Friday, October 18, 2024
Homeखबरेंबच्‍चों में एक साल में दिखने लगते हैं ऑटिस्टिक के लक्षण :...

बच्‍चों में एक साल में दिखने लगते हैं ऑटिस्टिक के लक्षण : हेमंत सिंह

भोपाल। ऑटिस्टिक होने के लक्षण शिशु में एक वर्ष के बाद ही दिखने लगते हैं। ऑटिज्म के केस लड़कों में चार गुना ज्यादा पाए जाते हैं। ऐसे बच्चे जिन्हें ऑटिज्म है उन बच्चों को बिहेवियरल स्पीच लैंग्वेज थेरेपी और स्पेशल एजुकेशन के द्वारा कंट्रोल में लाया जा सकता है। सन 2000 तक ऑटिज्म 700 पर एक होता था पर वर्तमान में यह संख्या 100 में से एक हो गई है। कोविड के बाद से ऑटिज्म में संख्या बढ़ गई है। ऐसे बच्चे जो ऑटिज्म होते हैं उनमें सोशलिज्म और आई कॉन्टेक्ट कम होता है। यह एक न्यूरो डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है। यह बात भोज विश्वविद्यालय के डीएसई विभाग के वरिष्ठ सलाहकार एवं सहायक प्राध्यापक हेमंत सिंह केसवाल ने विश्व ऑटिज्म सप्ताह के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में कही। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि तीन वर्ष के बाद ऑटिज्म नहीं होता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. संजय तिवारी द्वारा की गई एवं कार्यक्रम संयोजक की भूमिका में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुशील मंडेरिया उपस्थित रहे। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में संदीप रजक कमिश्नर निशक्त जनकल्याण मध्य प्रदेश शासन उपस्थित थे।

ऑटिज्म को हिंदी में स्वलीनता कहते हैं : संदीप

कार्यक्रम में संदीप रजक कमिश्नर, निशक्त जन कल्याण, मध्य प्रदेश ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, ऑटिज्म को हिंदी में स्वलीनता कहते हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय को डिसेबिलिटी के क्षेत्र में लीडिंग विश्वविद्यालय बने इसके लिए शुभकामनाएं दी और विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए कहा कि भोज विश्वविद्यालय स्पेशल एजुकेशन के माध्यम से बहुत अच्छा काम कर रहा है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के बच्चे सोशलाइज नहीं होते हैं। ऐसे बच्चों में कम्युनिकेशन स्किल भी बहुत खराब होता है। स्वलीनता वाले बच्चों को जितनी कम उम्र में चिन्हित किया जाएगा उतना ही उसके डेवलपमेंट में आसानी होगी। उन्होंने आवाहन किया कि इस कोर्स या इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले आगे आए और समाज में मेंटल डिसेबिलिटी के लिए कार्य करें। एक रिपोर्ट में पाया गया है कि, ऑटिज्म में पुरुष/ स्त्री का रेशों 4:1 है। जहां 10 में से 4 बालक ऑटिज्म का शिकार होते हैं वही, 10 में से 1 बालिका इसका शिकार होती है।

बढ़ रहे हैं ऑटिज्‍म के मामले

ऑटिज्म के विषय पर संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुशील मंडेरिया ने कहा कि, इन दिवसों को मनाने का कारण, इस तरह के केसेस में बढ़ रही संख्या है। ऑटिज्म के बच्चे 1 वर्ष की आयु से ही संकेत देने लगते हैं। हमारे समाज में संवेदनाएं समाप्त हो रही हैं। ऐसी परेशानियों से बच्चों को उभरने के लिए उन्हें समाज से जोड़ना और मानसिक रूप से मजबूत बनाना जरूरी है। स्वलीनता एक उम्र के बाद शरीर को स्वस्थ बनाती है जबकि बच्चों में स्वलीनता बीमारी का रूप धारण कर लेती है। ऐसे बच्चे जो ऑटिज्म का शिकार है उन्हें जरूर से कुछ समय ज्यादा जरूर दें। ऐसे बच्चों से संवेदनाएं, संवाद एवं स्पर्श बनाए रखना जरूरी है।

अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन भी ऑटिज्‍म का शिकार

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजय तिवारी ने अपने उद्बोधन में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें ऑटिज्म को समझना चाहिए हर 68 में से एक बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है। अल्बर्ट आइंस्टीन भी एक ऑटिज्म की शिकार थे। ऑटिज्म से ग्रसित होने के चलते अल्बर्ट आइंस्टीन को उनके स्कूल से निकाल दिया गया था। जहां एक तरफ देश तरक्की कर रहा है विज्ञान ने भी विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति की हैं वही न्यूरोलॉजी के विषय में आज भी विज्ञान बहुत आगे तक नहीं आ पाया है। स्वलीनता वाले बच्चे सोशली इंटरेक्ट नहीं होते हैं। ऐसे बच्चों को हमारी सहानुभूति नहीं बल्कि समर्थन चाहिए होता है। हमें प्रयास करना होगा कि इन बच्चों की इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी को हम अपॉइंटमेंट में बदले। समाज में जागरूकता बढ़कर ऑटिज्म को समाप्त किया जा सकता है। आज देश में ऐसी कई बड़ी हस्तियां हैं जो कभी इस समस्या का सामना कर चुकी हैं।

RELATED ARTICLES

Contact Us

Owner Name:

Deepak Birla

Mobile No: 9200444449
Email Id: pradeshlive@gmail.com
Address: Flat No.611, Gharonda Hights, Gopal Nagar, Khajuri Road Bhopal

Most Popular

Recent Comments

Join Whatsapp Group
Join Our Whatsapp Group