यूं तो आज के समय में जूते-चप्पल पहनना हमारी डेली लाइफ का एक हिस्सा है, लेकिन अपने भारत में एक गांव ऐसा भी जहां जूते-चप्पल पहनने पर पूरी तरह से रोक है .सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस गांव के लोग अस्पताल भी नहीं जाते हैं। अगर गांव में कोई सांसद या जिला मजिस्ट्रेट आते हैं, तो उन्हें भी गांव के बाहर ही जूते-चप्पल उतारने पड़ते हैं।
हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के गांव वेमना इंदलू की. तिरुपति से 50 किलोमीटर की दूर पर स्थित इस गांव में 25 परिवार रहते हैं. गांव की कुल आबादी 80 लोगों की है. गांव वैसे तो काफी छोटा है लेकिन यहां के नियम और परंपराएं अनोखी हैं. गांव में ज्यादातर परिवार अशिक्षित है और पूरी तरह खेती किसानी पर ही ही निर्भर है. कहा जाता है कि गांव वाले किसी अफसर से ज्यादा अपने देवता और सरपंच की बात मानते हैं.
बीमार होने पर करते मंदिर की परिक्रमा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां पलवेकरी समुदाय से जुड़े लोग रहते हैं और अपनी पहचान दोरावारलू के रूप में करते हैं. आंध्र प्रदेश में इस जाति को पिछड़े वर्ग में रखा गया है. अब बात यहां के नियमों की, तो बता दें कि यहां का कोई भी शख्स अस्पताल नहीं जाता. उनका मानना है कि ईश्वर जिनकी वे पूजा करते हैं, वह सब संभाल लेंगे. लोग तिरुपति भगवान वेंकटेश्वर की पूजा करने भी नहीं जाते, क्योंकि गांव में ही एक मंदिर है, जिसमें वे पूजा करते हैं. जब बीमार होते हैं तो यहां नीम का एक वृक्ष है, उसकी परिक्रमा करते हैं. मंदिर की परिक्रमा करते हैं पर अस्पताल नहीं जाते.
बाहर से आने वालों पर भी यही नियम लागू
आप जानकर हैरान होंगे कि नियम इतना सख्त है कि अगर कोई बाहर से आए तो उसे भी जूते-चप्पत उतारकर ही गांव में जाना होता है. यहां तक कि आलाधिकारियों को भी इस नियम का सख्त से पालन करना जरूरी है. एक और परंपरा है कि गांव में अगर कोई बाहर से आए, तो बिना नहाए-धोए प्रवेश नहीं करेगा.महिलाओं को पीरियड्स के दौरान गांव के बाहर रखा जाता है, और वहीं उनको सारी चीजें मुहैया कराई जाती हैं