वाराणसी नरपतपुर श्रीमद्भागवत कथा के प्रारंभ में कथावाचक मनीष कृष्ण शास्त्री जी ने वामन चरित्र का वर्णन करते हुए श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कहा कि समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त अमृत को लेकर हुए देवासुर युद्ध में देवताओं की विजय के पश्चात असुरों के अस्मिता को बचाने के उद्देश्य से अपने गुरू शुक्राचार्य के निर्देश पर दैत्यराज बलि ने पूरे मनोयोग से गुरूदेव, गो और संत की पूजा की। अनुकूल समय की प्रतीक्षा कर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। उनके आक्रमण से भयभीत होकर जब देवतागण भगवान के पास गए तो प्रभु ने कहा कि चूंकि दैत्यराज बलि ने गुरू देव, गौ और संत तीनों की पूजा की है और उसे इन तीनों का आशीर्वाद प्राप्त हो चुका है। इसलिए वे भगवान होकर भी उससे युद्ध नहीं कर सकते।
भगवान ने कहा कि मैं उसके पास जाकर भीख मांग सकता हूं और फिर देवताओं की कार्यसिद्धि के लिए भगवान को स्वंय माता अदिति के यहां वामन के रूप में अवतार लेकर आना पड़ा भगवान ने राजा बलि से दान में तीन ही पग मांगा। प्रभु ने पहले पग में राजा बलि का मन नापा तो दूसरे में पूरी सृष्टि यानी धन को नाप दिया। जब तीसरे पग की बारी आई, तो राजा बलि भी मूक हो गए। तब उनकी पारी आगे आई और राजा बलि को अपना तन भगवान को अर्पित कर देने की बात कही। इस तरह राजा बलि ने तन, मन व धन भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया। इसके बाद कथा में श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया बालरूप में कृष्ण स्वरूप में बालक को सजाकर कथा पांडाल में झांकी लगाई गई।
भक्तों ने पुष्पवर्षा की जैसे ही श्री कृष्ण जन्म का प्रसंग आया तो पंडाल में सैकड़ों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ आया पूरे पंडाल में नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों की गूंज रही। गाजे-बाजे और शहनाइयां की धुन पर श्रद्धालु झूम झूम कर नाचने लगे।भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर पूरे पंडाल में महिलाएं बच्चे और बूढ़े सभी श्रद्धालु द्वारा नाच गाकर और पुष्प वर्षा कर धूमधाम के साथ भगवान का जन्म उत्सव मनाया।इस मौके पर कथावाचक मनीष कृष्ण शास्त्री ने कहा कि मनुष्य के जीवन में अच्छे व बुरे दिन प्रभु की कृपा से ही आते हैं। उन्होंने बताया कि जिस समय भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, जेल के ताले टूट गये,पहरेदार सो गये। वासुदेव व देवकी बंधन मुक्त हो गए। प्रभु की कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है। कृपा न होने पर प्रभु मनुष्य को सभी सुखों से वंचित कर देते हैं।
भगवान का जन्म होने के बाद वासुदेव ने भरी जमुना पार करके उन्हें गोकुल पहुंचा दिया। वहां से वह यशोदा के यहां पैदा हुई शक्तिरूपा बेटी को लेकर चले आये। अंत में उन्होंने बताया कि मनुष्य भगवान को छोड़कर माया की ओर दौड़ता है। ऐसे में वह बंधन में आ जाता है। मानव को अपना जीवन सुधारने के लिए भगवत सेवा में ही लीन रहना चाहिए। लीला के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि जब-जब धरा पर अत्याचार, दुराचार, पाप बढ़ता है, तब-तब प्रभु का अवतार होता है। प्रभु का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है। मथुरा में राजा कंस के अत्याचार से व्यथित होकर धरती की करुण पुकार सुनकर नारायण ने कृष्ण रूप में देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में जन्म लिया और धर्म और प्रजा की रक्षा कर कंस का अंत किया। उन्होंने कहा कि जीवन में भागवत कथा सुनने का सौभाग्य बड़ा दुर्लभ है। जब भी हमें यह अवसर मिले, इसका सदुपयोग करना चाहिए।
कथा का सुनना तभी सार्थक होगा, जब उसके बताए मार्ग पर चलकर परमार्थ का काम करेंगे। कृष्ण जन्मोत्सव के दौरान भगवान कृष्ण व वासुदेव की संजीव झांकी से श्रोताओं का मन मोह लिया। इस मौके पर बाल रूप में रिषभ, हर्षित,अनुज, शशांक, अभिनन्दन, शाश्वत, संस्कार,आहान चौबे समेत महिलाओं और पुरुषों ने भी नंदोत्सव पर जमकर नृत्य किया।श्रीमद भागवत कथा के इस पावन अवसर पर मुख्य यजमान बने उमाशंकर चौबे व चन्द्रकला चौबे साथ रविशंकर चौबे व मंजू चौबे, प्रतिमा चौबे समेत सैकड़ों की संख्या में रसिक श्रोता मौजूद रहे। कथा में ब्रिजेश, अनिल, मनीष,गृजेश,अनीश, रोहित, सुनील व्यवस्था में लगे हैं।
कथा के समापन से पूर्व आरती की गई ,आरती करने बाद लोगों में प्रसाद का वितरण किया गया।