Monday, July 28, 2025
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विधानसभा चुनाव: कांग्रेस का फोकस संगठन की मजबूती पर, कड़ा होगा मुकाबला

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मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव को भले ही करीब पौने दो साल बचे हों, लेकिन भाजपा और कांग्रेस अभी से चुनाव मोड में आ गई हैं। भाजपा तो खैर पांचों साल ही चुनाव मोड में रहती है, पर कांग्रेस में यह पहली बार हो रहा है, जब पार्टी चुनाव को लेकर इतने पहले से इतनी सक्रियता दिखा रही है। उसमें भी पार्टी का सबसे ज्यादा फोकस अपने बेहद कमजोर संगठन को मजबूत करने पर है। पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कई मौकों पर मंच से कह चुके हैं कि हमारा मुकाबला बीजेपी से नहीं, बीजेपी के मजबूत संगठन से है। यही वजह है कि कमलनाथ सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में मंडलम्, सेक्टर और बूथ की कार्यकारिणी के गठन पर जोर दे रहे हैं। हाल में जिला प्रभारियों और कांग्रेस जिलाध्यक्षों की बैठक में करीब 80 विधानसभा क्षेत्रों में बूथ स्तर तक कार्यकारिणी का गठन नहीं होने पर नाराजगी sampadkiy 1जताई और हफ्ते भर में कार्यकारिणी का गठन करने को कहा। पार्टी पूरे प्रदेश में महंगाई के विरोध में जन जागरण अभियान भी चला रही है। मप्र कांगे्रस सदस्यता अभियान भी चला रही है। गत 1 नवंबर से शुरू हुए सदस्यता अभियान में 31 मार्च तक 50 लाख सदस्य बनाने का लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। खास बात यह है कि इस बार अभियान को लेकर कांग्रेस के नेता ‘लेतलाली’ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि पार्टी संगठन की तरफ से इसकी सतत् मॉनीटरिंग की जा रही है। संगठन ने प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रकाश जैन को अभियान की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी है। वे सुबह से शाम तक विधायकों, पूर्व विधायकों, जिलाध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों को फोन लगाकर सदस्यता अभियान का फीडबैक लेते रहते हैं। इसके अलावा कमलनाथ आंतरिक रूप से हर स्तर पर चुनाव की तैयारियां कर रहे हैं। इसके लिए अलग-अलग टीमें काम कर रही हैं। वे संगठन के कामकाज व प्रत्याशी चयन को लेकर सभी विधानसभा क्षेत्रों में प्रायवेट एजेंसियों से सर्वे करा रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस बार विधानसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा और रोचक होगा। चूंकि कमलनाथ के पास खोने को कुछ नहीं है।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक छह महीने पहले उन्हें मप्र कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी और उन्होंने इस छोटी सी अवधि में बाजी पलटते हुए 15 साल बाद कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता में वापसी करा दी थी। कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 15 महीने बाद ही उनकी सत्ता से विदाई हो गई। यह आसानी से समझा जा सकता है कि उन्हें मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का गम किस हद तक साल रहा होगा। कमलनाथ 75 साल के हो चुके हैं, उनके पास यह आखिरी मौका है, जब वे कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराकर फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं। यही वजह है कि कमलनाथ खामोशी रहकर पूरी ताकत से चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। पार्टी आलाकमान भी कमलनाथ पर पूरा भरोसा जता रहा हैं। उन पर पार्टी कार्यकर्ताओं ने नहीं मिलने, प्रदेश में सक्रिय नहीं रहने, पार्टी कार्यकर्ताओं को नहीं पहचानने जैसे आरोपों के बाद भी उन्हें पीसीसी चीफ के साथ ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी सौंप रखी है। कमलनाथ पार्टी हाईकमान के विश्वास पर कितना खरे उतर पाते हैं, यह विधानसभा चुनाव के बाद पता चलेगा।  

सदस्यता में  ‘हलफनामा’ बन रहा बाधा

कांग्रेस के सदस्यता अभियान में  ‘हलफनामा’ बड़ी बाधा बन रहा है। दरअसल, सदस्यता अभियान को लेकर पार्टी की ओर से जारी किए गए मेंबरशिप फॉर्म में कई बदलाव किए गए हैं। इसके तहत पार्टी द्वारा दस बिंदुओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें एक शर्त यह भी है कि सदस्यता लेने वाले व्यक्ति को यह हलफनामा देना होगा कि वह पार्टी की नीतियों व निर्णयों की आलोचना सार्वजनिक तौर पर नहीं करेगा। इसके अलावा यह शर्त भी रखी गई है कि सदस्यता लेने वाला कोई भी व्यक्ति कानूनी सीमा से अधिक संपत्ति नहीं रखेगा। साथ ही वह शराब और मादक पदार्थों (ड्रग्स) से दूरी बनाकर रखेगा और कांग्रेस की नीतियों व कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए फिजिकल एफर्ट और जमीन पर काम करेगा।  इस हलफनामे की वजह से कांग्रेस नेताओं को सदस्य बनाने में मुश्किल आ रही है। यही वजह है कि नेता हलफनामा को दरकिनार कर सदस्य बना रहे हैं, ताकि सदस्यता के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।

नई आबकारी नीति: सरकार ने पिछले दरवाजे से दोगुनी कर दीं शराब दुकानें

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20 प्रतिशत सस्ती होगी शराब, एक ही दुकान में बिकेगी देशी-विदेशी शराब

शिवराज सरकार ने शराब के शौकीनों की मन की मुराद पूरी कर दी है। प्रदेश में देशी-विदेशी शराब की कीमत 20 प्रतिशत कम होंगी। दरअसल, सरकार ने वर्ष 2022-23 की आबकारी नीति को मंजूरी दे दी है। इसमें शराब पर ड्यूटी sampadkiy 110 से 15 प्रतिशत कम कर दी गई है। कहा जा रहा है कि शराब की कीमतें कम होने से अवैध शराब का कारोबार पर खत्म होने के साथ ही घटिया क्वालिटी की शराब पीने से होने वाली मौतें रुक जाएंगी। ऐसा हो पाएगा या नहीं, यह तो आना वाला वक्त बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि 1 अप्रैल से प्रदेश में शराब सस्ती बिकने लगेगी।

सरकार ने पिछले दरवाजे से दोगुनी कर दीं शराब दुकानें

नई आबकारी नीति में ऐसी कई खामियां है जिन पर सवाल उठने लगे हैं। नई नीति में सरकार ने प्रत्यक्ष तौर पर भले ही शराब की नई दुकान नहीं खोलने का निर्णय लिया हो, लेकिन विदेशी शराब दुकान में देशी और देशी शराब दुकान में विदेशी शराब बेचे जाने का प्रावधान करके सरकार ने पिछले दरवाजे से शराब दुकानों की संख्या दोगुनी कर दी है। प्रदेश में अभी 2541 देशी और 1070 विदेशी मदिरा दुकानें हैं।

मॉल व सुपर मार्केट में भी वाइन शाप

नीति में होम बार लायसेंस देने का प्रावधान किया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि ड्राई डे यानी गांधी जयंती, होली या चुनाव की स्थिति में होम बार पर नियंत्रण कैसे होगा। होम बार की आड़ में पवित्र नगरों में भी शराबखोरी शुरू हो जाएगी। अब न सिर्फ एयरपोर्ट पर वाइन शाप खुलेगी, बल्कि बड़े शहरों में मॉल व सुपर मार्केट में वाइन शाप के काउंटर खोलने की अनुमति दी जाएगी। घर पर शराब रखने की मात्रा में बढ़ाकर चार गुना कर दी गई है। एक तरफ राज्य सरकार नशा मुक्ति अभियान चलाने की बात कर रही है, वहीं शराब की पहुंच को और आसान बनाया जा रहा है। कांग्रेस ने इसे शिवराज सरकार का शराब प्रेम बताया गया है। कांग्रेस का मानना है कि खपत बढ़ाने के लिए शराब सस्ती की जा रही है, ताकि सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी हो। कांग्रेस ने नई आबकरी नीति को लागू करने से पहले इसमें संशोधन करने की मांग सरकार से की है।

बड़े ठेकेदारों की मोनोपॉली खत्म होगी

नई आबकारी नीति की एक अच्छी बात यह है कि इसमें प्रदेश में शराब के ठेकों को लेकर बड़े ठेकेदारों की मोनोपॉली सिस्टम को खत्म कर दी गई है। अब जिले में सिंगल ग्रुप सिस्टम के स्थान पर छोटे समूह बनाकर शराब दुकानों की नीलामी की जाएगी। एक समूह में अधिकतम पांच दुकानें होंगी। ऐसा करने से छोटे बजट वाले ठेकेदार भी शराब दुकानें ले सकेंगे। वर्तमान में प्रदेश में 2019-20 की आबकारी नीति लागू है। इसमें शराब दुकानें सिंगल ग्रुप सिस्टम में 1 जिले में एक या दो ग्रुप के पास हैं। इसकी वजह से शराब ठेकेदारों में आपसी प्रतिस्पर्धा नहीं है। छोटे ग्रुप में शराब दुकान ठेके होने से कीमतों पर अंकुश रहेगा। 

नई आबकारी नीति एक नजर में

– घर पर 4 गुना शराब रखने की छूट मिलेगी। फिलहाल घर में एक पेटी बीयर व 6 बॉटल शराब रखने की अनुमति है।
– अपसेट प्राइस से 15 प्रतिशत ज्यादा राशि पर अंग्रेजी और 25 प्रतिशत ज्यादा राशि पर देशी शराब दुकान रीन्यू होगी
– भोपाल व इंदौर में माइक्रो बेवरेज खोली जा सकेंगी
– अंगूर के साथ जामुन से भी बन सकेगी वाइन
– एयरपोर्ट पर होगी अंग्रेजी शराब दुकान
– सालाना आय एक करोड़ वाले व्यक्ति होम बार लायसेंस ले सकेंगे
 – भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में सुपर मार्केट में वाइन की बिक्री की जा सकेगी। इसके लिए लायसेंस लेना अनिवार्य होगा। 
– नई आबकारी नीति में आदिवासियों द्वारा महुआ से बनाई जाने वाली शराब को हेरिटेज शराब का दर्जा दिया गया है। यह शराब टैक्स फ्री होगी।
– नई नीति में हर ठेकेदार को अपने कोटे का 85 प्रतिशत माल उठाना अनिवार्य किया गया है। ऐसा नहीं करने पर ठेकेदार पर पेनल्टी लगाई जाएगी।

UP चुनाव: राष्ट्रीय नेतृत्व ने MP के भाजपा नेताओं पर नहीं जताया भरोसा

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मुख्यमंत्री शिवराज तक को नहीं बनाया स्टार प्रचारक

सियासत के नजरिए से देश के सबसे अहम् राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बच चुकी है। चुनाव की तारीखों को ऐलान होने के साथ ही राजनीतिक दलों ने चुनाव मैदान में पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टियों में नेताओं की तोड़-फोड़ जारी है। वैसे तो उत्तर प्रदेश के चुनावों पर पूरे देश की निगाह रहती है, क्योंकि कहते हैं, दिल्ली जीतने के लिए उत्तर प्रदेश जीतना जरूरी है। पड़ोसी राज्य होने के नाते मप्र के लोगों और नेताओं की उत्तर प्रदेश के चुनाव में विशेष रुचि रहती है। खास बात यह है कि इस बार भाजपा संगठन ने उप्र विधानसभा चुनाव में मप्र के भाजपा नेताओं को sampadkiy 1तवज्जो नहीं दी है। हाल में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए भाजपा ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इस सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत प्रदेश से किसी भी नेता का नाम शामिल नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को कानपुर क्षेत्र की लगभग 50 सीटों का प्रभारी बनाया गया था। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ दिन पहले ही बलिया में जन विश्वास यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी उप्र के प्रभारी रह चुके हैं, लेकिन पहले चरण के स्टार प्रचारकों की सूची में इन्हें भी स्थान नहीं मिल पाया। यह भी माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश के पिछड़ा वर्ग और ब्राह्मण नेताओं को उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार का मौका मिलेगा, ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके।

क्‍या मप्र के भाजपा नेताओं का कोई सियासी कद नहीं बचा

माना जा रहा है कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मण नाराज हैं और वे उन्हें चुनाव में सबक सिखाने की तैयारी में हैं। पिछड़ा वर्ग नेताओं को सपा प्रमुख अखिलेश यादव पहले ही लामबंद कर चुके हैं। मध्य प्रदेश का भाजपा संगठन ब्राह्मण और अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं को उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए भेजने की तैयारी में था। इनमें शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, प्रहलाद पटेल, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा व गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नाम प्रमुख हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को तो उत्तर प्रदेश चुनाव में एक बार मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में भी प्रोजेक्ट किया गया था, लेकिन इस बार उन्हें भी स्टार प्रचारक बनने का मौका नहीं मिला है। भाजपा ने संगठन से जुड़े मप्र के कुछ वरिष्ठ नेताओं को उप्र चुनाव में छोटी-मोटी जिम्मेदारी सौंपी है। न तो किसी को विधानसभा सीटों का प्रभार सौंपा है और न ही स्टार प्रचारक बनाया गया है। प्रदेश के एक भी भाजपा नेता को स्टार प्रचारक नहीं बनाए जाने को लेकर विरोधी दल मुखर हैं। वे कह रहे हैं कि राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में मप्र के भाजपा नेताओं का कोई सियासी कद नहीं रह गया है। राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल चुनाव की कमान सौंपकर इसका हश्र देख चुका है।

कड़ा और रोचक होगा मुकाबला

पिछले विधानसभा चुनाव में उप्र में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। विधानसभा की कुल 403 सीटों में से भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार उप्र का चुनावी माहौल अलग है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव जिस तरह से रणनीति बनाकर चुनावी बिसात बिछा रहे हैं, उससे उप्र में चुनावी मुकाबला दिलचस्प और कड़ा हो गया है। उप्र में बीजेपी के लिए चुनाव जीतना आसान नहीं दिख रहा है। सभी सीटों पर कड़ा संघर्ष होने की बात कही जा रही है। यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व के फैसले से कई भाजपा नेता खुश हैं। वे कोरोना संक्रमण और कड़े मुकाबले के बीच उप्र जाने से बच रहे थे, क्योंकि सीटें हारने की स्थिति में हार का दाग उनके माथे पर लग जाएगा। उप्र में मुख्यमंत्री योगी सत्ता में फिर वापसी करेंगे या अखिलेश यादव पांच साल बाद सत्ता संभालेंगे, इसका फैसला 10 मार्च को होगा।

मैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता…..

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अस्पताल में चुपके से नर्स ने मुझे चाकलेट खिलाते हुए कहा अंकल शहीदी पर्व की बधाई…

 

सत्यकथा/कीर्ति राणा-89897-89896

 

गतांक से आगे…

 

एक उम्र के बाद न तो जन्मदिन का उत्साह रहता है और न ही मैरेज एनेवर्सरी का लेकिन जब इस दिन कुछ अनोखा/अकल्पनीय हो जाए तो यह दिन इस रूप में भी याद रह जाता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, 16 नवंबर को सीएचएल हॉस्पिटल में बायपास सर्जरी हुई, तीन दिन आईसीयू में रहा।इसी दौरान 18 तारीख को विवाह की 35वीं वर्षगांठ थी।ज्यादा बोल पाने की स्थिति तो नहीं थी लेकिन दवाई देने के साथ ही देखभाल कर रही नर्स से मैंने धीरे से कहा सिस्टर आज मेरा शहीदी पर्व है, आप मेरी मिसेज को बुला देंगी। केरल की इस नर्स ने साथ वाली नर्स से कहा ये अंकल कुछ शहीदी पर्व कह रहे हैं, क्या होता है यह? यह नर्स भी केरल निवासी ही थी, उस नर्स ने आकर पूछा अंकल आप का त्योहार है क्या, शहीदी पर्व क्या होता है? 

मैंने हल्की सी हंसी के साथ कहा सिस्टर आज मेरी मैरेज एनेवर्सरी है।दोनों खिलखिलाकर हंसते हुए बोली अच्छा आप इसे शहीदी पर्व बोलते हैं।कुछ देर बाद ही एक नर्स मेरे बेड के समीप आई, धीरे से बोली अंकल मुंह खोलिए।मैंने मुंह खोला और उसने चॉकलेट का एक पीस मुंह में रखते हुए कहा कांग्रेचुलेशन अंकल।किसी से कहना मत कि मैंने चॉकलेट खिलाई है।इस बीच दूसरी नर्स के साथ श्रीमती मेरे बेड के नजदीक आई तो दोनों नर्सों ने हंसते हुए उन्हें भी बधाई दी और बोली अंकल तो शहीदी पर्व कह रहे थे।मैंने श्रीमती से धीरे से कहा इन्होंने मेरा मुंह मीठा कराया है।इस तरह 35वीं विवाह वर्षगांठ आईसीयू में मन गई। 18 नवंबर 1986 को शादी के बाद 21 नवंबर को आशीर्वाद समारोह था।अस्पताल से छुट्टी भी 21 नवंबर को ही हो गई। 

 

कम से कम आप मेरी तरह लापरवाही न बरतें

मेडिकल साइंस ने जिस तरह तरक्की की है उसके बाद बायपास सर्जरी होना कोई भय या आश्चर्य की बात नहीं रह गई। अनोखी मेरी ही यह सर्जरी नहीं हुई। सत्यकथा की यह समापन किस्त है।यह सब विस्तार से लिखने का आयडिया दिमाग में इसलिए आया कि जब यकायक ऐसे हालात का सामना करना पड़ जाए तो अकसर दिमाग काम करना बंद कर देता है या परिवार के बाकी सदस्य बेवजह परेशान हो जाएंगे यह सोचकर हम अपनी परेशानी बताने से हिचकते हैं। 

 

बायपास सर्जरी की यह सत्य कथा लिखने का एकमात्र उद्देश्य यही रहा है कि इस गंभीर बीमारी को लेकर पाठक-मित्रों में कुछ जागरुकता आ जाए-यह कहना ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ समान भी है। कारण यह कि आए दिन इंदौर के मेदांता, शेल्बी, अपोलो, सीएचएल आदि प्रमुख अस्पतालों में जटिल हार्ट सर्जरी में सफलता संबंधी प्रेस कांफ्रेंस अटैंड करने और हार्ट अटैक के कारण, लक्षण, कैसे बचे जैसी बातें डॉक्टरों से पूछने-लिखने के बावजूद खुद मैं ही लापरवाह बना रहा।खैर लिखना मेरा काम है, जरूरी नहीं कि यह सत्यकथा पढ़ने के बाद भी लोग सतर्क हो ही जाए।

 

लगा कि पत्रकार की अपेक्षा सरकारी विभाग में भृत्य होना बेहतर रहता। परिजनों के तात्कालिक सहयोग से आर्थिक तनाव में राहत मिल गई

बायपास सर्जरी के भारी भरकम खर्च के लिए धनराशि जुटाना भी तब कंधों पर पहाड़ उठाने जितना ही चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब आप सक्षम नहीं हों।उस अवधि में मुझे लगता रहा कि यदि पत्रकारिता पेशे की जगह किसी शासकीय कार्यालय में भले ही भृत्य की पोस्ट पर भी होता या जर्नलिज्म को साइड बिजनेस की तरह करने की स्थिति रहती तो ऐसी आर्थिक बदहाली से तो नहीं जूझना पड़ता।

खैर मेरी दिक्कतों में तात्कालिक राहत के रूप में कलेक्टर मनीष सिंह की तत्परता, इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी और टीम द्वारा की गई 25 हजार की आर्थिक मदद के साथ स्टेट प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल, महासचिव नवनीत शुक्ला, फ्री प्रेस उज्जैन के ब्यूरो चीफ निरुक्त भार्गव, बहन मीना राणा शाह, भोपाल के डॉ नवीन आनंद जोशी आदि जनसंपर्क विभाग के वर्तमान सीपीआर-पीएस राघवेंद्र सिंह, तत्कालीन आयुक्त सुदाम खाड़े (अभी आयुक्त स्वास्थ्य), संचालक जनसंपर्क आदित्य प्रताप सिंह, अशोक मनवानी (जनसंपर्क मुख्यमंत्री प्रेस प्रकोष्ठ)से लेकर मुख्यमंत्री चौहान के ओएसडी आयएएस आनंद शर्मा से अपने अपने स्तर पर प्रयास करते रहे।जनसंपर्क विभाग इंदौर के संयुक्त संचालक आरआर पटेल के समन्वय से समय रहते आर्थिक मदद की राह आसान हो गई।इस सबके साथ ही परिवार के सदस्यों ने जिस तरह भारी खर्च के तनाव से राहत दिलाई उससे भी टेंशन कम हो गया। 

इस बायपास सर्जरी के बाद संबंधित डॉक्टरों से हुई चर्चा और गूगल पर इस बीमारी को लेकर की गई छानबीन में कुछ जो प्रमुख बातें सामने आई हैं, हो सकता है इनसे पाठक-मित्रों को भी कुछ मदद मिल जाए। 

हृदय रोग होने के कारण 

हृदय रोग का सबसे प्रमुख कारण धूम्रपान करना। परिवार में किसी को इस बीमारी का होना।बहुत ज्यादा मोटापा। मधुमेह और उच्च रक्तचाप होना।सुस्त जीवनशैली।दैनिक जीवन में शारीरिक श्रम न करना।बहुत ज्यादा तनाव लेना। फास्टफूड का सेवन करना। परिवार के जिन बुजुर्गों (दादा-पिता-अंकल, दादी, मां आदि) को जो बीमारियां रही हों(जैसे शुगर, बीपी, हृदय रोग, लकवा, ब्रेन हेमरेज आदि) तो चिकित्सकों का मानना है ये (जेनेटिक) बीमारियां उनके बच्चों को होती ही है। 

हार्ट अटैक के वो लक्षण जो सिर्फ महिलाओं में दिखते हैं-पेट दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो तो नजरअंदाज न करें।पीठ, गर्दन, जबड़े और बांहों में दर्द।सांस लेने में तकलीफ और चक्कर आना। तेज पेट दर्द या पेट से जुड़ी बीमारी । ठंडा पसीना आना। आराम के बावजूद थकान महसूस करना। छाती में दबाव और दर्द महसूस होना।

 

इस तरह बचा जा सकता है हार्ट अटेक से

• तनाव मुक्त रहें।

•सिगरेट-तंबाकू छोड़ दें

•भोजन शाकाहारी अपनाएं

• मांसाहार त्याग दें

• नियमित मार्निंग वॉक करे

• शुगर-बीपी की शिकायत को गंभीरता से लें।

• इन बीमारियों से संबंधित गोलियां नियमित लें।

• छह माह में टोटल बॉडी चेकअप कराएं।

•परिवार के सदस्यों में किसी का मेडि क्लेम जरुर हो।

• पति-पत्नी की उम्र 60 से ऊपर हो गई हो तो अपने अविवाहित पुत्र के नाम से बीमा करवाएं।

• इसमें आश्रित माता-पिता भी कवर हो जाते है।

• फैमिली डॉक्टर सहित अन्य जरूरी नंबरों की सूची फोन बुक के साथ ही घर की किसी दीवार पर भी चिपका सकते हैं।

• अपने फोन को किसी भी तरह के लॉक (फेस लॉक, कोड लॉक) से मुक्त रखें।

• कम उम्र में हार्ट अटैक या उससे जुड़ी समस्याओं की हिस्ट्री है, तो उसे रेग्युलर चेकअप कराना चाहिए।

• अगर किसी के परिवार में 45 साल से कम उम्र में किसी पुरूष को और 55 साल से कम उम्र में किसी महिला को हार्ट प्रॉब्लम रही है तो, उस परिवार के सदस्यों को सतर्क रहने की जरूरत है।

•एटीएम कार्ड, जीमेल आदि के पासवर्ड के साथ  मित्रों आदि से लेनदेन की जानकारी परिजनों को भी हो।बैंकों की पासबुक   बीमा पॉलिसी आदि में नामिनी (उत्तराधिकारी) की कार्रवाई जरूर पूर्ण कर के रखें।

 

हार्ट अटैक के लक्षण 

अगर आपके सीने में असहज दबाव, दर्द, सुन्नता, निचोड़न, परिपूर्णता या दर्द जैसा महसूस हो रहा है तो इसे अनदेखा नहीं करना चाहिए. अगर यह बेचैनी आपकी बाहों, गर्दन, जबड़े या पीठ तक फैल रही है तो आप सचेत हो जाएं और जितनी जल्‍दी हो सके अस्‍पताल पहुंचें. यह हार्ट अटैक आने के कुछ मिनट या घंटे पहले के लक्षण।

कौनसे फल से कोलोस्ट्राल कम होता है

 

सेब और खट्टे फल- इन फलों में भरपूर मात्रा में फाइबर होता है।एवोकाडो- इसे खाने से शरीर में बैड कोलेस्ट्रोल कम होता है और गुड कोलेस्ट्रोल बढ़ता है।बेरीज और अंगूर- कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए सभी तरह की बेरीज जैसे स्ट्रोबेरी, ब्लूबेरी, रसबेरी और अंगूर खाने में शामिल करने चाहिए।

आजकल कंसेशन में होती है हार्ट से जुड़ी जांच

कंप्लीट ब्लड काउंट।लिपिड प्रोफाइल।एचबी ए।सी।एक्सरे चेस्ट।टीएमटी।2-डी इको डोपलर।कार्डियोलॉजिस्ट परामर्श।सी.टी एंजियोग्राफी डॉक्टर के परामर्श पर ही कराएं।दो वर्ष के बच्चे से 35 साल के युवा को हार्ट की प्रॉब्लम कम होती है।40 से 60 साल की उम्र वालों में कॉमन बीमारी है।60 वर्ष उम्र वालों-वरिष्ठ नागरिकों-में यह समस्या होना साधारण बात है।उम्र के इस पड़ाव पर अपनी बचत राशि सहेज कर रखें।मेडि क्लेम करा रखा है तो एक भी किश्त ना चूकें। आयुष्मान कार्ड जरूर बनवालें-इस कार्ड के होने पर अधिकतम 5 लाख तक बीमारी खर्च में राहत की सुविधा मिल सकती है। शहर के प्रमुख अस्पतालों में लगने वाले स्वास्थ्य शिविरों में और पैथ-लेब द्वारा भी 

आजकल कंसेशन में होती है हार्ट व अन्य बीमारियों से जुड़ी जांच।

 

हार्ट अटैक  के 50 फीसदी मामले बढ़े

मेडिकल जनरल लॉन्सेट की रिपोर्ट के अनुसार साल 1990 से 2016 के बीच भारत में हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामलों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार हर 100 में से 28.1 लोग हार्ट अटैक और स्ट्रोक से मर रहे हैं। इसमें से हार्ट अटैक से करीब 18 लोगों की मौत होती है। अहम बात यह है कि इसमें 50 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र 70 से भी कम है। इसमें भी एक बड़ी संख्या 50 के उम्र के आस-पास के लोगों की है। हार्ट अटैक और स्ट्रोक से महिलाओं की तुलना में पुरूषों की ज्यादा मौत होती है। 

रिफाइंड तेल में पॉम ऑयल की मिलावट

कैलाश अस्पताल दिल्ली के डॉ प्रशांत राज गुप्ता के मुताबिक कम उम्र में हार्ट अटैक होने की सबसे बड़ी वजह लोगों की लाइफ स्टाइल और खान-पान है। ये दोनों चीजें बहुत खराब हो चुकी है। लोग ठीक से नींद नहीं लेते हैं, रात में देर तक जगते हैं। खाने में जंक फूड, पॉम ऑयल का इस्तेमाल बढ़ गया है। जिसकी वजह से जोखिम बढ़ता जा रहा है। आज जो रिफाइन्ड तेल इस्तेमाल किया जा रहा है, उसमें पॉम आयल भी मिलाया जाता है। इसके अलावा भोजन में मैदे वाली चीजों की हिस्सेदारी बढ़ गई है।प्रीजरवेटिव फूड खाया जा रहा है।हरि सब्जियों का इस्तेमाल कम हो गया है। जिससे भी जोखिम कहीं ज्यादा हो गया है।

 

कम उम्र में हार्ट अटैक 

फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के डा प्रनीत अरोड़ा के मुताबिक कम उम्र में हार्ट अटैक होने की सबसे बड़ी वजह , धुम्रपान है। इसके बाद लाइफस्टाइल एक बड़ा फैक्टर  है। हो सकता है कि आप बाहर से फिट दिखते हैं, लेकिन लाइफस्टाइल आपके शरीर को नुकसान पहुंचाती है। नींद कम लेना, बैलेंस डाइट नहीं होना , ऐसे लोग जो रात में काम करते हैं।मनोवैज्ञानिक सामाजिक प्रेशर भी हार्ट अटैक की वजह बन रहा है। 

 

अचानक हार्ट अटैक कैसे? 

इस संबंध में डॉ प्रशांत राज गुप्ता के मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर के अंदर जो क्लॉटिंग होती है। वह किसी दूसरे अंग में रहती है। और वह रियलटाइम में जाकर दिल को खून पहुंचाने वाली धमनियों को ब्लॉक कर देती है। जिसकी वजह से अचानक दिल का दौरा पड़ता हैं और इसका अंदाजा पहले से लग नहीं पाता है। यह ऐसे लोगों को ज्यादा होता है, जिनकी दिल को खून पहुंचाने वाली धमनियों में पहले से ब्लॉकेज है। ऐसे में जब ब्लॉकेज दूसरे अंग से अचानक पहुंचता है तो व्यक्ति को मौका ही नहीं मिल पाता है। जिसे थंबोलाई कहा जाता है।
(सत्यकथा समाप्त)

मैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता…..

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शराब, सिगरेट, मांसाहार से दूर रहने, रोज 7 किमी मार्निंग वॉक के बाद भी यह प्राब्लम क्यों हुई?

सत्यकथा/ कीर्ति राणा-89897-89896

 

गतांक से आगे…( चतुर्थ भाग ) 

 

बॉंबे हॉस्पिटल में 5 नवंबर को डॉ इदरीस एहमद खान द्वारा की गई एंजियोग्रॉफी और सीएचएल अस्पताल में 16 नवंबर को हुई बायपास सर्जरी के बाद 21 को इस हिदायत के साथ डॉ मनीष पोरवाल ने छुट्टी दी कि 7 दिन बाद स्टिच रिमूव करेंगे, शाम के वक्त हॉस्पिटल आ जाना। इसके साथ ही परिजनों को हिदायत दी कमोड वाली लेट्रिन का उपयोग करें। नया खर्चा इसलिए आ गया कि इंडियन स्टाइल वाली लेट्रिन थी नीचे वाले रूम में।ऊपर बच्चों के  रूम में कमोड वाली थी लेकिन इतना चढ़ना-उतरना मेरे लिए उस दौरान आसान नहीं था।

 

नया खर्चा कमोड वाली टॉयलेट बनवाना पड़ी 

नया खर्चा इसलिए आ गया कि इंडियन स्टाइल वाली लेट्रिन थी नीचे। इससे भी बड़ी तात्कालिक परेशानी यह थी कि तुलसी नगर में हमारे मकान से सट कर एक अन्य मकान का निर्माण कार्य चल रहा था।दिन भर ठोंका-पीटी, डस्ट एलर्जी जैसी दिक्कत 

अस्पताल से छुट्टी हुई तो भाभी-भतीजियों आदि ने सुदामा नगर चलने का विकल्प सुझा दिया-जो कि हर लिहाज से ठीक ही था।अस्पताल से सीधे वहां चले गए।इस बीच घर पर तनु ने इंडियन पेटर्न वाली लेट्रिन की जगह कमोड वाली के लिए तोड़फोड़ कर के दो-तीन दिन में तैयार करवा ली थी। सात दिन बाद टांके कटाने पहुंचे तब मैंने देखा कि जहां जहां सर्जरी हुई थी वहां, जिस तरह कॉपियों के पन्ने जोड़ने के लिए स्टेपलर का उपयोग किया जाता है, उसी तरह घाव के दोनों किनारों की चमड़ी स्टेपल कर रखी थी।

 

एक-एक कर निकाले मेडिकेटेड स्टेपल स्टिच 

जिस जूनियर डॉक्टर को मेडिकेटेड स्टेपल स्टिच रिमूव करने के लिए कहा था उन्होंने घाव से पट्टी हटाने के बाद टांकों पर बीटाडीन लगाया (बीटाडीन क्रीम एक एंटीसेप्टिक और डिसइंफेक्‍टेंट एजेंट है।इसका इस्तेमाल घाव और कटने के कारण होने वाले संक्रमण के इलाज और रोकथाम के लिए किया जाता है। यह हानिकारक माइक्रोब को मारता है और उनके विकास को नियंत्रित करता है, जिससे प्रभावित क्षेत्र में इंफेक्शन रुक जाता है)।इसके बाद प्लकर जैसे मेडिकल उपकरण से घाव पर लगे एक एक स्टेपल को निकाल कर रूई पर एकत्र कर डस्टबीन में डाल दिया।

 

अरे, एक टांका खुल गया…

सुदामा नगर में घर के अंदर ही घूमना-फिरना जारी था। उस क्षेत्र में भांजी-पत्रकार नेहा मराठे की परिचित फिजियोथेरेफिस्ट डॉ युक्ति चौहान हर दिन एक्सरसाइज करवा रही थी। मौसम लगातार ठंडा होने से लगभग पूरे वक्त स्वेटर-टोपा-शाल अनिवार्य हो गया था।सुबह उठने से लेकर सोने के पहले तक गोलियों वाले डोज और एंटीबायोटिक गोली का कुछ ऐसा असर था कि लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन उल्टी हो ही रही थी।डॉक्टर ने नहाने की मनाही कर रखी थी, एक दिन स्पंज करने के बाद सर्जरी वाले स्थान (सीने, बाएं हाथ की कलाई और दोनों पैर की पिंडलियों पर) आइंटमेंट (मरहम) लगाते वक्त श्रीमती और भाभी की नजर सीने पर लगे टांकों पर पड़ी तो एक टांका कुछ खुल चुका था और वहां की चमड़ी की जगह गहरा गड्डा नजर आ रहा था। उस स्थान का फोटो लेने के बाद डॉ भरत बागोरा को सेंड किया ताकि वह डॉ पोरवाल से परामर्श ले सके।कुछ ही देर बाद उनका फोन आ गया कि शाम को हॉस्पिटल आना होगा।

शुगर पेशेंट को अकसर हो जाती है ऐसी परेशानी

घबराहट और बढ़ गई, परिवार के सदस्यों के साथ शाम को अस्पताल पहुंचे।डॉ पोरवाल ने परीक्षण किया, ढाढस बंधाया कि चिंता की बात नहीं है।अकसर शुगर पेशेंट के साथ यह प्राब्लम हो जाती है। अब लगातार ड्रेसिंग होगी, धीरे-धीरे यह घाव जब भरने लगेगा, आसपास की चमड़ी पर जब रेडनेस नजर आने लगेगी तब ही स्टिच लगाने की स्थिति बन सकेगी।सेकंड ओपिनियन के लिए मैंने अभिन्न मित्र-डॉ अशोक शर्मा को भी यह प्रॉब्लम बताई तो उन्होंने भी डॉ पोरवाल जैसी ही राय दी।

 

इतने परहेज के बाद भी कार्डियक अरेस्ट क्यों 

जिन भी शुगर पेशेंट मरीजों की सर्जरी होती है उन्हें ठंडा मौसम, बारिश आदि के चलते जिन परेशानियों से जूझना पड़ता है, मैं भी उस सब का सामना कर रहा हूं।सीएचएल हॉस्पिटल में कभी डॉ कविता वर्मा तो कभी डॉ कादंबरी ड्रेसिंग करती हैं। एक दिन मैंने डॉ पोरवाल से पूछ ही लिया सर, मैं तो शराब, सिगरेट-तंबाकू का सेवन भी नहीं करता। वजन भी अधिक नहीं है। ‘प्रजातंत्र’ का ऑफिस पांचवी मंजिल पर होने से मैं लिफ्ट की अपेक्षा सीढ़ियों से ही आना-जाना करता हूं।कार्डियक अरेस्ट आने के पहले तक हर दिन 10-11 हजार स्टेप (करीब 6.50-7किमी) मार्निंग वॉक करता रहा हूं, बीपी भी नार्मल रहता है, टेंशन भी नहीं पालता।जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक का सेवन भी नहीं, घर के खाने को ही प्राथमिकता देता हूं ।इतने परहेज के बाद भी मुझे हार्ट संबंधी प्रॉब्लम क्यों हुई? 

सबसे बड़ी वजह हेरिडिटी

 

डॉ पोरवाल ने पूछा  आप के परिवार में किसी को हार्ट संबंधी परेशानी रही है क्या? मीना और मैंने कहा पिताजी और अंकल आदि को यह प्रॉब्लम रही है। उनका कहना था सबसे मुख्य कारण तो हेरिडिटी (वंशानुगत) ही है।रही बात बाकी सभी सावधानियां बरतने, मार्निंग वॉक आदि करने की तो इतना सब करते रहने से ही अब तक बचे रहे वरना बहुत पहले हार्ट अटेक की स्थिति बन जाती। 

 

ये मरहम पैरों पर नहीं लगाना था…

एक दिन ड्रेसिंग के दौरान दोनों पिंडलियों में की गई सर्जरी-टांके वाली जगह दिखाई। लेडी डॉक्टर ने सर्जरी वाले स्थान को अंगुलियों से दबा कर देखा और पूछा इस पर क्या लगाया है? मैंने कहा वही मरहम लगा रहे हैं गोलियों के साथ लिखा था और सीने और पैरों पर टांके वाली जगह पर लगाने के लिए कहा था। यहां के टांके सूखे नहीं और दर्द भी कम नहीं हो रहा है, शायद इसीलिए नई चमड़ी भी नहीं आ पा रही है।उनका कहना था वह मरहम पैरों पर नहीं सिर्फ हार्ट के टांकों वाली जगह पर ही लगाना था।उसे लगाना बंद कर दीजिए, नहाते वक्त दोनों पैरों वाली इस जगह पर अच्छे से साबुन लगाया करें, कुछ दिनों में यहां नई चमड़ी आ जाएगी।

(बाकी सत्यकथा अगले अंक में पढ़िए) 

मैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता……

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मैं परिजनों को समझा रहा था यदि मैं नहीं बच सकूं तो शरीर के अंग दान कर देना

सत्यकथा/कीर्ति राणा-89897-89896

 

गतांक से आगे…( तृतीय भाग ) 

 

सीएचएल हॉस्पिटल में 16 नवंबर ‘21 को बायपास सर्जरी का दिन मुकर्रर था। पहला ऑपरेशन मेरा ही होने से सुबह 8 बजे के करीब मुझे स्ट्रेचर पर ओटी की तरफ ले जाया जा रहा था। शहर के जिन दोस्तों की मुझ से वर्षों पहले बायपास सर्जरी हो चुकी है, उन्हें और उनके परिजनों को ढाढस बंधाता और  उनका हौंसला बढ़ाते हुए कहता था अब तो बायपास सर्जरी आम बात हो गई है, चिंता करने की जरूरत नहीं है।मुझे याद आ रहा था मित्र महेंद्र बापना (अग्निबाण) जिसे हार्ट संबंधी परेशानी होने पर बॉंबे हास्पिटल में स्टेंट डाला गया था। मित्र नवनीत शुक्ला (दैनिक दोपहर) को भी राजश्री अपोलो में स्टेंट डला था, तब मैं उज्जैन में पदस्थ था।मित्र निरुक्त भार्गव (फ्री प्रेस के उज्जैन ब्यूरो) के साथ नवनीत का हाल जानने आया था और मनु भाभी को दिलासा दे रहा था ज्यादा चिंता की बात नहीं है भाभी, अभी कुछ दिनों बाद सामान्य जीवन जीने लगेंगे। मेदांता अस्पताल में हार्ट सर्जरी के बाद इंफेक्शन का शिकार हुए पत्रकार-मित्र संजय जोशी की पत्नी को दिलासा देने गया था भाभी चिंता मत करो, इंफेक्शन वाली परेशानी जल्दी दूर हो जाएगी।और जब मुझे ऑपरेशन के लिए प्रायवेट रूम से ओटी की तरफ ले जा रहे थे, तब मुझे ये सारे दृश्य तो याद आ ही रहे थे और कहावत समझ आ रही थी 'जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई' अर्थात् जब तक खुद को दर्द ना हो तब तक दूसरे के दर्द की तीव्रता का एहसास नहीं हो पाता है। 

अंतिम इच्छा सुना दी परिजनों को 

 

स्ट्रेचर को दोनों तरफ से घेरे परिजन उदास चेहरे और डबडबाई आंखों के साथ चल रहे थे।जमाने भर को दिलासा देने और दुख आया है तो सुख भी आएगा जैसी सलाह देने वाला मैं खुद बायपास सर्जरी के लिए ले जाते वक्त मन ही मन घबराया हुआ था। गमगीन परिजनों को ढाढस बंधाने के साथ ही मेरे मन में डर समाया हुआ था कि अब शायद ही बच पाऊं।

यही भय था कि जब सर्जरी के लिए ले जाया जा रहा था तब मैंने स्ट्रेचर के चारों तरफ नजरें घुमाई और वार्ड बाय को रुकने का इशारा करते हुए पत्नी, भाभी, बहन, बेटा,बेटी-दामाद भतीजियों आदि को और समीप बुलाकर समझाया कोई भी डॉक्टर मरीज को मारने के लिए ऑपरेशन नहीं करता।यदि मेरे साथ ऑपरेशन के दौरान कुछ अकल्पनीय हो जाए, जान चली जाए तो डॉक्टरों पर गुस्सा मत निकालना।

 

परिजन मुझे दिलासा दे रहे थे ऐसा कुछ नहीं होगा। महाकाल अपने साथ हैं, मुझे भभूत भी चटाते हुए कहा तुमने किसी का बुरा नहीं किया तो तुम्हारे साथ बुरा नहीं होगा। मैं उन सब की बातों को अनसुना करते हुए कह रहा था यदि नहीं बच सकूं तो मेरा दाह संस्कार करने की अपेक्षा शरीर के जो भी अंग काम आ सकते हों उन्हें (ऑर्गन डोनेशन) दान करने के साथ देह मेडिकल कॉलेज को सौंप देना। मैं याद दिला रहा था कि श्रीगंगानगर में अंधशाला के कार्यक्रम में देह दान का संकल्प लिया था।मेरी सारी आशंका निर्मूल साबित हुई। महाकाल की कृपा और सभी की दुआएं काम आई, बायपास सर्जरी कामयाब रही। 

 

डॉ पोरवाल सहित 11 सदस्यीय टीम 

करीब चार घंटे चले ऑपरेशन में कार्डियक सर्जन डॉ मनीष पोरवाल और उनकी टीम के 10 अन्य सदस्यों कार्डियक सर्जन डॉ राजेश कुकरेजा और डॉ हरेंद्र ओझा, एनेस्थिसियालॉजिस्ट डॉ विजय महाजन और डॉ माला जोस, ओटी स्टॉफ मेगी जोसेफ, नीतू जेकब और शुभमोल पीके, पर्फ्युज़निस्ट सुभाष रेड्डी, अजय श्रीवास्तव और मनोज त्रिपाठी की मेहनत सफल हुई। इन सभी के प्रति मैं और मेरे परिजन सदैव आभारी रहेंगे। 16 नवंबर को हुए ऑपरेशन के बाद आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया, 17 नवंबर की दोपहर में होश आया पर मुंह में बायपेप लगे होने से इशारों में ही बातचीत करने की स्थिति थी। 18 नवंबर की सुबह से बोलचाल की स्थिति बन गई थी, तीन दिन आईसीयू और पांच दिन प्रायवेट रूम में रहने के बाद 21 नवंबर को अस्पताल से छुट्टी हुई तो मैं कांच के सामान जैसा था।

 

अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर डॉ मनीष पोरवाल और उनकी टीम के लिए धन्यवाद पत्र भी लिख कर दिया।  डॉ पोरवाल के पीए डॉ भरत बागोरा और सीएचएल अस्पताल से जुड़े तथा मीडिया मित्रों के उपचार में सहयोगी रहने वाले पत्रकार-मित्र सुनील जोशी भी मददगार रहे। कुछ दिनों बाद ही डॉ पोरवाल का जन्मदिन था, हम उनके लिए बर्थ डे केक लेकर गए। बातों ही बातों में उनसे जाना कि 1992 से अब तक करीब 25 हजार मरीजों की बायपास सर्जरी कर चुके हैं। हर दिन कम से कम 4 ऑपरेशन तो करते ही हैं। उनके इस हुनर और मृदु व्यवहार ने ही उन्हें पूरे प्रदेश में खास पहचान दिला रखी है। 

 

इस तरह होती है बायपास सर्जरी 

ऑपरेशन पश्चात जब बोलने-समझने की स्थिति बन गई तो डॉक्टरों से सीने, बाएं हाथ की कलाई के समीप तथा दोनों पैरों की पिंडलियों पर लगे टांकों के संबंध में पूछताछ करने पर जानकारी मिली कि सीने के बीच से नाभी के कुछ ऊपर तक पहले चीरा लगा कर सीना खोला गया फिर हार्ट के ऊपर वज्र समान मजबूत हड्डी के खोल को काटकर हार्ट के आसपास की रक्त धमनियों में ब्लाकेज वाले हिस्से छोड़ कर दोनों पैरों की पिंडलियों से निकाली गई नसों को इन धमनियों से जोड़कर रक्त प्रवाह के लिए पृथक से रास्ता बनाया गया। 

 

सहज भाषा में मैं यह कह सकता हूं कि जिस तरह अधिक ट्रेफिक को नियंत्रित करने के लिए बायपास बनाया जाता है, उस बायपास पर र्निबाध आवाजाही के लिए जैसे बायपास के दोनों किनारों पर सर्विस रोड बना दिए जाते हैं, हार्ट की बायपास सर्जरी में भी हार्ट को रक्त पहुंचाने वाली ब्लॉक्ड धमिनियों को काटे या साफ किए बिना, ग्राफ्ट द्वारा एक नया रास्ता बनाया जाता है। इसके लिए एक स्वस्थ ब्लड वेसल (ग्राफ्ट) को हाथ, छाती या पैर से लिया जाता है और फिर प्रभावित धमनी से जोड़ दिया जाता है ताकि ब्लॉक्ड या रोग-ग्रस्त क्षेत्र को बाईपास कर सकें।

डॉक्टरों ने स्टेंट डालने से मना कर दिया

 
बॉंबे हॉस्पिटल में डॉ इदरीस खान द्वारा की गई एंजियोग्राफी की रिपोर्ट में एक से अधिक रक्त धमनियों में ब्लॉकेज थे। डॉक्टरों ने एंजियोप्लास्टी के साथ ही स्टेंट लगाने की संभावना को भी खारिज कर दिया था। यदि स्टेंट डालने वाली स्थिति रहती तो बायपास सर्जरी वाली बड़ी चुनौती को टाला जा सकता है। 

 

यह होता है स्टेंट 

 

चिकित्सकीय भाषा में स्टेंट एक छोटी धातु की विस्तार करने योग्य छलनी जैसी ट्यूब होती है जो धमनी को सहारा देती है और इसे खुला रखने में मदद करती है। इसे लगाने से पहले स्टेंट को एक बैलून कैथेटर पर लगाया जाता है जो कोरोनरी धमनी के रुकावट के क्षेत्र में स्टेंट को स्थापित करने का एक डिलीवरी सिस्टम होता है। स्टेंट का विस्तार करने के लिए बैलून को फैलाया जाता है।जैसे ही स्टेंट का विस्तार होता है, यह प्लाक को धमनी की दीवार के साथ सीधा कर देता है, और रक्त के प्रभाव को बढ़ाता है. एक बार जब स्टेंट ठीक से विस्तारित हो जाता है, तो बैलून से हवा निकाल दी जाती है और मरीज के शरीर से कैथेटर को हटा दिया जाता है. स्टेंट मरीज की धमनी में स्थायी रूप से रहता है ताकि रक्त के प्रवाह को बनाये रखने के लिए इसे खुला रख सके।(स्व)महेंद्र बापना को स्टेंट ही लगाया गया था। प्लाक के निर्माण के कारण कोरोनरी धमनी रोग वाले लोगों में, स्टेंट निम्नलिखित कार्य करता है • संकुचित धमनियों को खोलना • छाती में दर्द जैसे लक्षणों को कम करना • हार्ट अटैक के समय सहायता करना।

 

अब दवायुक्त स्टेंट (डीईएस) भी आ रहे हैं 

रेस्टेनोसिस को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने दवायुक्त स्टेंट (डीईएस) का विकास किया है। दवायुक्त स्टेंट रेस्टेनोसिस के जोखिम को अपेक्षाकृत कम करते हैं और भविष्य में उपचार की ज़रुरत को भी कम करते हैं।यह धमनियों की दीवार को वैसे ही सहारा प्रदान करते हैं जो बिना परत चढ़े स्टेंट करते हैं, लेकिन इस स्टेंट पर एक परत चढ़ी होती है, जिसमें एक दवा शामिल होती है जो काफी समय तक धीरे धीरे रिलीज़ होती रहती है। यह दवा धमनी के स्वस्थ होने के साथ स्टेंट के अन्दर ऊतक की वृद्धि को रोकती है, और उसे पुनः संकुचित होने से बचाती है।अब ऐसे दवा युक्त स्टेंट भी उपलब्ध हैं जो एक निश्चित अवधि के बाद पूरी तरह गल जाते हैं और इस अवधि तक रक्त धमनी चौड़ी हो जाने से रक्त का प्रवाह सामानय रूप से होने लग जाता है। इंदौर में कुछ अस्पताल में यह सुविधा उपलब्ध है। 

(बाकी सत्यकथा अगले अंक में पढ़िए)

मैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता….

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मेडि क्लेम नहीं है’यह जवाब सुनकर अस्पताल 
वाले बोले आप तो पत्रकार हैं, क्यों नहीं कराया

 

सत्यकथा/कीर्ति राणा- 89897-89896

 
गतांक से आगे…( द्वितीय भाग ) 

परिजनों में आपसी सहमति यही बनी कि इंदौर में ही बायपास सर्जरी कराना हर लिहाज से बेहतर है।यहां देखभाल-सहयोग-मदद के लिए सभी उपलब्ध रहेंगे, इतने लोगों का अन्य शहर में रहना संभव नहीं।अंतत: सीएचएल हॉस्पिटल में डॉ मनीष पोरवाल से ही सर्जरी कराने का निर्णय लिया।नवंबर के दूसरे सप्ताह में भर्ती हुआ, चूंकि बॉंबे हॉस्पिटल में एंजियोग्राफी से पहले लाइफ सेविंग इंजेक्शन लगाया गया था।उसका असर बाकी रहने के कारण हार्ट के आसपास सूजन थी इसलिए दो दिन बाद 16 नवंबर को सर्जरी तय हुई। एंजियोग्राफी के बाद बायपास सर्जरी यानी भारी भरकम 

मप्र सरकार ने पत्रकारों को दे रखी है मेडि क्लेम की सुविधा, लेकिन मैं वह भी नहीं करा पाया

मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार पत्रकार-और उनके परिवार को निर्धारित बीमा राशि भरने पर उन्हें कम से कम 4 लाख के मेडि क्लेम की सुविधा देती है। मैं विगत वर्षों में तो हर साल बीमा कराता रहा, बस इसी बार चूक गया।बीमा की अंतिम तारीख बढ़ाकर शासन ने 15 सितंबर कर दी थी, मैंने “प्रजातंत्र” टीम के साथियों सहित विभिन्न अखबारों के मीडिया मित्रों को फोन कर के मेडि क्लेम कराने के लिए प्रेरित भी किया लेकिन कुछ परिस्थिति ऐसी बनी कि खुद ही मेडि क्लेम की निर्धारित राशि की व्यवस्था नहीं हो पाने से चूक गया।अन्य कुछ साथियों के साथ भी ऐसा ही हुआ।यदि मेडि क्लेम होता तो प्रति लाख पर मुझे 15 हजार ही जमा कराना पड़ते। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में शायद ऐसे हालात के लिए ही चौपाई लिखी है ‘जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेई।’
 

अस्ताल में पहला प्रश्न इनका मेडि क्लेम है? 

बॉंबे हॉस्पिटल की तरह सीएचएल हॉस्पिटल में भी मैनेजमेंट ने एडमिट करते हुए परिजनों से पहला प्रश्न यही किया, मेडि क्लेम है क्या? डॉ पोरवाल के पीए डॉ भरत बागोरा व अन्य ने आश्चर्य व्यक्त किया कि आप तो जागरुक पत्रकार हैं, मेडि क्लेम क्यों नहीं कराया!
मुझे याद आई बॉंबे हॉस्पिटल में जांच कराने आए उज्जैन के मरीज की सलाह की भले ही एक रोटी कम खाना लेकिन बीमा जरूर कराना चाहिए। 
अपनी भूल पर पश्चाताप के अलावा मैं और कर ही क्या सकता था।सीएचएल में एडवांस जमा करने की नौबत आई तो ढूंढा ढपोली कर के श्रीमती ने जैसे तैसे 30 हजार रु जुटाए।बेटे ने एचडीएफसी बैंक के सेलरी अकाउंट को खंगाला, उसे निराशा ही हाथ लगी

 

रिश्ते ऐसे ही हरे-भरे रहें…

बायपास सर्जरी का जितना खर्च अनुमानित था उसके लिए फिर भी पर्याप्त राशि हाथोंहाथ जुट गई तो उसका श्रेय बहन मीना के साथ ही भतीजे-भतीजियों, बेटी-दामाद सहित अन्य परिजनों को जाता है।कुछ ने तो बेटे को एटीएम कार्ड सौंपने के साथ पिन नंबर भी बता दिया कि चिंता मत करना। मुझे ही क्यों हमारे परिजनों को एक दूसरे पर नाज इसीलिए है कि मतभेद तो होते रहते हैं लेकिन मन भेद नहीं होते, दुख की घड़ी में सब एक दूसरे के लिए ढाल बन कर खड़े हो जाते हैं।मेरी बायपास सर्जरी के दौरान जितने भी मुलाकाती आए उन सब की जुबान पर यह बात भी रहती थी कि आप सब किस तरह एकसाथ जुट जाते हैं।महाकाल से यही प्रार्थना है ऐसा परिवार सबको मिले। वरना तो अकसर देखते-सुनते ही हैं कि रिश्तेदार तक दुख के वक्त मुंह फेर लेते हैं या यह उम्मीद करते हैं कि हमें तो फोन तक नहीं किया।मेरा मानना है मंगल प्रसंग में तो निमंत्रण की अपेक्षा की जा सकती है लेकिन किसी अपने का दुख से जुड़ा समाचार मिले तो तुरंत जाना ही चाहिए।आप किसी के दुख में शामिल होंगे तभी तो कोई आप को ढांढस बंधाने आएगा।

(बाकी सत्यकथा अगले अंक में पढ़िए)

मैं दो महीने पहले स्वर्गीय हो गया होता…..

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प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार-इंदौर निवासी कीर्ति राणा की बीते साल नवंबर में बायपास सर्जरी हुई है। उन्होंने कार्डियक अरेस्ट के लक्षण से लेकर बायपास सर्जरी होने तक की पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझाया है। पाठकों के लिए लिखी इस आपबीती में यह भी स्पष्ट होता है कि एक मध्यमवर्गीय परिवार को ऐसे हालात में किन चुनौतियों से जूझना पड़ता है। पाठकों में जागरुकता बढ़े,
बीमारी की गंभीरता को लेकर हम लापरवाही ना बरते यह भी सत्यकथा को पढ़ कर समझा जा सकता है।

पहला  भाग – 

सत्य कथा/कीर्ति राणा

 

ठीक दो महीने पहले (4नवंबर 21)हार्ट अटैक के चलते मरणासन्न हालत में बॉंबे हॉस्पिटल में भर्ती हुआ था।5 को लाइफ सेविंग इंजेक्शन से जान में जान आई।मौत तो उसी दिन हो जाती में बच गया तो महाकाल की कृपा और कुछ जिन  मित्रों के लिए जाने-अंजाने अच्छे काम किए होंगे उन सब की दुआओं से। 
आइए आप सब भी जान लीजिए वो सारी कहानी, इसलिए कि मेरे जैसी नासमझी आप ना करें।मेडिकल फील्ड से नावाकिफ मित्रों को भी शायद इस पूरी सत्यकथा से दिल की बीमारी-उपचार प्रक्रिया को समझने में मदद मिल जाए।

दीवाली की सुबह से ही दर्द हो रहा था

 

दीवाल की सुबह से ही बांए हाथ और सीने में हल्का-हल्का दर्द था, जैसी की हम सब की आदत है मैंने भी मान लिया कि टू वीलर चलाने से या सोने में हाथ दब जाने से दर्द हो रहा है। मेरी लापरवाही यथावत थी और दर्द था कि जोर पकड़ता जा रहा था। दोपहर 12 बजे “प्रजातंत्र” में दीपावली पूजन का मुहूर्त था। तैयार होकर ऑफिस भी पहुंच गया, दर्द यथावत था। ऑफिस के साथियों से भी इस दर्द का जिक्र नहीं किया। 

पंडित जी का इंतजार करते रहे, पता चला लेट आएंगे, दोपहर 2.15 के करीब मैं ऑफिस से चुपचाप निकला घर के लिए। लिफ्ट से नीचे पहुंचा ही था कि साथी-मित्र एमएल चौहान ने मोबाइल पर सूचना दी पंडित जी आ गए हैं, आप भी आ जाओ। 

पूजा का सामान खरीदते हुए घर पहुंचा

 

लिफ्ट से वापस ऑफिस पहुंचा, पूजा हुई, टीम प्रजातंत्र के साथियों के साथ ग्रुप फोटो भी हुए। लगभग 4.30 बजे नीचे आया घर जाने के लिए ।श्रीमती जी को फोन लगाकर पूछ लिया कुछ लाना तो नहीं है। पूजन सामग्री, अन्नकूट के लिए दही-छाछ आदि खरीदते हुए घर पहुंचा, दर्द कुछ तेज हो चला था।5.30 बजे के करीब घर पहुंचा। चाय पीने की इच्छा हुई, हमेशा की तरह खुद ही बना रहा था कि तेज गर्मी लगने लगी, हल्का सा पसीना महसूस हुआ। श्रीमती से पूछा क्या तुम्हें भी गर्मी लग रही, जवाब मिला नहीं। मैं किचन से हॉल में आकर बैठ गया, फुल स्पीड पर पंखा चला दिया, कुछ राहत सी महसूस हुई तो सोफे पर ही लेट गया, आंख लग गई। बाएं हाथ और सीने में बढ़ते दर्द के कारण कुछ देर बाद ही नींद खुल गई।

 

मित्रों के फोन बंद,डॉक्टर भी नहीं मिले

 

श्रीमती से कहा, लाला (पुत्र) को बुलाओ, किसी डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। इस बीच डॉ विनोद भंडारी, मित्र मनोहर लिंबोदिया और सुक्का भाटिया (होटल दिव्कोय पैलेस)को फोन भी लगाए लेकिन किसी से बात नहीं हो सकी।लाला के साथ स्कूटर से ही निकला, सोचा था महालक्ष्मी नगर रोड पर तीन-चार डॉक्टर हैं, कोई तो मिल ही जाएगा।दीपावली वाला दिन होने से सारे क्लिनिक बंद थे। लाला ने कहा भंडारी हॉस्पिटल चलते हैं।

हम बॉंबे हॉस्पिटल चौराहा के निकट पहुंचे ही थे कि मैंने कहा, यही दिखा देते हैं, त्यौहार का दिन है, ट्रैफिक-जाम मिलेगा। उसने टू वीलर बॉंबे हॉस्पिटल की तरफ मोड़ दी। केजुअल्टी में तैनात डॉक्टर को परेशानी बताई, उन्होंने ईसीजी करने के बाद, कार्डियक प्रोफाइल टेस्ट करवाने को कहा। (इस एक ब्लड टेस्ट के जरिए ये पता लग सकता है कि मरीज की आर्टरी में रुकावट होनी शुरू हो गई है और आने वाले समय में उसे हार्ट अटैक का खतरा हो सकता है। हमारे शरीर में दो बायोमार्कर सीसटेटिन सी और स्माल डेंस का डॉक्टरों ने पता लगाया है जिसकी ज्यादा मात्रा का सीधा संबंध कोरोनरी आर्टरी में रुकावट से है।)

 

हार्ट पर असर बताया, फिर भी हम घर आ गए

 

लेब में पहुंचे, ब्लड सेंपल दिया। टेक्निशियन का कहना था फाइनल रिपोर्ट तो कल मिलेगी पर एक घंटे बाद प्रिमलरी रिपोर्ट बता दूंगा। इस बीच मैंने हेमंत शर्मा (एमडी प्रजातंत्र) को और लाला ने मीना बुआ को सूचित कर दिया था। कुछ ही देर में भांजे देवाशीष के साथ वह भी पहुंच गई।एक घंटे बाद प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक लेब टेक्निशियन ने हार्ट पर 8 फीसदी असर होने का जिक्र करते हुए कहा आप चाहें तो भर्ती हो जाएं, किसी अन्य डॉक्टर को दिखा दें या अभी घर चले जाएं।कल फायनल रिपोर्ट के साथ यहां दिखा देना। इस प्रारंभिक रिपोर्ट से केजुअल्टी डॉक्टर को अवगत कराए बिना घर आ गए कि दीपावली पूजन कर लेंगे।

 

मौत नजदीक जान गंगा जल भी पी लिया

 

रात 10.30 के करीब पूजन किया, तुलसी नगर स्थित मंदिर में भी दीपक रखने गए।लौटते में बेटी तनु से भी वीडियो कॉल पर बात कर ली। रात 11.30 के करीब दो पराठे, आलू की सब्जी, प्रसाद आदि भी खा लिया। लगातार काम से थकी हारी श्रीमती की तो आंख लग गई। बढ़ते दर्द और परेशानी के कारण मेरी आंखों से नींद गायब थी। पलंग से धीरे से उठा कि कहीं श्रीमती की नींद ना खुल जाए।हॉल में और बरामदे में टहलता रहा।गर्म पानी कर एक गिलास पी लिया, फिर खयाल आया कि बीपी ना बढ़ गया हो, नमक-शकर का पानी भी पी लिया।रात 4.30 के करीब दर्द असहनीय होने और जान ना बचने की आशंका के चलते पूजा घर में रखा गंगाजल भी तीन घूंट पी लिया, महामृत्युंजय मंत्र के जाप के साथ महाकाल को भी याद करता रहा।
अंतत: श्रीमती जी को जगाया और कहा इस हाथ पर आयोडेक्स लगा कर कपड़ा बांध दो, दर्द इतना तेज था कि कहने लगा मेरा हाथ मोड़ दो।सीने में दर्द और भारीपन के चलते कहीं गैस ना बढ़ गई हो, दो बार इनो भी पी लिया।5 नवंबर की सुबह 5.45 के करीब लाला को कहा कार से चलते हैं बॉंबे हॉस्पिटल इस बीच मीना और बड़ी भाभी को उसने खबर कर दी थी। 

 

तुरंत आईसीयू में एडमिट कर लिया

 

अस्पताल में चेकअप के बाद तुरंत आईसीयू में एडमिट करने के साथ ही डॉक्टरों ने परिजनों को बता दिया कि हार्ट प्राब्लम है। डॉक्टर मुझ से जानकारी ले रहे थे और मैं बता रहा था कि बाएं हाथ और सीने में दर्द भयंकर है।कुछ ही देर बाद उन्होंने लाईफ सेविंग ड्रग (इंजेक्शन) लगा दिया। सुबह 8.30 के करीब मेरा दर्द रफू चक्कर हो गया था, सब कुछ नार्मल लग रहा था।बाद में डॉक्टरों ने परिजनों से कहा इनकी एंजियोग्राफी करना पड़ेगी। 
बॉंबे हॉस्पिटल इंदौर के नामचीन और 25 वर्षों के अनुभवी इंटरवेंशनल कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ इदरीस एहमद खान ने एंजियोग्राफी की। इस की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि एकाधिक रक्त धमनियों में रुकावट है और ऐसी स्थिति में एंजियोप्लास्टी नहीं की जा सकती है।

यह है एंजियोग्राफी की प्रक्रिया

 

रक्त वाहिनियों के स्वास्थ्य और उनमें रक्त प्रवाह की जांच करने के लिए एंजियोग्राफी की जाती है। कुछ रोगों में उपचार की व्यवस्था करने के लिए भी एंजियोग्राफी का प्रयोग किया जा सकता। डॉ इदरीस खान एंजियोग्राफी की रिपोर्ट के आधार पर परिजनों को स्पष्ट कर चुके थे कि ब्लॉकेज अधिक होने से एंजियोप्लास्टी नहीं की जा सकती। हां स्टेंट डाला जा सकता है लेकिन स्टेंट की सफलता को लेकर भी वे साफ कह चुके थे कि चलने को स्टेंट लंबे समय चल सकता है लेकिन साल-छह महीने बाद ही स्टेंट निष्प्रभावी हो जाए तब अंतिम उपचार बायपास सर्जरी ही रहेगा।ऐसे में उन्होंने बायपास सर्जरी को ही बेहतर विकल्प बताया। इस तरह की जाती है एंजियोप्लास्टी 

यह एक ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें हृदय की मांसपेशियों तक ब्लड सप्लाई करने वाली रक्त वाहिकाओं को खोला जाता है. मेडिकल भाषा में इन रक्त वाहिकाओं को कोरोनरी आर्टरीज़ कहते हैं. डॉक्टर अक्सर दिल का दौरा या स्ट्रोक जैसी समस्याओं के बाद एंजियोप्लास्टी का सहारा लेते हैं। 

डॉ इदरीस खान के इस सुझाव के बाद परिजनों ने उनसे ही पूछ लिया कि बायपास सर्जरी कराना कहां बेहतर रहेगा। उन्होंने अपने अस्पताल के डॉक्टरों से कराने के साथ ही मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली आदि के विकल्प बता दिए।

 

दिल्ली में बायपास सर्जरी के लिए भतीजे हिमांशु शर्मा

 

(बीएसएफ) ने मेदांता अस्पताल में ऑपरेशन के लिए लाने की सलाह दी। बेटी-दामाद (तनु-राहुल व्यास) का कहना था दिल्ली लाते हैं तो हम भी देखभाल कर लेंगे।सेकंड ओपिनियन के लिए डॉ मनीष पोरवाल को सारी रिपोर्ट दिखाई।उनका कहना था बायपास सर्जरी तो जरूरी है। आप यदि दिल्ली या अन्यत्र कहीं ले जाना चाहें तो ले जा सकते हैं, सफर हवाई जहाज से ही करना होगा लेकिन इस सफर के दौरान यदि कोई परेशानी हो गई तो..? (बाकी सत्यकथा अगले अंक में पढ़िए)

सीएम की समीक्षा बैठकें, क्या 21 महीने में आत्मनिर्भर बन पाएगा मध्यप्रदेश?

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वर्ष 2003 से प्रदेश में सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में है। इस दरमियान सिर्फ 15 महीने को छोड़कर बचे हुए करीब 17 साल भाजपा सरकार में रही। शिवराज सिंह चौहान मार्च, 2020 में चौथी बार प्रदेश में मुख्यमंत्री बने। इससे पहले के कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश को स्वर्णिम मप्र बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की। वे इस संबंध में मंत्रियों-अधिकारियों को समय-समय पर निर्देश देते रहे। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने स्वर्णिम मप्र को लेकर लगातार बैठकें कर नौकरशाही को निर्देश दिए। यह कवायद वोटरों की लुभाने के लिए थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा हार गई, sampadkiy 1कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए और शिवराज सिंह चौहान का प्रदेश को स्वर्णिम बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाया। पंद्रह महीने बाद ही कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और शिवराज चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए। इस बार उन्होंने 'स्वर्णिम मप्र' की बजाय प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया है। यह संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनर्भिर भारत बनाने के संदर्भ में लिया गया है। करीब डेढ़ साल से मुख्यमंत्री प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद में जुटे हैं। देशभर के विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करने के बाद आत्मनिर्भर मप्र का रोडमैप तैयार किया गया है। इस संबंध में मुख्यमंत्री विभिन्न विभागों की दर्जनों बैठकें कर चुके हैं। निर्देश दे चुके हैं, लेकिन अब तक सरकार प्रदेश को अत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कुछ खास हासिल नहीं कर पाई है।

सीएम की समीक्षा बैठको में 52 विभागों की समीक्षा

अब जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव को सिर्फ 21 महीने बचे हैं, तो कोरोना से निपटने की चुनौती के बीच मुख्यमंत्री ने प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्रवाई तेज कर दी है। इसी कड़ी में उन्होंने हाल में एक के बाद बैठकें कर सभी 52 विभागों की समीक्षा कर डाली और मंत्रियों-अधिकारियों को प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर दिशा-निर्देश दिए। अधिकारियों को अपने-अपने विभागों को लेकर ऐसे भारी-भरकम टास्क दिए गए हैं, जिन्हें चंद महीनों में पूरा कर पाना नामुमकिन नजर आ रहा है। और हां, यह बात तय है कि यदि अफसर समीक्षा बैठकों में दिए गए सीएम के दिशा-निर्देशों पर पूरी तरह से अमल करते हैं, तो मध्यप्रदेश विकास का न्याय अध्याय लिखने में सफल हो जाएगा। जैसा कि कहा जाता है, कहना आसान होता है, करना मुश्किल। जानकारों की मानें तो शिवराज अपने पिछले कार्यकालों में भी इस तरह बैठकें कर प्रदेश के विकास को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं, पर उनका नतीजा सिफर रहा।

प्रदेश में उद्योग के क्षेत्र में निवेश को ही ले लीजिए। पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट पर करोड़ों रुपए खर्च कर डाले, लेकिन वे उम्मीद के मुताबिक निवेशकों का विश्वास जीतकर प्रदेश में निवेश लाने में कामयाब नहीं हो पाए। कृषि की बात करें, तो यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

किसान आत्महत्या में प्रदेश, देश में नंबर एक पर

मुख्यमंत्री शिवराज वर्षों से किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह रहे हैं, लेकिन आज भी प्रदेश के किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। किसान आत्महत्या में प्रदेश, देश में नंबर एक पर है। सरकार इस साल रबी सीजन में किसानों को डीएपी और यूरिया तक उपलब्ध नहीं करा पाई। बड़ा सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान जो काम अपने 16 साल से ज्यादा के कार्यकाल में नहीं कर पाए, क्या वह बचे हुए 21 महीनों में कर पाएंगे?

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सीएम की हिदायत, पर नहीं रुक रहा भ्रष्टाचार

प्रदेश में सरकारी तंत्र में किस हद तक भ्रष्टाचार व्याप्त है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आए दिन ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के छापों में अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं। उनके पास से करोड़ों रुपए की काली कमाई जब्त हो रही है। यह स्थिति तब है, मुख्यमंत्री  अधिकारियों को फटकार लगाते हुए  भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करने की बात कह रहे हैं। वे कहते हैं, मैं भ्रष्टाचार करने वालों को छोड़ूगा नहीं। सीएम पिछले 16 साल से भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात कर रहे हैं, लेकिन सरकारी नुमाइंदे सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। उन पर मुख्यमंत्री की हिदायत का कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की बात बेमानी नजर आ रही है।

समीक्षा बैठकों में मुख्यमंत्री के कुछ निर्देशों पर गौर करिए….

 – उज्जैन के महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर किया जाए।
– होशंगाबाद और बैतूल को मिलाकर वन पर्यटन सर्किट बनाया जाए।
– एफपीओ के लिए स्टेट का मॉडल तैयार करें।
– नर्मदा सिंचाई परियोजनाओं से अगले तीन वर्ष में छह लाख हेक्टेयर में सिंचाई बढ़ाएं।
– ऑनलाइन एजुकेशन के मामले में मप्र को मॉडल बनाएं। हम कुछ ऐसे कोर्सेस का एनालिसिस करें, जिनसे नौकरी मिले।

किसानों का दर्द बांटने खेतों तक नहीं पहुंची ‘सरकार’

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किसान आंदोलन और राजनीतिक महत्वाकांक्षा

भारत में अन्नदाताओं का बहुत बड़ा वोट बैंक है। सरकार बनाने और गिराने में किसानों की अहम् भूमिका रहती है। यही वजह कि तमाम सरकारों और राजनीतिक दलों को चुनावी मौसम में किसान याद आ ही जाते हैं। राजनीतिक दलों की ओर से किसानों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। कोई भी सरकार  किसानों को नाराज नहीं करना चाहती। मोदी सरकार को ही ले लीजिए। किसानों के कल्याण की बात कहकर तीन कृषि कानून लाए गए, लेकिन इसके विरोध में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया। दंभ में डूबी मोदी सरकार ने साल भर आंदोलनकारी किसानों की सुध नहीं ली, sampadkiy 1लेकिन जब भाजपा के सर्वे में पंजाब व उत्तरप्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन से पार्टी को भारी नुकसान की बात सामने आई, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। हालांकि तब तक आंदोलनकारी 700 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके थे। किसान आंदोलन से उत्तरप्रदेश और पंजाब चुनाव में भाजपा को कितना नुकसान होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

मध्‍यप्रदेश में महंगाई और मौसम की मार से परेशान क‍िसान

अब मध्यप्रदेश की बात। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वैसे तो खुद को किसान पुत्र बताकर किसानों का रहनुमा होने का दावा करते हैं, लेकिन इस साल रबी सीजन में डीएपी और यूरिया की भारी कमी ने सरकार के किसान हितैषी होने के दावे की पोल खोलकर रख दी। कई जगह डीएपी-यूरिया के लिए लाइनों में लगे किसानों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं। इससे किसानों में सरकार के प्रति भारी रोष है। किसानों ने मजबूरी में महंगे दामों पर डीएपी और यूरिया खरीदकर जैसे-तैसे बोवनी की, तो उनसे मौसम रूठ गया। हाल के दिनों हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्रदेश के दो दर्जन जिलों में खेतों में खड़ी चना, मसूर, गेहूं, सरसों, मटर और सब्जी का फसल को काफी नुकसान हुआ। प्रदेश में ओलावृष्टि से अब तक 1,04,611 हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों को नुकसान पहुंचने का अनुमान है। प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश जिलों में 25 से 33 प्रतिशत के बीच नुकसान का आंकलन किया गया है। ओलावृष्टि से फसलों के नुकसान की राशि करीब 900 करोड़ रुपए आंकी गई है। खास बात यह है कि इस बार मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य ओलाव़ष्टि से हुआ नुकसान देखने खेतों में नहीं पहुंचे। अपने पिछले कार्यकाल में सीएम शिवराज कई मौकों पर अतिवृष्टि व ओलावृष्टि से हुए नुकसान का जायजा लेने खेतों में पहुंचते नजर आए। वर्ष 2019 में कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे और प्रदेश में ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान हुआ था, तो शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ पर तंज कसते हुए उनसे खेतों में जाने को कहा था, लेकिन विभागों की समीक्षा में मशगूल होने की वजह से इस बार वे खुद खेतों में जाकर नुकसान का जायजा लेना भूल गए। महंगे डीजल, खाद, बीज से प्रदेश का किसान परेशान है। उन्हें फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है। किसानों बैंकों का कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं। करीब 21 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी किसान निर्णायक भूमिका में रहेंगे।

भाजपा कैसे करेगी किसान कर्ज माफी की काट

किसान कर्ज माफी को लेकर तत्कालीन कमलनाथ सरकार को घेरने वाली भाजपा चौथी बार सत्ता में आने के बाद किसान कर्ज माफी पर खुद ही घिर गई। दरअसल, सितंबर, 2020 में आयोजित सत्र में कांग्रेस विधायक जयवद्र्धन सिंह और बाला बच्चन के प्रश्नों के जवाब में कृषि मंत्री कमल पटेल ने सदन में बताया था कि किसान कर्ज माफी के लिए चलाए गए दो चरणों में कमलनाथ सरकार ने 26 लाख 95 हजार किसानों का कुल 11,500 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है। इसके बाद किसान कर्ज माफी को लेकर भाजपा बैकफुट पर आ गई। आगामी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस किसान कर्ज माफी करने की तैयारी कर रही है। देखना होगा कि भाजपा किसान कर्ज माफी की काट कैसे करेगी?

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