जबलपुर । श्री वर्धमान स्त्रोत विधान स्तुति ६४ छंदों में निबद्ध है ये काव्य किसी न किसी रोग के स्थायी निवारण के साधन भी हैं।इस स्त्रोत के पढ़ने से मनन करने से हमारी वृत्ति वर्तमान शासन नायक वर्द्धमान महावीर प्रभु के प्रति श्रद्धा में वृध्दि करती तथा वीर प्रभु के वंश की वृध्दि में सहायक होती है। ज्ञान तथा सुख को देने वाला यह स्त्रोत भक्तामर तथा कल्याण मन्दिर स्त्रोत की तरह जैन तथा कल्याण के इक्छुक सभी जनों में प्रसिद्धि को प्राप्त है। सच्चे मन से यह विधान करने से हमारे अंदर निगेटिविटी दूर होती है और सकारात्मक विचारों का प्रवाह होता है।
उक्त उद्गार अर्हं योग प्रणेता मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज ने रांझी स्थित जैन मंदिर में श्री वर्धमान विधान पूजन के अवसर पर उपदेश देते हुए व्यक्त किये।
आज मुनिद्वय के मंगल सानिध्य तथा ब्र नवीन के निर्देशन में श्री वर्धमान स्त्रोत विधान सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अनेक श्रावकों ने मुनिश्री से वर्धमान व्रत भी ग्रहण किये।रांझी नगर में यह आयोजन प्रथम बार होने से समाज मे बहुत ही उतसाह का माहौल था। ६४ काव्यों के माध्यम से ६४ परिवारों ने विधान के माढ़ने पर अर्घ्य समर्पित किये। सौधर्म ईशान सनत कुमार तथा महेंद्र के साथ महायज्ञ नायक और कुबेर आदि पात्रों ने शांति धारा कर्ता के साथ विधान की प्रमुख पूजन की। मुनिश्री को शास्त्र मामा स्टोर्स परिवार द्वारा समर्पित किया गया। कार्यक्रम का संचालन सचिन जैन सहारा ने किया।
उल्लेखनीय है कि संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री १०८ विद्यासागर महाराज के शिष्य अर्हं योग प्रणेता मुनिश्री प्रणम्य सागरजी महाराज एवं मुनिश्री चंद्र सागरजी महाराज का शीतकालीन प्रवास रांझी नगर में चल रहा है जहां प्रतिदिन प्रातः ८.४५ बजे से प्रवचन दोपहर ३ बजे से धार्मिक स्वाध्याय तथा संध्या ५.४५ पर गुरुभक्ति तथा अन्तरगूँज कार्यक्रम चल रहे हैं।जबलपुर शहर तथा आसपास के स्थानों से बड़ी संख्या में उपस्थित होकर श्रावक जन मुनिसंघ के सानिध्य में धर्म लाभ ले रहे हैं।समस्त आयोजन में उपस्थित होकर धर्मलाभ लेने की अपील जैन समाज रांझी पदाधिकारियों ने की है।
रांझी में चल रही शीत कालीन वचना
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