UP News: खेती में बचने वाले अवशेषों से उत्तर प्रदेश में बनाया जा रहा 100 टन कोयला, आइए जाने आखिर कैसे

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UP News: भारत कृषि प्रधान देश है, यहां की 70 प्रतिषत से अधिक जनता खेती पर आज भी निर्भर है, लेकिन आपको मालूम है कि खेती के कार्यों से बचने वाले अवशेषों को किसान फेंक देते हैं। आखिर करें भी क्या उन अवशेषों का। लेकिन उत्तर प्रदेश के बागपत में रहने वाले किसान देवेंद्र सिंह ने कृषि अवशेषों से ऑर्गेनिक कोयले के निर्माण का एक संयंत्र स्थापित किया है, जो प्रतिदिन सौ टन ऑर्गेनिक कोयले का निर्माण करता है। इस यंत्र के आ जाने के बाद किसानों को अवशेष जलाने की आवश्यकता नहीं है। प्रदूषण रहित इस उत्पाद से किसान अपनी अच्छी इनकम जनरेट कर सकता है। उत्तर प्रदेश के इस किसान की देशभर में बहुत प्रशंसा हो रही है क्योंकि कृषि अवशेष के जलने से धुए की समस्या समस्या एवं कई प्रकार की समस्याओं से किस जूझ रहे हैं इस बीच इस किसान ने इस तरह की पहल कर एक नहीं प्रगति की सोच को जन्म दिया है।

किसानों के कृषि अवशेष को अच्छे दामों पर खरीदा जाता

गौरतलब है कि इस संयंत्र में किसानों के कृषि अवशेष को अच्छे दामों पर खरीदा जाता है, और उसे कृषि अवशेष से एक ऐसा प्रदूषण रहित उत्पाद तैयार किया जाता है। प्रदूषण रहित उत्पाद की खपत एनटीपीसी ईंट भत्तों और बड़े कारखाने में की जाती है। इस संयंत्र को चलाने वाले देवेंद्र से बताते हैं कि उनके उत्पाद को वैज्ञानिक भाषा में पहले या ब्रिगेड कहा जाता है और इसका निर्माण कृषि अवशेषों में किया जाता है।

यह प्लांट से किसानों को आमदनी का एक अच्छा स्रोत मिला है। अब फसलों के अवशेष जलाने की किसी किसान को जरूरत नहीं है। कोई भी किसान वहां पहुंचकर या अपने खेत में देवेंद्र सिंह को बुलाकर कृषि अवशेषों को बेच सकता है और अच्छा मुनाफा कमा सकता है। किसानों की आमदनी 2 गुनी करने में कोई कसर देवेंद्र सिंह ने बाकी नहीं छोड़ी है। किसान की इस पहल से प्रदूषण भी काम होगा और वातावरण शुद्ध रहेगा। इसके साथ साथ किसानों को अपने कृषि अवशेषो को जलाने की आवश्कयता भी नहीं रहेगी। बल्कि कर्षि अवशेषो को बेचकर किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी हो जाएगी। किसान ने अपनी आय को दोगुना करने के साथ किसानों की आय को दोगुना कर दिया है। प्रदूषण कम करने के लिए यह किसान की एक अनोखी पहल है। जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी है और दूर-दूर के किसान इस फैक्ट्री को देखने के लिए पहुंचते हैं।