व्यापार: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के बाहरी सदस्य राम सिंह का मानना है कि इस मोड़ पर ब्याज दरों में एक बार और कटौती से खतरा बढ़ सकता है। फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है। एक साक्षात्कार में राम सिंह ने कहा, मौद्रिक और राजकोषीय उपायों का असर अब भी जारी है। यानी बैंक और वित्तीय संस्थान रेपो दर में कटौती का फायदा अब भी चरणबद्ध तरीके से दे रहे हैं।
सिंह ने एक अक्तूबर को नीतिगत दरों में यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में मतदान किया था। लेकिन, रुख को उदार से तटस्थ करने का समर्थन किया था। उन्होंने कहा, नॉमिनल और वास्तविक जीडीपी वृद्धि दोनों पर नजर रखना जरूरी है, क्योंकि दोनों के विश्लेषणात्मक उद्देश्य अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा, महंगाई का निचला स्तर व्यवसायों के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि यह निवेश और रोजगार दोनों के फैसलों को प्रभावित करता है। आरबीआई ने अगस्त से लगातार दूसरी बार रेपो दर में कोई कटौती नहीं की है।अक्तूबर की एमपीसी बैठक में भी नीतिगत दर को 5.50 फीसदी पर यथावत रखा गया था।
मौद्रिक हस्तक्षेपों से अर्थव्यवस्था को मिली गति
राम सिंह ने कहा, इस साल रेपो दरों में एक फीसदी की कटौती से मांग में आई तेजी का असर अभी पूरी तरह से सामने नहीं आया है। ऐसे में मौजूदा स्थिति में ब्याज दरों में एक और कटौती जरूरत से ज्यादा हो जाएगी। साथ ही, इससे अर्थव्यवस्था के लिए खतरा पैदा हो सकता है। इस वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों में मांग और ऋण वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कई मौद्रिक हस्तक्षेपों से अर्थव्यवस्था को गति मिली है।
जीएसटी राहत का निवेश मांग पर दिख रहा असर
एमपीसी के बाहरी सदस्य ने कहा, कई संकेतक बताते हैं कि बजट में आयकर के मोर्चे पर रियायत के बाद अब जीएसटी दरों में राहत जैसे उपायों का मांग और निजी निवेश पर अपेक्षित प्रभाव पड़ रहा है। पहले से लागू नीतिगत उपाय जब कारगर साबित हो रहे हैं, तो नीतिगत दरों में और कटौती की तत्काल जरूरत नहीं है। हमें मौजूदा उपायों को व्यवस्था में काम करने देना चाहिए। इस बीच, उम्मीद है कि उच्च अमेरिकी टैरिफ के मोर्चे पर भी बेहतर स्पष्टता आएगी।