Friday, December 13, 2024
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सुनिए रमा एकादशी व्रत कथा, दूर होगी आर्थिक परेशानी

इस साल कार्तिक कृष्ण एकादशी यानी रमा एकादशी 21 अक्तूबर को पड़ रही है, जिसका पारण द्वादशी यानी 22 अक्तूबर को होगा. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु यानी रमापति के साथ उनकी अर्धांगिनी रमा की भी पूजा होती है.

इस एकादशी का नाम रमा एकादशी माता लक्ष्मी के नाम पर ही पड़ा है. कहते हैं कि इस एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा करनी चाहिए, इससे भक्त पर माता लक्ष्मी की ऐसी कृपा होती है कि उसके जीवन में आर्थिक संकट नहीं आता. साथ ही पूजा के दौरान रमा एकादशी व्रत कथा सुननी चाहिए. इस व्रत कथा के सुनने से सभी पापों का नाश हो जाता है और आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है.

रमा एकादशी व्रत कथाः
पुराने जमाने की बात है, एक नगर में मुचकुंद नाम के राजा थे, राजा मुचकुंद ने अपनी बेटी चंद्रभागा की शादी एक दूसरे नगर के राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दी. शोभन शारीरिक रूप से दुर्बल था और बिना अन्न के एक वक्त भी रह नहीं सकता था. कार्तिक में दोनों राजा मुचकुंद के यहां पहुंचे थे. इसी समय रमा एकादशी पड़ गई, उस वक्त माना जाता था राज्य के नर नारी तो रमा एकादशी व्रत रहते ही थे. पशु पक्षी भी यह व्रत करते थे. इसलिए उसने अपने पति शोभन को दूसरे नगर में जाकर भोजन करने की सलाह दी.

लेकिन शोभन ने चंद्रभागा की सलाह नहीं मानी और व्रत रहने की ठानी. इधर, उपवास करने से सुबह तक शोभन के प्राण पखेरू उड़ गए. पति की मृत्यु के बाद चंद्रभागा ससुराल नहीं गई और पिता के यहां ही रहकर पूजा पाठ और व्रत के सहारे जीवन बिताने लगी. उधर, एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन का अगला जन्म हुआ और देवपुरी नगर का राज्य मिला. यह राज्य धन धान्य से भरा था. एक दिन मुचकुंद के राज्य का ब्राह्मण सोम शर्मा उधर से गुजरा तो उसने शोभन को पहचान लिया. ब्राह्मण ने उससे ऐश्वर्य मिलने का रहस्य पूछा तो उसने रमा एकादशी के फल का जिक्र किया. साथ ही शोभन ब्राह्मण से इस ऐश्वर्य को स्थिर करने का मार्ग पूछता है. ब्राह्मण यहां से लौटकर सारा किस्सा चंद्रभागा को बताता है.

यह होता है व्रत का प्रभावः इस पर चंद्रभागा ने बताया कि वह आठ वर्षों से रमा एकादशी व्रत कर रही है. इसके प्रभाव से उसके पति को पुण्य मिलेगा. इसके बाद वह शोभन के पास चली जाती है और एकादशी व्रत का पुण्य फल शोभन को सौंप देती है. इसके बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा से देवपुर का ऐश्वर्य स्थिर हो जाता है और दोनों खुशी-खुशी जीवन बिताने लगते हैं.

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