Wednesday, March 22, 2023
Homeसंपादकीयमैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता....

मैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता….

मेडि क्लेम नहीं है’यह जवाब सुनकर अस्पताल 
वाले बोले आप तो पत्रकार हैं, क्यों नहीं कराया

 

सत्यकथा/कीर्ति राणा- 89897-89896

 
गतांक से आगे…( द्वितीय भाग ) 

परिजनों में आपसी सहमति यही बनी कि इंदौर में ही बायपास सर्जरी कराना हर लिहाज से बेहतर है।यहां देखभाल-सहयोग-मदद के लिए सभी उपलब्ध रहेंगे, इतने लोगों का अन्य शहर में रहना संभव नहीं।अंतत: सीएचएल हॉस्पिटल में डॉ मनीष पोरवाल से ही सर्जरी कराने का निर्णय लिया।नवंबर के दूसरे सप्ताह में भर्ती हुआ, चूंकि बॉंबे हॉस्पिटल में एंजियोग्राफी से पहले लाइफ सेविंग इंजेक्शन लगाया गया था।उसका असर बाकी रहने के कारण हार्ट के आसपास सूजन थी इसलिए दो दिन बाद 16 नवंबर को सर्जरी तय हुई। एंजियोग्राफी के बाद बायपास सर्जरी यानी भारी भरकम 

मप्र सरकार ने पत्रकारों को दे रखी है मेडि क्लेम की सुविधा, लेकिन मैं वह भी नहीं करा पाया

मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार पत्रकार-और उनके परिवार को निर्धारित बीमा राशि भरने पर उन्हें कम से कम 4 लाख के मेडि क्लेम की सुविधा देती है। मैं विगत वर्षों में तो हर साल बीमा कराता रहा, बस इसी बार चूक गया।बीमा की अंतिम तारीख बढ़ाकर शासन ने 15 सितंबर कर दी थी, मैंने “प्रजातंत्र” टीम के साथियों सहित विभिन्न अखबारों के मीडिया मित्रों को फोन कर के मेडि क्लेम कराने के लिए प्रेरित भी किया लेकिन कुछ परिस्थिति ऐसी बनी कि खुद ही मेडि क्लेम की निर्धारित राशि की व्यवस्था नहीं हो पाने से चूक गया।अन्य कुछ साथियों के साथ भी ऐसा ही हुआ।यदि मेडि क्लेम होता तो प्रति लाख पर मुझे 15 हजार ही जमा कराना पड़ते। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में शायद ऐसे हालात के लिए ही चौपाई लिखी है ‘जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेई।’
 

अस्ताल में पहला प्रश्न इनका मेडि क्लेम है? 

बॉंबे हॉस्पिटल की तरह सीएचएल हॉस्पिटल में भी मैनेजमेंट ने एडमिट करते हुए परिजनों से पहला प्रश्न यही किया, मेडि क्लेम है क्या? डॉ पोरवाल के पीए डॉ भरत बागोरा व अन्य ने आश्चर्य व्यक्त किया कि आप तो जागरुक पत्रकार हैं, मेडि क्लेम क्यों नहीं कराया!
मुझे याद आई बॉंबे हॉस्पिटल में जांच कराने आए उज्जैन के मरीज की सलाह की भले ही एक रोटी कम खाना लेकिन बीमा जरूर कराना चाहिए। 
अपनी भूल पर पश्चाताप के अलावा मैं और कर ही क्या सकता था।सीएचएल में एडवांस जमा करने की नौबत आई तो ढूंढा ढपोली कर के श्रीमती ने जैसे तैसे 30 हजार रु जुटाए।बेटे ने एचडीएफसी बैंक के सेलरी अकाउंट को खंगाला, उसे निराशा ही हाथ लगी

 

रिश्ते ऐसे ही हरे-भरे रहें…

बायपास सर्जरी का जितना खर्च अनुमानित था उसके लिए फिर भी पर्याप्त राशि हाथोंहाथ जुट गई तो उसका श्रेय बहन मीना के साथ ही भतीजे-भतीजियों, बेटी-दामाद सहित अन्य परिजनों को जाता है।कुछ ने तो बेटे को एटीएम कार्ड सौंपने के साथ पिन नंबर भी बता दिया कि चिंता मत करना। मुझे ही क्यों हमारे परिजनों को एक दूसरे पर नाज इसीलिए है कि मतभेद तो होते रहते हैं लेकिन मन भेद नहीं होते, दुख की घड़ी में सब एक दूसरे के लिए ढाल बन कर खड़े हो जाते हैं।मेरी बायपास सर्जरी के दौरान जितने भी मुलाकाती आए उन सब की जुबान पर यह बात भी रहती थी कि आप सब किस तरह एकसाथ जुट जाते हैं।महाकाल से यही प्रार्थना है ऐसा परिवार सबको मिले। वरना तो अकसर देखते-सुनते ही हैं कि रिश्तेदार तक दुख के वक्त मुंह फेर लेते हैं या यह उम्मीद करते हैं कि हमें तो फोन तक नहीं किया।मेरा मानना है मंगल प्रसंग में तो निमंत्रण की अपेक्षा की जा सकती है लेकिन किसी अपने का दुख से जुड़ा समाचार मिले तो तुरंत जाना ही चाहिए।आप किसी के दुख में शामिल होंगे तभी तो कोई आप को ढांढस बंधाने आएगा।

(बाकी सत्यकथा अगले अंक में पढ़िए)

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

Join Our Whatsapp Group