आज कल पत्रकारिता जगत में एक शब्द बड़ी तेजी से अपना जाल बिछा रहा है वो शब्द है वरिष्ठता….. आप आये दिन अपनी फेसबुक वाल पर या व्हाट्सअप पर पोस्ट देखते होंगे कि आज फलां वरिष्ठ पत्रकार का जन्मदिन है या आज फलां वरिष्ठ पत्रकार ने ये झंडे गाड़े (भले ही उस वरिष्ठ पत्रकार को खबर लिखना भी न आता हो पर वो वरिष्ठ है वो दबंग पत्रकार है ) आखिरकार ये वरिष्ठता आती कहाँ से है पत्रकारों में……ये वरिष्ठ पत्रकार लोगों का, समाज का, संघटन का, देश का मूल्यांकन करने लगते हैं और गलत दिशा में लोगों को सोचने पर मजबूर कर देतें है दरअसल ये खेल सिर्फ अपने आपको सुपीरियर बताने का और खुद को आर्थिक लाभ पहुँचाने का गोरख धंधा है जिसे बड़ी ही खूबसूरती से अधिकारियों, नेताओ और समाज के सामने प्रस्तुत किया या करवाया जाता है जिससे ये पत्रकार वरिष्ठता का चोला ओढ़ सकें|

समाज को लगातार अपडेट करने का काम जिस प्रजाति को दिया गया है उसे पत्रकार कहते हैं और जब तक खुद पत्रकार ही अपडेट नहीं होगा वो दूसरे को क्या अपडेट करेगा वहीँ अपडेट रहने की सबसे पहली सीढ़ी है रोज कुछ नया करना या नया सीखना लेकिन अब हमारे समाज का पत्रकार दो तीन साल में ही खुद को पूरी तरह से अपडेट मान लेता है यानि की खुद को वरिष्ठता की श्रेणी में ला खड़ा करता है जबकि ज्ञान और अप्रोच के मामले में वो काफी पीछे रहता है
वरिष्ठता है क्या?…. क्या यह समय के साथ आती है, क्या गुणवत्ता के साथ आती है, या ये अनुभव के साथ आती है या ये ज्ञान के साथ आती है दरअसल वरिष्ठता इन चारों के साथ आती है लेकिन क्या पत्रकारिता के संसार में वरिष्ठता होना चाहिये ? क्यूंकि यहाँ तो हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है बल्कि मेरा तो यह कहना है कि पत्रकारिता में वरिष्ठता आपकी गति को धीमा कर देती है वरिष्ठता के कारण आप खुद को एसी (एयर कंडिशनर) रूम में कंप्यूटर के सामने कैद कर लेते हैं और फील्ड के ज्ञान को छोड़कर इंटरनेट के ज्ञान पर निर्भर हो जाते हैं
हाँ पर वरिष्ठता के कुछ फायदे भी हैं जैसे दीपावली पर या अन्य पर्व पर या फिर किसी अवसर पर गिफ्ट सीधे आपके घर पर आता है, आपको हर अवसर पर बड़ा और मोटा लिफाफा मिल जाता है, विभागों की ट्रांस्फर पोस्टिंग में आपके द्वारा दिए गए नामो को लिस्ट में पहले स्थान पर रखा जाता है, आपके मन पसंद ठेकेदारों को काम प्रमुखता से मिलता है, चुनावी मौसम में आपका लिफाफा वजनदार होता है, सरकारी गेस्टहाउस में आपका रूम आसानी से बुक हो जाता है साथ ही सरकारी सुविधाओं का दोहन करने का आपको खुला अधिकार होता है बाकी हर डील में आपका हिस्सा तो होता ही है
वरिष्ठता की श्रेणियों में नित नए आयाम जोड़ने वाले वरिष्ठ पत्रकार आजकल ग्रुप और संगठन बनाकर काम करते हैं इनकी खुद की गैंग भी होती है और इसका आधार होता है जैसा और जितना बड़ा आपका ऑर्गेनाइजेशन उतने बड़े और वरिष्ठ पत्रकारों का ग्रुप जिनको साधने के लिए नेता और अधिकारी इन्हें समय-समय पर मोटा लिफाफा गिफ्ट या बड़े-बड़े मॉल से शॉपिंग तक करवाते हैं साथ ही पार्टियों के मीडिया प्रभारी महोदय इनके बिना हाथ पैर वाले सवालों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछने की पहले इजाजत भी देते हैं
हजारों न्यूज़ पेपर, सैकड़ों न्यूज़ चैनल और अनगिनत वेबसाइट के साथ रेडियो पर काम करते लाखों पत्रकरों की भीड़ में न जाने कितने वरिष्ठ पत्रकारों को रोज हम सहन करते हैं हमारे सामने रोज हजारों समाचारों का आना जाना लगा रहता है लेकिन उनमे से कितने ऐसे समाचार होते हैं जो 5 डब्लू 1 एच की कसौटी पर खरे उतरते हैं इसका उत्तर आप खुद जानते हैं |
दरअसल वरिष्ठता का पैमाना आपको खबरों की खोज से दूर कर देता है खोजी पत्रकारिता को चार दीवारों के बीच में समेट कर रख देता है वरिष्ठता आपको विषय को जानने के लिए प्रश्न पूछने को मजबूर नहीं करती बल्कि अपने घमंड और अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने के लिए आडम्बर रचती है हद तो तब हो जाती है जब ये वरिष्ठ पत्रकार समय के पाबंद होकर नेता मंत्रियों और अधिकारियों के यहां पर मुर्गे की तरह रोज बांग देने पहुंच जाते हैं जैसे इनकी ड्यूटी लगा कर रखी गई है भले ही वहां पर खबरें हों या ना हों
याद कीजिये आपकी पत्रकारिता के वो शुरुवाती दिन जिसमे आप सच को सामने लाने के लिए हर कोशिशों को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे आप चारो और से सीखने के लिए खबरो के मैदान में खड़े रहते थे लेकिन जब से वरिष्ठता का चोला धारण किया है सब कुछ अकारण, बोझिल और दूसरो पर थोपने वाला ज्ञान आपके श्री मुख से झड़ने लगा है जो आज के समय पत्रकारिता के लिए सही नहीं है
ऐसा नहीं है की पत्रकार की परिभाषा बदल गई है दरअसल पत्रकारिता में काम करने का तरीका बदल गया है पहले के पत्रकारों ने अपने कलम की ताकत पर बिना किसी स्वार्थ के सरकारों को हिला कर रख दिया अपने पूरे जीवन को उस प्रकाश पुंज की तरह रखा जिसने सदैव लोगो के अंधियारे को दूर किया, गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, ऐसे ही प्रकाशपुंज है जो आज भी हमें रास्ता दिखाते हैं वर्त्तमान समय में रवीश कुमार ऐसा नाम है जिससे वाकई में आज का युवा सीख सकता है कि पत्रकारिता कैसे करना चाहिये
यह आर्टिकल लिखने की मुझे आज पत्रकारिता के 18 सावन देखने के बाद जरुरत क्यों पड़ी यह भी आपको बताना जरुरी है दरअसल मुझे आज भी रोज कुछ नया सीखने को मिलता है और मै रोज अपने आपको पत्रकारिता की क्लास में नया स्टूडेंट मानकर प्रवेश करता हूँ पर जैसे ही फील्ड में आता हूँ तो कई प्रकार के वरिष्ठ पत्रकारों से मेरा सामना होता है जिनको लेकर मन व्याकुल हो जाता है इस पर रोज रोज के अंतर्मन द्वंद्व को शांत करने का तरीका था की मै अपनी बात उन वरिष्ठ पत्रकारों तक किसी तरह लेकर जाऊं और कहूँ कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है आओ साथ मिलकर सीखते हैं
लेखक – विनीत श्रीवास्तव (सिर्फ पत्रकार जिसको अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है)