ढूंढ रहे थे, जब उनकी नजर इस अनोखे जीव पर पड़ी। मकड़ी के रंग और शारीरिक बनावट में यह स्पष्ट अंतर देखते ही शोधकर्ताओं को तुरंत अहसास हो गया कि यह विज्ञान के लिए एक नई और महत्वपूर्ण खोज है। उन्होंने तत्काल चुलालोंगकॉर्न यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट से संपर्क किया। यह मकड़ी ‘विशबोन स्पाइडर’ प्रजाति की है, जो जमीन में बिल बनाकर रहती है और शिकार पर छिपकर हमला करती है। वैज्ञानिकों को यह भी संदेह है कि यह जहरीली हो सकती है, क्योंकि इसने प्रयोगशाला में अध्ययन के दौरान भी अपने नुकीले दांत से अटैक की कोशिश की थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह अनोखी ‘लेडीबॉय स्पाइडर’ प्रजनन कर सकती है? यह प्रश्न जीव विज्ञान की समझ को और भी गहरा कर सकता है।
लैब में इस अनोखे जीव का अध्ययन करने के बाद रिसर्चर्स ने बताया कि वे अभी निश्चित नहीं हैं कि यह मकड़ी अपने आप बच्चे पैदा कर सकती है या नहीं। प्रयोगशाला में जांच के दौरान यह पाया गया कि इसके शरीर में मादा जननांग तो मौजूद थे, लेकिन नर जननांग इतने विकसित नहीं थे कि वे निषेचन के लिए शुक्राणु स्थानांतरित कर सकें। हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि कृत्रिम गर्भाधान के जरिए इसके प्रजनन की संभावना तलाशी जा सकती है। यदि वैज्ञानिक इसमें सफल होते हैं, तो यह न केवल इस दुर्लभ प्रजाति के संरक्षण में मदद करेगा, बल्कि गाइनैंड्रोमॉर्फिज्म की घटना पर भी नई जानकारी प्रदान करेगा।