Tuesday, December 10, 2024
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कुशग्रहणी अमावस्या 14 और 15 सितंबर को, जानिए कुशा को धार्मिक कार्यों में धारण करने का महत्व

कुशग्रहणी अमावस्या: धर्म-कर्म में कुश (एक तरह की घास) बहुत जरूरी होती है। पूरे साल पूजा-पाठ में इसका उपयोग किया जाता है। इसलिए इसका संग्रहण भाद्रपद की अमावस्या को किया जाता है। इसलिए इसे कुशग्रहणी अमावस कहते हैं। इस तिथि को नदी-तालाबों से कुश एकत्र किया जाता है। यह अमावस्या इस बार 14 और 15 सितंबर की तिथियों में है। धर्म-कर्म में इस घास का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से किया जाता था। इस घास के बिना धर्म-कर्म अधूरे माने जाते थे। माना जाता है कि कुश घास की अंगूठी पहनने से व्यक्ति पूजा-पाठ करने के लिए पवित्र हो जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार भाद्रपद की अमावस्या पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म, धूप-ध्यान भी जरूर करना चाहिए। इस तिथि के स्वामी पितर देवता ही माने गए हैं। घर-परिवार के मृत सदस्यों की याद में अमावस्या पर धूप-ध्यान, दान-पुण्य आदि शुभ काम किए जाते हैं। पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का सबसे अच्छा समय दोपहर 12 बजे माना जाता है। दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि किए जाते हैं।

पूजा-पाठ के साथ दान भी करें

अमावस्या पर पूजा-पाठ के साथ ही दान-पुण्य भी जरूर करें। निर्धन तथा जरुरतमंद व्यक्ति को धन, वस्त्र, जूते-चप्पल और अनाज का दान जरूर करें। किसी गौशाला में हरी घास और गायों की देखभाल के लिए अपनी श्रद्धा के अनुसार धन दान करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करते रहें। चांदी के लोटे से कच्चा दूध शिवलिंग पर चढ़ाएं। इसके बाद फिर से शुद्ध जल चढ़ाएं।

14 की सुबह लगेगी अमावस्या

पंचांग के अनुसार भाद्रपद अमावस्या तिथि की शुरुआत 14 सितंबर को सुबह 04.48 मिनट पर होगी और इसकी समाप्ति 15 सितंबर 2023 को सुबह 07.09 मिनट पर होगी। उदयातिथि के अनुसार 14 और 15 सितंबर दोनों दिन अमावस्या का स्नान, पितरों के निमित्त पूजा की जाएगी।

कुशा का महत्व

वेदों और पुराणों में कुश घास को पवित्र माना गया है। इसे कुशा, दर्भ या डाभ भी कहा गया है। आमतौर पर सभी धार्मिक कार्यों में कुश से बना आसान बिछाया जाता है या कुश से बनी हुई पवित्री को अनामिका अंगुली में धारण किया जाता है।अथर्ववेद, मत्स्य पुराण और महाभारत में इसका महत्व बताया गया है।माना जाता है कि पूजा-पाठ और ध्यान के दौरान हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ और ध्यान किया जाए तो शरीर में संचित उर्जा जमीन में नहीं जा पाती। इसके अलावा धार्मिक कार्यों में कुश की अंगूठी इसलिए पहनते हैं ताकि आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए। रिंग फिंगर यानी अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। पूजा-पाठ के दौरान यदि भूल से हाथ जमीन पर लग जाए, तो बीच में कुशा आ जाएगी और ऊर्जा की रक्षा होगी। इसलिए कुशा की अंगूठी बनाकर हाथ में पहनी जाती है।

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