तमिलनाडु के इरोड में एक विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोके जाने को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की। मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी विधवा के मंदिर में प्रवेश को रोकने जैसी हठधर्मिता कानून द्वारा शासित सभ्य समाज में नहीं हो सकती है। हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि एक महिला की अपनी एक पहचान होती है।
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक विधवा महिला के मंदिर में प्रवेश करने से मंदिर में अशुद्धता होने जैसी पुरानी मान्यताएं तमिलनाडु में आज भी कायम हैं। न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने यह टिप्पणी थंगमणि द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए 4 अगस्त के अपने आदेश में कही। महिला ने इरोड जिले के नाम्बियूर तालुक में स्थित पेरियाकरुपरायण मंदिर में प्रवेश करने के लिए उन्हें और उनके बेटे को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की।
पीठ को महिला ने बताया कि उनके पति मंदिर में पुजारी थे, जिनकी 28 अगस्त, 2017 को मृत्यु हो गई थी. उन्होंने आगे बताया कि वह अपने बेटे के साथ मंदिर के उत्सव में हिस्सा लेने और पूजा करना चाहती थीं, लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और उनसे कहा गया कि वे विधवा होने के चलते मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। इसके साथ ही महिला ने आगामी 9 और 10 अगस्त को मंदिर में होने वाले उत्सव में हिस्सा लेने के लिए सुरक्षा की मांग की।
न्यायाधीश ने कहा कि यदि किसी विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए किसी ने ऐसा प्रयास किया है, तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। अदालत ने सिरुवलूर पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक को अयवु और मुरली को सूचित करने का निर्देश दिया कि वे थंगमणि और उनके बेटे को मंदिर में प्रवेश करने और उत्सव में भाग लेने से नहीं रोक सकते।
अगर वे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करने का प्रयास करेंगे तो उनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाएगी। न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस निरीक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि याचिकाकर्ता और उसका बेटा 9 और 10 अगस्त, 2023 को उत्सव में भाग लें।