भाजपा से लडऩे की बजाय आपस में लड़ रहे कांग्रेस नेता…

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भोपाल : जैसा एमपी गजब है, वैसे ही कांग्रेस भी गजब है। एक पुरानी कहावत है-“सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठा।” इन दिनों यह कहावत मप्र कांग्रेस पर एकदम सटीक बैठ रही है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव नौ महीने बाद होना है। चुनाव परिणाम क्या होगा, यह किसी को नहीं मालूम, लेकिन कांग्रेस में अभी से सीएम फेस को लेकर घमासान शुरू हो गया है। मजेदार बार यह है कि मप्र में कांग्रेस 15 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद 2018 में सत्ता में आई थी और 15 महीने सत्ता में रहने के बाद फिर उसकी सत्ता से विदाई हो गई। वजह कुछ भी रही हो, लेकिन हकीकत यही है कि देश के सबसे पुराने और सफल नेताओं में से एक कमलनाथ अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।

अब वे पूरी ताकत से आगामी चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्ता में वापसी नहीं चाहते। यही वजह है कि एकजुट होकर पूरी ताकत के साथ भाजपा से मुकाबला करने की बजाय कांग्रेस नेता आपसी खींचतान में उलझ गए हैं। दअरसल, मप्र कांग्रेस की तरफ से नए साल की शुरुआत में नया साल, नई सरकार को लेकर प्रदेश भर में लगाए गए होर्डिंग्स में पूर्व सीएम और पीसीसी चीफ कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताया गया था। इसी को लेकर कांग्रेस में अंदरूनी राजनीति तेज हो गई है। पहले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कमलनाथ को सीएम फेस बताए जाने पर आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि कांग्रेस में परंपरा रही है कि चुनाव से पहले सीएम का चेहरा घोषित नहीं होता हैं। केंद्रीय नेतृत्व और विधायक दल ही सीएम चुनता है और कोई व्यक्ति अपने आप को सीएम नहीं बताता।

इसके बाद कांग्रेस में बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा, पीसी शर्मा, डॉ. विजय लक्ष्मी साधो, मुकेश नायक, जयवर्धन सिंह आदि खुलकर कमलनाथ के समर्थन में आ गए। सज्जन वर्मा ने तो अजय सिंह और अरुण यादव को अपरिपक्व तक कह डाला। हालांकि कमलनाथ कह रहे हैं कि अजय सिंह व अरुण यादव ने कोई नईं बात नहीं की। ये तो मैंने कही थी। किसी ने मुझसे जिले में पूछा था कि आप मुख्यमंत्री बनेंगे तो पहले कदम क्या होंगे? इस पर मैने कहा था कि मैं मुख्यमंत्री बनने की होड़ में नहीं हूं। मैं किसी पद का आकांक्षी नहीं हूं, मेरा पहला लक्ष्य चुनाव जीतने का है। हालांकि यह बयान देकर कमलनाथ ने इस मुद्दे को समाप्त करने की कोशिश की है, लेकिन देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में कांग्रेस नेता भाजपा से लडऩे की बजाय आपस में किस मुद्दे पर रार ठानते हैं।