मधुमक्खीयां है प्रकृति की नन्ही सैनिक: धरती को बचाने में हर जीव का विशेष महत्व है। अगर मानव जीवन चक्र को चलाना है तो ये छोटे जीव भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। कई वैज्ञानिक बता चुके हैं कि इन छोटे कीट पतंगों की मानव जीवन में क्या महत्ता हैं। आज हम ऐसे ही नन्हे जीव मधुमक्खी की बात करते हैं। वैज्ञानिक मानते है की हमारे भोजन का हर तीसरा हिस्सा मधुमक्खियों के प्रयासों का ही नतीजा है । क्योंकि हम जो भी फल,सब्जियां या अनाज खाते हैं उन्हें उगाने के लिए केवल पानी, धूप और मिट्टी जरूरी नहीं है बल्कि इसमें कीट पतंगों का भी विशेष योगदान है। विश्व में कृषि का एक बड़ा हिस्सा इस कीट पर निर्भर है। खेतों की फसल से लेकर फलों के पराग बनाने की प्रक्रिया में ये जीव अपनी अहम भूमिका निभाता है।
हमारे जीवन में उपयोगी फल सब्जियां या अनाज उन्हें उगाने के लिए परागण की प्रक्रिया खास योगदान रखती है। मधुमक्खियां पेड़ पौधों के पराग कणों को एक पौधों से दूसरे पौधों तक पहुंचाने में मदद करती हैं। जब मधुमक्खी पौधों के फूल पर बैठती है तो उसके पैरों और पंखों में पराग कण चिपक जाते हैं और जब यह उड़कर किसी अन्य पौधे पर बैठती है, तब यह पराग कण उस पौधे में चले जाते हैं और उसे निषेचित कर देते हैं इससे फल और बीजों का उत्पादन होता है। यह दावा किया गया है कि 100 में से 70 खाद्य पदार्थ में मधुमक्खियों का हस्ताक्षेप रहता है। ऐसे में मधुमक्खी को बचाया जाना चाहिए क्योकि यह जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कई रिसर्च में साबित हुआ है कि पर्यावरण को बचाए रखने में मधुमक्खियों की अहम भूमिका है। यह एक मात्र जीव हैं जो संक्रमण नहीं फैलाते। इन दिनों एक पोस्ट सोशल मीडिया में खूब घूम रही है। जिसमें अल्बर्ट आइंस्टीन के एक कथन का जिक्र कर दावा किया जा रहा है कि मधुमक्खियां खत्म हो जाएं तो इंसान 4 या 5 साल ही जिंदा रहेगा, आखिर ऐसा उन्होंने क्यों कहा इसके कितनी सच्चाई है यह तो शोध का विषय है लेकिन सच यह है कि प्रकृति में कीट पतंगों की अवश्यकता कितनी अहम है।
रिसर्च में इस बात के प्रमाण नहीं
अब एक अहम बात, आइंस्टीन ने यह बात कही की नहीं, इसे लेकर सवाल है. वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्होंने कभी इस तरह की बात नहीं की. अमेरिका के सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी के पारिस्थितिकी विज्ञानी माइकल पोकॉक ने कहा, इस बात का कोई सबूत नहीं कि आइंस्टीन ने कभी ऐसा कहा था. हो सकता हो कि उन्होंने इस तरह की कोई और बात कही हो, जिसे एक नए रूप में पेश कर दिया गया है. पोकॉक के मुताबिक, भले ही यह बयान आइंस्टीन ने नहीं दिया हो, लेकिन क्या यह सच है?
तितलियां और चमगादड़ भी करते परागण
डॉ. पोकॉक खुद मधुमक्खियों के विशेषज्ञ हैं. उन्होंने फोर्ब्स को बताया, मधुमक्खियां नहीं भौंरा कहिए. दोनों में महत्वपूर्ण अंतर है. हालांकि, कोई ऐसी रिसर्च नहीं हुई, जिससे साबित होता हो कि अगर मधुमक्खियां खत्म हो जाए तो 4-5 दिन में सारे जीव और यहां तक कि इंसान भी खत्म हो जाएंगे. जहां तक आइंस्टीन के कथन का सवाल है तो तमाम फैक्ट चेक में सामने आया है कि किसी भी किताब, लाइब्रेरी में इस तरह के प्रमाण नहीं मिले कि आइंस्टीन ने ऐसा कहा हो. ऐसे में मधुमक्खियों के अभाव में 5 दिन में इंसानों के खत्म हो जाने की बात पूरी तरह सत्य नहीं. कोरा पर कुछ यूजर्स ने भी ऐसी ही राय रखी. एक ने कहा, मधुमक्खी पालन से जुड़े संगठन ने 1995 यह झूठा दावा किया. लेकिन सिर्फ मधुमक्खियां ही परागण नहीं करतीं. तितलियां, हमिंगबर्ड और यहां तक कि चमगादड़ भी ऐसा करते हैं.