Saturday, April 19, 2025
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लाल किले पर होगा विक्रमादित्य महानाट्य का मंचन:मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 

भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि अतीत के गौरवशाली इतिहास को जन सामान्य के सामने लाने के लिये 2 हजार वर्ष पहले सम्राट विक्रमादित्य द्वारा सुशासन के सिद्धांतों पर स्थापित शासन संचालन व्यवस्था और उनकी कीर्ति पर केन्द्रित महानाट्य की प्रस्तुति दिल्ली के लाल किले पर 12-13-14 अप्रैल को होने जा रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का ध्येय वाक्य विरासत से विकास की ओर हमारे लिए एक पाथेय की तरह सिद्ध हो रहा है। हम विकास कार्यों में विरासत को महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। मप्र सरकार सुशासन को ध्यान में रखते हुए विकास और जनकल्याण की सभी गतिविधियां संचालित कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव शनिवार को नई दिल्ली में विक्रमोत्सव अंतर्गत सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य के महामंचन के संबंध में पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य के विराट व्यक्तित्व को सबके सामने लाने के लिए महानाट्य की कल्पना की गई है। उन्होंने कहा कि जब इसका मंचन दिल्ली में 12, 13 और 14 अप्रैल को लाल किले पर होगा तो इसमें हाथी, घोड़ों, पालकी के साथ 250 से ज्यादा कलाकार अभिनय करते नजर आएंगे। महानाट्य में शामिल कलाकार निजी जीवन में अलग-अलग क्षेत्र के प्रोफेशनल्स हैं। महानाट्य में वीर रस समेत सभी रस देखने को मिलेंगे। महानाट्य का मंचन गौरवशाली इतिहास को विश्व के सामने लाने का मध्यप्रदेश सरकार का एक अभिनव प्रयास है। इस कालजयी रचना को सबके सामने रखने में दिल्ली सरकार का भी सहयोग मिल रहा है। इससे पहले हैदराबाद में भी विक्रमादित्य महानाट्य की प्रस्तुति हो चुकी है।

सुशासन व्यवस्था का आदर्श उदाहरण
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल, सुशासन व्यवस्था का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। वे एकमात्र ऐसे शासक थे, जिनके जीवन के विविध प्रसंगों से आज भी लोग प्रेरणा लेते हैं। उनके द्वारा किए गए कार्य और नवाचार आज भी प्रासंगिक हैं। वर्तमान में हिजरी और विक्रम संवत प्रचलन में हैं। इसमें विक्रम संवत उदार परंपरा को लेकर चलने वाला संवत है, अर्थात संवत चलाने वाले के लिए शर्त है कि जिसके पास पूरी प्रजा का कर्ज चुकाने का सामथ्र्य हो, वही संवत प्रारंभ कर सकता है। सम्राट विक्रमादित्य ने अपने सुशासन, व्यापार-व्यवसाय को प्रोत्साहन और दूरदृष्टि से यह संभव किया विक्रमादित्य ने विदेशी शक आक्रांताओं को पराजित कर विक्रम सम्वत् का प्रारंभ 57 ईस्वी पूर्व में किया था। विक्रम संवत के 60 अलग-अलग प्रकार के नाम हैं। संवत 2082 को धार्मिक अनुष्ठानों के संकल्प में सिद्धार्थ नाम दिया गया है। ये 60 नाम चक्रीकरण में बदलते रहते है। विक्रमादित्य का न्याय देश और दुनिया में प्रचारित हुआ। यह सम्वत् भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आधार वाला कालगणना सम्वत् बन गया, जो आज भी प्रचलित है।

विक्रमादित्य युग परिवर्तन की एक महत्वपूर्ण धुरी
भारत वर्ष में उज्जयिनी के सार्वभौम सम्राट विक्रमादित्य युग परिवर्तन और नवजागरण की एक महत्वपूर्ण धुरी रहे हैं और उनके द्वारा प्रवर्तित विक्रम सम्वत् हमारी एक अत्यंत मूल्यवान धरोहर है। विक्रम सम्वत् हिंदू समाज का महज एक पर्व या नववर्ष भर नहीं है। विक्रम सम्वत् तथा सम्राट विक्रमादित्य भारतवर्ष के गौरव को, मनोबल को और राष्ट्र की चेतना को जागृत करने का एक उपयुक्त अवसर है। यह पुरातन परंपरा से शक्ति प्राप्त कर भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने का एक राष्ट्रव्यापी अभियान है। हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा है कि यही समय है, सही समय है… विश्व में भारत का समय है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि हम जानते हैं कि विदेशी आक्रांताओं और उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने भारत गौरव तथा ज्ञान संपदा के प्रमाणों, साक्ष्यों, स्थापत्यों के सुनियोजित विनाश का अभियान चलाया। उनके द्वारा हमारी संपदा का विध्वंस किये जाने के प्रमाण लगातार मिलते रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि पहली बार सम्राट विक्रमादित्य की शासन व्यवस्था में ही नवरत्नों का समूह देखने को मिलता है। इन नवरत्नों में सभी अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञ थे। उन्होंने सुशासन की व्यवस्था स्थापित की। नवरत्न सभी परिस्थितियों में सुचारू शासन संचालन में सक्षम थे। इसी क्रम में 300 साल पहले शिवाजी महाराज के अष्ट प्रधान की पद्धति में यही व्यवस्था दिखाई देती है। विक्रमादित्य उज्जैन के सार्वभौम सम्राट के रूप में लोक विख्यात हैं। आज विक्रमादित्य के अनेक पुरातत्वीय प्रमाण, लेख, मुद्रा अवशेष प्राप्त हैं।

विक्रमादित्य की प्रजा के प्रति संवेदनशीलता अद्भुत
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य की दानशीलता, वीरता और प्रजा के प्रति संवेदनशीलता अद्भुत थी। विक्रम-बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी की कहानियों में इस प्रकार के कई प्रसंग आते हैं। सम्राट विक्रमादित्य के आदर्शों का सभी शासक अनुसरण करना चाहते थे। विक्रमादित्य का मूल नाम शशांक था, उन्हें विक्रमादित्य की उपाधि से सुशोभित किया गया, जो उल्टे क्रम को सूत्र में बदल दे, वो विक्रम और जो सूर्य के समान प्रकाशमान रहे वो आदित्य का भाव निहीत था। उज्जयिनी के सार्वभौम सम्राट विक्रमादित्य भारतीय अस्मिता के उज्जवल प्रतीक हैं। वे शक विजेता, सम्वत् प्रवर्तक, वीर, दानी, न्यायप्रिय, प्रजावत्सल, स्तत्व सम्पन्न थे। वे साहित्य, संस्कृति और विज्ञान के उत्प्रेरक रहे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य ने 2000 साल पहले गणतंत्र की स्थापना की, उन्होंने कभी स्वयं को राजा नहीं कहा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी स्वयं को देश का प्रधान सेवक मानते हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने 20 साल पहले विक्रमादित्य शोध पीठ स्थापित की है, जो विक्रमादित्य के जीवन मूल्यों पर आधारित पुस्तकें प्रकाशित कर विभिन्न तथ्य सामने ला रही है।

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