रायसेन । जिले के सांचेत कस्बे में शनिवार को सुबह पशुपालक अशोक साहू के घर पर बछड़ा की मौत हो गई है। ग्रामीणों को आशंका है कि बछड़ा की मौत का कारण लंपी वायरस का प्रकोप है। ग्रामीणों ने कस्बा सांचेत सहित जिले भर में मवेशियों को लंपी वायरस रोधी टीका लगाने की मांग की है। ग्राम के पूर्व जनपद सदस्य जगदीश लोधी का कहना है कि पशुपालक अशोक साहू कुछ दिनों पहले गाय व बछड़ा को अन्य स्थान से लेकर आये हैं। बछड़ा की खाल सूखने व कमजोर होने की बीमारी पिछले तीन-चार दिनों से दिखाई दे रही थी। पशु विभाग के लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया है।
जिले के अन्य ग्रामों में भी पशु बीमार
जिले की उदयपुरा तहसील के देवरी, टिमरावन, सतवास तथा कुछ अन्य ग्रामों में एक दर्जन मवेशियों की त्वचा शुष्क हो रही है और उमनें कमजोरी के भी लक्षण है। इससे ग्रामीणों को लंपी वायरस का प्रकोप फैलने आशंका सताने लगी है।
विभाग ने सैंपल लिए
जिला पशु चिकित्सा विभाग के सहायक संचालक डा. प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि अभी कुछ मवेशियों के सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे गए हैं, जिनकी रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। इससे पहले स्थानीय स्तर पर की गई जांच में किसी को लंपी वायरस होना नहीं पाया गया। एहतियात के तौर पर मवेशियों को लंपी वायरस से बचाव के टीके लगाए जा रहे है। शासन से दस हजार टीका मिले हैं, जिनमे से सात हजार मवेशियों को लंपी वायरस रोधी टीका लगा दिए है। कस्बा सांचेत में मृत बछड़ा के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। पशु चिकित्सा टीम को भेजकर जांच कराएंगे। अभी पशुओं में सूखा रोग के लक्षण मिल रहे हैं, जिसका दो-तीन दिन इलाज करने पर ठीक हो जाते हैं। पशु पालकों को ग्रामो में चौकीदारों के माध्यम से सूचना भिजवाई जा रही है कि बीमार मवेशियों का तुरंत उपचार कराएं। जिले में करीब छह लाख पशु हैं। इनमें तीन लाख गोवंशी व शेष भैंस व अन्य हैं।
रतलाम । दशहरा अवकाश के बाद शुक्रवार से स्कूल भी खुले। रतलाम जिले के नामली के करीब गांव सिखेड़ी के विद्यार्थियों को परीक्षा देने जान जोखिम में डालकर नदी पार कर स्कूल जाना पड़ा। गुरुवार शाम से शुरू हुई वर्षा रात भर गिरने के बाद शुक्रवार सुबह तक जारी रही। रतलाम मुख्यालय से 28 किमी दूर नामली से आगे सिखेड़ी गांव के मार्ग पर गंगायता नदी की पुलिया के ऊपर पानी बह रहा था। यहां हाईस्कूल व हायर सेकंडरी स्कूल नहीं होने के कारण विद्यार्थियों को नामली जाना पड़ता है। शुक्रवार को परीक्षा देने के लिए विद्यार्थियों ने स्वजन व ग्रामीणों की मदद से उफनती नदी को पार किया। इसका वीडियो भी इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुआ। ग्रामीणों ने क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि व अधिकारियों से पुलिया की ऊंचाई बढ़ाने की मांग की है।
भोपाल । प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह हाल ही में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए। राहुल गांधी की यह यात्रा इन दिनों कर्नाटक से होकर गुजर रही है। इस यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह का अलग ही अंदाज देखने को मिला। वह पदयात्रा करते वक्त एक जगह पर कांग्रेस नेताओं के साथ ढोल-मांदल की थाप पर खूब थिरके। इसका वीडियो इंटरनेट मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। इस संदर्भ में दिग्विजय ने ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते हुए खुद को 75 साल का युवक बताया है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान नृत्य के इस वीडियो को साझा करते हुए दिग्विजय ने ट्विटर पर लिखा कि 'आखिर 75 साल का युवक मस्ती क्यों नहीं कर सकता! कल आपने 75 साल के सिद्धारमैया को राहुल जी के साथ दौड़ते देखा। आप उतने ही उम्रदराज या बुजुर्ग हैं, जितना आप महसूस करते हैं और अगर हमें लगता है कि हम युवा हैं तो क्यों नहीं?'
मध्यप्रदेश बाघों का घर कहा जाता है। यहां के छह टाइगर रिजर्व में 500 से ज्यादा बाघ है। प्रदेश के नेशनल पार्क से बाघों के रोमांचक वीडियो अक्सर सोशल मीडिया में वायरल होते रहते हैं। पर्यटकों में भी बाघों को देखने उनकी फोटोज लेने का एक अलग ही क्रेज देखने को मिलता है, लेकिन हाल ही में पन्ना टाइगर रिजर्व में कुछ युवका सेल्फी और बाघ की फोटो लेने के चक्कर में अपनी जान जोखिम में डालते दिखे।
मध्य प्रदेश से एक वीडियो सामने आया है जिसे देखकर लोगों को गुस्सा आ गया है! मामला ‘पन्ना टाइगर रिजर्व’ के पास पन्ना-छतरपुर मार्ग का है, जहां कुछ युवक अपनी जान जोखिम में डालकर टाइगर के साथ सेल्फी और उसके फोटो खींचते नजर आए। बता दें, यह वीडियो आईएफएस अधिकारी सुशांता नंदा ने शेयर किया। उन्होंने कैप्शन में लिखा- याद रखें कि अगर आप एक बड़े शिकारी (मांसाहारी) को देखते हैं, तो समझ जाइए कि वह चाहता था कि आप उसे देखें। वह नहीं चाहता कि कोई उसका पीछा करे। खतरा महसूस करते ही टाइगर आपको मौत के घाट उतार सकता है। कृपया इस तरह का अजीब व्यवहार ना करें।
इस वीडियो में हम देख सकते हैं कि एक टाइगर जंगल से निकलकर सड़क के दूसरी तरफ जा रहा है। कुछ लड़के बाघ को देख लेते हैं, जिसके बाद वह जेब से मोबाइल निकाल कर टाइगर को कैमरे में फिल्माने लगते हैं। इतना ही नहीं, कुछ तो उसके साथ सेल्फी लेने की भी कोशिश करते हैं। हालांकि, बाघ सभी को इग्नोर करता हुआ चुपचाप जंगल में चला जाता है। लेकिन नौजवानों की यह हरकत सोशल मीडिया यूजर्स को बिलकुल पंसद नहीं आई।
यूजर्स लगातार अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जैसे एक शख्स ने लिखा कि इन युवओं को सजा दी जानी चाहिए। दूसरे ने लिखा- गजब लोग हैं, शेर के साथ सेल्फी लेना चाहते हैं। वहीं अन्य ने लिखा कि भारत में अधिकतर मौतें मोबाइल फोटोग्राफी के कारण भी हो रही हैं। इसी तरह से तमाम यूजर्स ने इन युवाओं को बेवकूफ और कम अक्ल कह दिया।
पन्ना टाइगर रिजर्व में हैं 70 बाघ वाइल्ड लाइफ के जानकारों के मुताबिक बाघ इंसानों पर कम ही हमले करता है, लेकिन जब भी वह खुद को असुरक्षित महसूस करता है तो अपने बचाव में हमला बोल देता है। इस तरह युवकों के सेल्फी लेने की होड़ से बाघ आक्रामक होकर उनपर हमला भी कर सकता था। बता दें कि पन्ना टाइगर रिजर्व में करीब 70 बाघ हैं जो कि जंगल के कोर और बफर क्षेत्र के अलावा अक्सर गांव की सीमा और सड़क पार करते देखे जाते हैं।
वायरल वीडियो पन्ना छतरपुर मार्ग का है, यहां कुछ लोग बाघ के साथ फोटो लेने के चक्कर में जान जोखिम में डालते नजर आ रहे हैं। pic.twitter.com/wvuAPCnaSS
11 अक्टूबर, मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) उज्जैन में बनाए गए महाकाल लोक (Mahakal Lok) का लोकार्पण करेंगे। इसके लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
महाकाल लोक का नाम पहले महाकाल कॉरिडोर था, बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका नाम बदला। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत महाकाल मंदिर का विस्तार किया जा रहा है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण सहित अन्य कई ग्रंथों में मिलता है। आज हम आपको महाकाल मंदिर से जुड़ी 10 ऐसी बातें बता रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आगे जानिए कौन-सी हैं वो 10 बातें.
सिर्फ यहीं होती है भस्म आरती महाकाल मंदिर में रोज सुबह ज्योतिर्लिंग की भस्म से आरती की जाती है। इसे भस्म आरती कहते हैं। ये भस्म गाय के गोबर से बने कंडों से तैयार की जाती है। कहते हैं कि पहले के समय में भस्म आरती मुर्दे की राख से की जाती थी, लेकिन बाद में इस परंपरा को बदल दिया गया। भस्म आरती को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।
एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग धर्म ग्रंथों में 12 ज्योर्तिर्लिगों के बारे में बताया गया है। ये सभी का विशेष महत्व है। महाकालेश्वर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग हैं जो दक्षिणमुखी है। चूंकि दक्षिणा दिशा के स्वामी यमराज हैं, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का महत्व बहुत अधिक माना गया है। यमराज यानी काल के स्वामी होने के कारण ही इन्हें महाकाल कहा जाता है।
साल में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर महाकाल मंदिर तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। सबसे नीचे महाकाल मंदिर का गर्भगृह है जहां शिवलिंग स्थापित है। इसके ऊपर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है और सबसे ऊपर है नागचंद्रेश्वर। यहां भगवान शिव-पार्वती की एक अद्भुत प्रतिमा दीवार से चिपकी हुई है। इसके दर्शन साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर होते हैं। बाकी समय ये मंदिर बंद रहता है।
सावन-भादौ मास में निकलती है सवारी उज्जैन में सावन-भादौ मास में भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है। ऐसा माना जाता है भगवान महाकाल अपने भक्तों का हाल-चाल जानने के लिए नगर भ्रमण करते हैं। सावन और भादौ को मिलाकर लगभग 6-7 साल निकाली जाती है। इस दौरान शहर के लोग भी भगवान महाकाल के दर्शन के लिए कई घंटों तक सड़कों पर खड़े रहते हैं।
उज्जैन के राजा हैं महाकाल उज्जैन के लोग महाकाल को अपना राजा मानते हैं। इसी मान्यता के साथ वे हर शुभ काम से पहले महाकाल को निमंत्रण पत्र देने जाते हैं कि उनके सभी काम बिना किसी मुश्किल के आसान से हो जाएं। शायद ही कोई ऐसा स्थान हो, जहां भगवान को राजा मानकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
महाकाल में कई प्रसिद्ध मंदिर महाकाल मंदिर परिवार के अंदर ही कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनके साथ अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इनमें जूना महाकाल, बाल हनुमान, कर्कोटक महादेव, सिद्धिविनायक मंदिर, सप्तऋषि मंदिर, नवग्रह मंदिर आदि प्रमुख हैं।
गर्भ गृह में लगा है रुद्र यंत्र महाकाल मंदिर गर्भ गृह में रुद्र यंत्र स्थापित है। ये यंत्र चांदी से निर्मित है। रुद्र यंत्र को भी साक्षात शिव का ही अवतार माना जाता है। दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 11 जुलाई 1997 को महाकाल मंदिर के गर्भगृह में रूद्र यंत्र लगवाया था। इस रूद्र यंत्र मे 271 कंडीकाए मंत्र लगे हुए हैं।
महाकाल का भोग एफएसएसएआई द्वारा प्रमाणित महाकाल मंदिर में मिलने वाले लड्डू प्रसाद को एफएसएसएआई (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया) ने सेफ भोग का प्रमाण पत्र दिया है। प्रदेश में कुछ ही चुनिंदा मंदिरों को ये प्रमाण पत्र मिला है। सेफ भोग प्लेस परियोजना में श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा संचालित निशुल्क अन्नक्षेत्र, लड्डू प्रसाद निर्माण इकाई एवं निकटतम खाद्य प्रतिष्ठानों को सम्मिलित किया गया है।
कोटितीर्थ के जल से होता है अभिषेक मंदिर परिसर में ही एक कुंड है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। प्रतिदिन रोज सुबह इसी कुंड के जल से भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है। कोटि का अर्थ होता है करोड़ यानी इस कुंड में करोड़ों तीर्थों का जल है, ऐसा माना जाता है। ऐसा भी कहते हैं कि भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय हनुमानजी भी इसी कुंड से जल लेकर गए थे।
निर्वाणी अखाड़ा करता है भस्म आरती महाकाल मंदिर की गादी यानी कुछ प्रमुख अधिकार निर्वाणी अखाड़े के पास है जैसे बाबा महाकाल की भस्म आरती सिर्फ वही संत-साधु कर सकता है जो अखाड़े से संबंधित हो। निर्वाणी अखाड़े का केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है। इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग, ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबक, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में है।
इस साल दीपावली 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस बार विशेष संयोग है, जब नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली एक साथ मनाई जाएगी।
वैसे तो दीपोत्सव का ये पर्व पूरे पांच दिनों तक चलता है। दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है, उसके बाद छोटी दिवाली और फिर अगले दिन बड़ी दिवाली मनाई जाती है। लेकिन इस बार तीनों ही त्योहारों की तारीखों को लेकर कन्फ्यूजन है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार धनतेरस के अलगे ही दिन बड़ी दिवाली पड़ रही है। इस साल धनतेरस 23 अक्टूबर को है। इसके बाद छोटी और बड़ी दिवाली 24 अक्टूबर को। यानी साल 2022 में छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली पर्व एक साथ मनाया जाएगा। इस बार धनतेरस के अगले ही दिन ही बड़ी दिवाली क्यों पड़ रही है? आइए जानते हैं…
धनतेरस 2022
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 22 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 02 मिनट से हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 23 अक्टूबर शाम 6 बजकर 03 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 23 अक्टूबर को धनतेरस मनाया जाएगा।
छोटी दिवाली 2022
इसके बाद 23 अक्टूबर को ही शाम 6 बजकर 04 मिनट से ही चतुर्दशी तिथि की शुरुआत हो जा रही है, जिसका अगले दिन 24 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 28 मिनट पर समापन होगा। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर 24 अक्टूबर को छोटी दिवाली यानी नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा।
दिवाली 2022
फिर 24 अक्टूबर को ही शाम 05 बजकर 28 मिनट से अमावस्या तिथि लग जा रही है, जो 25 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। वहीं 25 अक्टूबर को शाम में यानी प्रदोष काल लगने से पहले ही अमावस्या समाप्त हो जा रही है। ऐसे में दिवाली का पर्व इस दिन नहीं मनाया जाएगा, बल्कि 24 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा।
नरक चतुर्दशी 2022 शुभ मुहूर्त
अभ्यंग स्नान मुहूर्त- 24 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 08 मिनट से सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक
अवधि – 01 घंटा 23 मिनट
काली चौदस 2022 डेट और मुहूर्त
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर काली चौदस भी मनाई जाती है। इसमें मध्यरात्रि में मां काली की पूजा की जाती है। काली पूजा रात में होती है ऐसे में 23 अक्टूबर को काली चौदस की पूजा की जाएगी।
काली चौदस मुहूर्त – 23 अक्टूबर 2022, रात 11 बजकर 42 मिनट से 24 अक्टूबर को रात में 12 बजकर 33 मिनट तक।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 53 मिनट से रात 08 बजकर 16 मिनट तक
पंजाब में नवांशहर के पंडोरा मोहल्ला में चोपड़ा गोत्र की माता मतीनी व सती माता की समाधि पर चोपड़ा वंश के लोग विश्व भर से आकर माथा टेकते और आशीर्वाद लेते हैं।
'चोपड़ा' परिवार सती माता मंदिर मैनेजमैंट एंड वैल्फेयर कमेटी' के चेयरमैन श्री राजेंद्र चोपड़ा तथा प्रधान श्री अशोक चोपड़ा ने बताया कि इस स्थान से जुड़ी एक कथा के अनुसार अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली ने 1747 से 1767 ई. तक भारत प्रवास के दौरान पंजाब पर कुल 8 आक्रमण किए तथा 1752 ई. में पंजाब पर कब्जा कर लिया।
उसने यहां के लोगों के धर्मस्थल नष्ट कर दिए। उसने पंजाब के कस्बा राहों में सर्वाधिक संख्या में रहने वाले चोपड़ा वंश के लोगों का भी वध करना शुरू कर दिया, जिससे यह वंश पूर्णत: समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया। भगवान की कृपा से इस तबाही में बच निकले एक छोटे से बालक ने वाल्मीकि समुदाय से संबंधित माता मतीनी नामक एक देवी से रक्षा की गुहार लगाई, जो उस बालक को अब्दाली से बचा कर राहों से नीवां शहर (वर्तमान नवांशहर) ले आईं। 1773 में अब्दाली घोड़े से गिरकर मर गया और माता मतीनी की भी इस घटना के करीब 30 वर्ष बाद मृत्यु हो गई परंतु वह बच्चा सुरक्षित रहा। चोपड़ा वंश के सदस्यों ने माता मतीनी की समाधि चोपड़ा वंश की सतियों की समाधियों के निकट बनाई है। इनके साथ ही सती माता का मंदिर है।
कहा जाता है कि सती माता सपने में कुछ श्रद्धालुओं को दर्शन देकर यहां भव्य स्थान बनाने तथा सेवा करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। इस स्थान के बारे में यह कथा भी प्रचलित है कि कुरुक्षेत्र में एक सेठ के घर पोता न होने के कारण वह दुखी रहता था। एक रात उसके सपने में आकर कुलदेवी सती माता ने सेठ को माई मतीनी की समाधि पर जाकर देसी घी का लंगर लगाने को कहा। उस सेठ ने ऐसा ही किया और बाद में उसके घर में एक पोते ने जन्म लिया। तभी से चोपड़ा वंश के सदस्य प्रति वर्ष इस स्थान पर देसी घी का लंगर लगाते आ रहे हैं। चोपड़ा वंश भी माता मतीनी को अपने वंश की रक्षक मानता है।चोपड़ा वंश के सदस्यों ने इस स्थान को अत्यंत आकर्षक बना दिया है। यहां श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए बड़ा हॉल बनाया गया है। प्रति वर्ष नौवें श्राद्ध पर माई मतीनी की याद में यहां मेला लगाया जाता है। यहां नवविवाहिता व नवजात बच्चे का माथा टिकाने की प्रथा है। यहां 18 सितम्बर को आठवें श्राद्ध पर रात 9 बजे से सती माता का गुणगान तथा 19 सितम्बर को नौवें श्राद्ध के अवसर पर सुबह 10 बजे हवन यज्ञ के उपरांत देसी घी का भंडारा लगाया जाएगा।
दुख एक मानसिक कल्पना है। कोई पदार्थ, व्यक्ति या क्रिया दुख नहीं है। संसार के सब नाम-रूप गधा-हाथी, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, वृक्ष-लता आदि खिलौने हैं। हम अपने को खिलौना मानेंगे तो गधा या हाथी होने का सुख-दुख होगा, अपने को स्वर्ण, मूल्यधातु देखेंगे तो यह मनुष्य देह नहीं रहेंगे। हम विराट् हैं, साक्षात् ब्रह्म है। जो मनुष्य इस जगत प्रपंच को सत्य देखता है, उसे माया ने ठग लिया है। जो पहले भी नहीं थे, आगे भी नहीं रहेंगे, बीच में थोड़ी देर को दिखाई दे रहे हैं, उन्हीं को सब कुछ समझ कर माया मोहित मनुष्य व्यवहार कर रहा है। तत्वज्ञान शिक्षा देता है कि जो कुछ दिखाई दे, उसे दिखाई देने दो, जो बदलता है, उसे बदलने दो, जो आता-जाता है, उसे आने जाने दो। यह सब जादू का खेल है।
ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते। आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध:।
पुराणों में एक कथा आती है- महाराज जनक के जीवन में कोई भूल हो गई थी। मरने पर उन्हें यमलोक जाना पड़ा। वहां उससे कहा गया- नरक चलो। महाराज जनक तो ब्रह्मज्ञानी थे। उन्हें क्या स्वर्ग, क्या नरक। वे प्रसन्नतापूर्वक चले गए। नरक में पहुंचे तो चारों ओर से पुकार आने लगी- 'महाराज जनक जी! तनिक यहीं ठहर जाइए।'
महाराज जनक ने पूछा- 'यह कैसा शब्द है?'
यमदूतों ने कहा-'नरक के प्राणी चिल्ला रहे हैं।'
जनक ने पूछा-'क्या कह रहे हैं ये?'
यमदूत बाले-'ये आपको रोकना चाहते हैं।'
जनक ने आश्चर्य से पूछा-'ये मुझे यहां क्यों रोकना चाहते हैं?'
यमदूत बोले- 'ये पापी प्राणी अपने-अपने पापों के अनुसार यहां दारुण यातना भोग रहे हैं। इन्हें बहुत पीड़ा थी। अब आपके शरीर को स्पर्श करके पुण्य वायु इन तक पहुंची तो इनकी पीड़ा दूर हो गई। इन्हें इससे बड़ी शांति मिली।'
जनक जी बोले-'हमारे यहां रहने से इन सबको शांति मिलती है, इनका कष्ट घटता है तो हम यहीं रहेंगे।'
तात्पर्य यह है कि भला मनुष्य नरक में पहुंचेगा तो नरक भी स्वर्ग हो जाएगा और बुरा मनुष्य स्वर्ग में पहुंच जाए तो स्वर्ग को भी नरक बना डालेगा। अत: देखना चाहिए कि हम अपने चित्त में नरक भरकर चलते हैं या स्वर्ग लेकर। जब हमें लगता है कि समस्त विश्व मेरी आत्मा में है, तब रोग-द्वेष, संघर्ष-हिंसा के लिए स्थान कहां रह जाता है?
भोपाल । विधानसभा चुनाव-2008 में जिस लाड़ली लक्ष्मी योजना ने भाजपा की नैया पार लगाने में खूब मदद की थी वही योजना वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भी अहम भूमिका निभाएगी। राज्य सरकार ने तय किया है कि प्रत्येक जिले में एक आदर्श सड़क 'लाड़ली लक्ष्मी" के नाम से जानी जाएगी। इसके लिए सभी कलेक्टरों से सड़क का चयन कर प्रस्ताव मांगे गए हैं। ऐसा कर सरकार लाड़ली लक्ष्मियों और उनके अभिभावकों का ध्यान खींचना चाहती है। इन सड़कों के नाम की घोषणा आठ अक्टूबर को भोपाल के रवींद्र भवन में प्रस्तावित लाड़ली लक्ष्मी सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करने वाले थे पर मांडू में भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण वर्ग के कारण सम्मेलन टल गया। यह अब 15 अक्टूबर के बाद आयोजित किया जा सकता है। बता दें, प्रदेश में करीब 43 लाख लाड़ली लक्ष्मी हैं। लाड़ली लक्ष्मी शिवराज सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। इसे देश के दूसरे राज्यों ने भी लागू किया है। इससे न सिर्फ भविष्य के 43 लाख मतदाता (लाड़ली लक्ष्मी) जुड़े हैं। बल्कि उनके अभिभावक भी जुड़े हैं। इनको मिलाकर मतदाताओं की संख्या करीब सवा करोड़ हो जाती है। इसलिए सरकार विधानसभा चुनाव से पहले यह बड़ा दांव खेल रही है। सरकार का मानना है कि जिला मुख्यालय की एक सबसे सुंदर सड़क लोगों का ध्यान आकर्षित करेगी और इसका 'लाड़ली लक्ष्मी" नाम लोगों को सरकार और योजना की याद दिलाएगा। इस सड़क के दोनों ओर आकर्षक सजावट भी की जाएगी। हालांकि अभी यह तय नहीं हुआ है कि सड़कों को कैसे सजाया जाएगा। जिला मुख्यालय की एक सड़क के प्रति लोगों का रुझान देखने के बाद प्रदेश के अन्य नगरीय निकायों में भी ऐसी सड़कों का चयन किया जाएगा। चुनाव के मद्देनजर आदिवासी, महिला और लाड़ली लक्ष्मी सरकार की प्राथमिकता में हैं। इससे पहले सरकार चुनींदा लाड़ली लक्ष्मियों को बाघा सीमा की सैर करवा चुकी है। सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी प्रोत्साहन कानून में संशोधन करके उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली युवतियों को भी योजना में शामिल किया है। मई, 2022 में सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी-2 योजना का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम में प्रदेशभर से बेटियों को बुलाया गया था। इस सम्मेलन में कई बेटियों ने मुख्यमंत्री को चिट्टी भी लिखी और अपनी जिंदगी खुशहाल बनाने के लिए उनका धन्यवाद भी किया। मुख्यमंत्री ने फोन पर इनमें से कुछ बेटियों से बात भी की थी। वहीं अब योजना-दो की पात्र बेटियों को राशि वितरित करने के लिए सम्मेलन बुलाया जा रहा था।