Monday, October 14, 2024
Homeधर्मसफलता का मार्ग 

सफलता का मार्ग 

संग्रह की वृत्ति बहिमरुखता का लक्षण है। साधक क्षणजीवी होता है। अतीत की स्मृति और भविष्य की चिंता वह करता है जो आत्मस्थ नहीं होता। वर्तमान में जीना आत्मस्थता का प्रतीक है। एक साधक कल की जरूरत को ध्यान में रखकर संग्रह नहीं करता, पर एक व्यवसायी सात पीढ़ियों के लिए पूरी व्यवस्था जुटाने में संलग्न रहता है। यह बात सही है कि साधक अशरीरी नहीं होता, शरीर की अपेक्षाओं को वह गौण नहीं कर सकता; पर दैहिक अपेक्षाओं को लेकर वह मूढ़ नहीं हो सकता। उसका विवेक जागृत रहता है। वह अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखता है और आकांक्षाओं पर नियंत्रण रखता है। कभी-कभी साधक के जीवन में भी स्वच्छंदता, सुविधावाद और संग्रहवृत्ति जाग सकती है। प्रश्न उठता है कि इन वृत्तियों का उत्स क्या है? कौन-सी अभिप्रेरणा इन्हें उभरने का अवसर देती है? मेरे अभिमत से इन तीन संस्कारों का उद्भव तीन आकारों से होता है। वे तीन आकार हैं- अहं, अश्रम और असंतोष। स्वच्छंदता की मनोवृत्ति वहीं सक्रिय होती है, जहां अहंकार का नाग फन उठाए रखता है। अहंवादी व्यक्ति स्वयं को सब कुछ समझता है। उसे अपने सामने अन्य सभी लोग बौने दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में वह न तो किसी से मार्गदर्शन ले सकता है और न किसी के नियंत्रण में रह सकता है।  
सुविधावाद का भाव वहां विकसित होता है जहां व्यक्ति श्रम से जी चुराता है, अपनी क्षमता का उपयोग नहीं करता और पुरुषार्थ में विश्वास नहीं करता। अश्रम का बीज ही आगे जाकर सुविधावाद के रूप में पल्लवित होता है। इस दृष्टि से साधना के साथ श्रमशीलता की युति आवश्यक है। संग्रह वृत्ति का बीज है असंतोष। जिस व्यक्ति को पदार्थ में संतोष नहीं होता, वह संग्रह करने की बात सोचता है। जिस समय जैसा पदार्थ उपलब्ध होगा, उसी से आवश्यकता की पूर्ति हो जाएगी- यह विधायक चिंतन असंतोष की जड़ को काट सकता है और संग्रह की मनोवृत्ति को बदल सकता है। साधना की सफलता स्वच्छंदता, सुविधावाद और संग्रहवृत्ति में नहीं है।  

RELATED ARTICLES

Contact Us

Owner Name:

Deepak Birla

Mobile No: 9200444449
Email Id: pradeshlive@gmail.com
Address: Flat No.611, Gharonda Hights, Gopal Nagar, Khajuri Road Bhopal

Most Popular

Recent Comments

Join Whatsapp Group
Join Our Whatsapp Group