इलाहाबाद। मोबाइल की लत बेहद खतरनाक होती है, इससे बच्चों की सोचने-समझने की शाकित कम होती है। ऐसे में बच्चों के भविष्य को ध्यान में देते हुए अब उनके मोबाइल की लत को छुड़ाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
बच्चे घर से बाहर जाकर खेल खेलना नहीं चाहते
संस्थान की सहायक उप शिक्षा निदेशक का कहना है कि वर्तमान समय में बच्चे पारंपरिक खेलों को पूरी तरीके से भूलते जा रहे हैं। क्योंकि वीडियो गेम्स , प्रैंक वीडियो, रील्स व्हाट्सएप मींस और यूट्यूब चैनल में इतने लीन हो गए हैं अब घर से बाहर जाकर खेल खेलना नहीं चाहते। बच्चे अगर ये सब खेल खेलेंगे तो उनका मानसिक और शारीरिक क्षमता में बढ़ोतरी होगी। जो कि नई दिशा में ले जाने के लिए बेहद जरूरी है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बच्चों को आधुनिक रहते हुए भी अपनी संस्कृति से जुड़े रखने की परिकल्पना का सार्थक प्रयास सिद्ध हो सकता है। इस क्रम में राज्य शिक्षा संस्थान के विशेषज्ञ परंपरागत खेलों को बचाए रखने की पहल करने जा रहे हैं। संस्थान के विशेषज्ञ एनईपी के तहत शुरू किए गए बैगलेस डे पर बच्चों को खेलने के लिए परंपरागत खेलों पर आधारित सचित्र बिगबुक बनाने जा रहे हैं।
राज्य शिक्षा संस्थान के प्राचार्य कहना है कि
प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में कक्षा एक से आठवीं तक के लगभग दो करोड़ बच्चे हैं। ऐसे में अधिक मोबाइल उयोग की लत को दूर करने के लिए परंपरागत खेल जैसे आइस पाइस, लंगड़ी टांग और देसी खेलों का सहारा लिया जाएगा। राज्य शिक्षा संस्थान के प्राचार्य कहना है कि बिगबुक तैयार करने के लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की अनुमति मांगी गई है। यह बिग बुक विद्यालयों में बगलेस डे वाले दिन बच्चों के लिए अध्यापक प्रयोग करेंगे। इसमें बच्चों में बढ़ रहे मोबाइल संस्कृति को कम करने में मदद मिलेगी।