Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित है। “शैलपुत्री” नाम का अर्थ है – पर्वतराज हिमालय की पुत्री। इन्हें पर्वतराज की पुत्री होने के कारण यह नाम प्राप्त हुआ।
इस दिन घटस्थापना कर माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक शुद्ध मन, वचन और कर्म से माँ का ध्यान करते हैं। इस दिन पीले या सफेद वस्त्र धारण कर, शुद्ध घी का दीपक जलाना विशेष शुभ माना जाता है। माँ की उपासना से जीवन में स्थिरता, शांति और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
माँ शैलपुत्री के स्वरूप की विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- इनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित रहता है।
- माँ का वाहन नंदी बैल है।
- दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प रहता है।
- इनका रूप अत्यंत शांत, सौम्य और करुणामयी है।
Navratri 2025: ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष में माँ शैलपुत्री का संबंध चन्द्रमा से माना जाता है। चन्द्रमा मन, भावनाएँ और मानसिक शांति का कारक है। इस दिन माँ की आराधना से चंद्र से संबंधित दोषों से मुक्ति प्राप्त होती हैं एवं मन को स्थिरता प्राप्त होती है। जिन लोगों की कुंडली में चन्द्रमा पीड़ित अवस्था में हो, उन्हें इस दिन विशेष रूप से माँ शैलपुत्री की आराधना करनी चाहिए।
माँ शैलपुत्री की कृपा से व्यक्ति का मानसिक संतुलन ठीक होता है, मनोबल बढ़ता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन की साधना से नवग्रहों का संतुलन भी बेहतर होता है, विशेषकर चन्द्रमा का प्रभाव अनुकूल बनता है।









