😊अगिया बेताल😊
क़मर सिद्दीक़ी
कोलकाता में शाहरुख ख़ान ने कहा था,”अपनी सीट की बेल्ट बांध लीजिए,मौसम बदलने वाला है”। उधर सिनेमा हॉल्स में पठान चढ़ी,इधर वाक़ई मौसम बदल गया आसमान में बादलों से हल्की बूंदा-बांदी भी होती रही। ये”बॉयकॉट गेंग” के ग़म में टपकने वाले आंसू भी हो सकते हैं। इधर फ़िल्म ने एडवांस बुकिंग के रिकार्ड ध्वस्त हुए,उधर कुछ लोगों के अरमान। इतिहास तो हमें यही बताता है कि,फ़िल्म के चलने और न चलने का बॉयकॉट से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता,पर कुछ लोगों की मूर्खतापूर्ण ज़िद ने पठान को बैठे बैठाए सुपर हिट बना दिया । ये भी अजीब इत्तेफाक है कि,जब भी चाइना बॉर्डर पर हालात बिगड़ते हैं,उसी समय शाहरुख़ परिवार भी ख़तरे में आ जाता है। पहले बेटा आर्यन,और उसके बाद स्वयं शाहरूख। पिछले 8 वर्षों में कभी सुना है कि,देश का सब से ताक़त वर व्यक्ति राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किसी फ़िल्फ़ पर चर्चा करे। सेंसर बोर्ड में जो लोग बैठे हैं,वो कौन हैं? क्या उनको इल्म नहीं था कि,नायिका की बिकनी क्या गज़ब ढाने वाली है? अगर वो चाहते तो फ़िल्म की गर्दन वहीं मरोड़ देते,मगर ऐसा कुछ भी तब तक नहीं हुआ,जब तक मकसद में कामयाबी नहीं मिल गई। जिस गुजरात में सब से अधिक ख़तरा बताया जा रहा था,वहीं सब से अधिक सुरक्षा! एक प्रांत का मुख्यमंत्री सुबह पत्रकारों के सवाल पर कहता है,” हु इस शाहरुख खान”? और दूसरे दिन रात दो बजे उसी खान का न सिर्फ फोन रिसीव करता है,बल्कि सिनेमाघरों की सुरक्षा की गारंटी भी लेता है। क़तर विश्व कप फाइनल में फ़िल्म का प्रमोशन क्या सहज ही हो गया था? पर इन मंदबुद्धि लोगों को कौन समझा सकता है। वैसे ये माफ़ी के क़ाबिल हैं,क्यों कि,जैसे कुछ लोगों को मोबाइल में गेम खेलने का शौक़ होता है,ऐसा ही बॉयकॉट भी एक तरह का नशा है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘प्रदेश लाइव’ के नहीं हैं और ‘प्रदेश लाइव’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।)