Moon Mission: भारत के चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अन्य देश भी अब चांद पर पहुंचने के लिए इसरो की राह पर है। जापान के मून स्नाइपर लैंडर ने सोमवार को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर लिया। बता दें, ‘स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून’ को मून स्नाइपर नाम दिया गया है। स्लीम का मुख्य उद्देश्य चुनी गई साइट के 100 मीटर के भीतर सटीक लैंडिंग का प्रदर्शन करना है। अगर यह मिशन सफल होता है तो अमेरिका, रूस, चीन और भारत के बाद जापान चंद्रमा पर सफलतापूर्वक यान उतारने वाला पांचवां देश बन जाएगा। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने एक बयान में बताया कि स्लिम को जापान के समयानुसार शाम चार बजकर 51 मिनट पर चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया। एजेंसी ने कहा कि लैंडर ने योजना के स्वरूप ही काम किया। फिलहाल कोई समस्या नहीं दिख रही है। सब सही है।
20 तक चांद पर बैठा होगा लैंड
अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि लैंडर चांद की सतह पर 20 जनवरी को जापान के समयानुसार देर रात करीब 12 बजे उतरना शुरू करेगा। गौरतलब है, जापान ने स्लिम नाम का अपना एक मून लैंडर चांद के लिए लॉन्च किया था। सात सितंबर को जापान के स्थानीय समयानुसार सुबह 8.42 बजे यह अंतरिक्ष यान लॉन्च हुआ था। जापान के एच 2ए रॉकेट के जरिए यह तनेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुआ। इसके अलावा जापान एक अंतरिक्ष टेलीस्कोप भी ले गया है। दोनों स्पेसक्राफ्ट एक घंटे के अंदर ही अपने पथ पर पहुंच गए। अगर सबकुछ सही गया तो अगले महीने बाद ‘स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून’ चांद पर उतरेगा।
तीन बार टालना पड़ा था
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी को अगस्त में तीन बार अपना यह मिशन टालना पड़ा था। इसके पीछे का कारण खराब मौसम था। बार-बार खराब मौसम के चलते जापानी अंतरिक्ष एजेंसी को मून मिशन की लॉन्चिंग की तारीख को बदलना पड़ा, लेकिन आखिरकार जापान ऐसा करने में सफल रहा। तनेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र से (एच2ए) रॉकेट के जरिए यह लॉन्चिंग की गई है। जापानी एयरोस्पेश एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेक्सा) द्वारा लॉन्च किया जाने वाले मून मिशन ‘मून स्नाइपर’ में रॉकेट एक लैंडर को ले गया है। जेक्सा ने बताया कि लॉन्च के करीब 13 मिनट बाद रॉकेट ने एक्स-रे इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन (एक्सआरआईएसएम) नामक एक उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया था, जो आकाशगंगाओं के बीच स्थित चीजों की गति और संरचना को माप रहा। एजेंसी का कहना है कि इससे मिली जानकारी यह अध्ययन करने में मदद करेगी कि आकाशीय पिंडों का निर्माण कैसे हुआ। साथ ही उम्मीद है कि ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ इस रहस्य को सुलझाने में भी मदद मिल सकती है।